जब किसी के जीवन में कोई दुर्घटना घटती है, तो वह जीना छोड़ देता है. लेकिन शौन चेशायर (Shawn Chesire) ने अपनी आंखें खोने के बाद हिम्मत नहीं हारी और एथलैटिक्स की ओर रुख किया.
एक रिपोर्ट के अनुसार, शौन ने कहा,"मैं वास्तव में एक अंधेरे कोने में थी और मुझे अंधेपन से कोफ्त होता था. लेकिन खेल और शारीरिक चुनौतियों ने मुझे जीने का एक और मौका दिया."
जब बात पैरालिंपिक की हो, तो इस खेल की खिलाड़ियों के हौसले को सलाम है. न इन्हें सिर्फ कङी मेहनत करनी पङती है बल्कि सामने कई चुनौतियां भी आती हैं, जिन का मुकाबला कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है, लेकिन पैरालिंपिक खिलाड़ियां पूरे जोश और उत्साह के साथ खेल के मैदान में जंग से जीत जाते हैं.
अंधा व्यक्ति काम नहीं कर सकता
विकलांग शब्द सुनते ही लोगों के जेहन में सिर्फ यही बात आती है कि अरे, वह कोई काम कैसे कर सकता/सकती है. आएदिन मैट्रो, बस या रास्ते में हमें विकलांग लोग देखने को मिलते हैं। कई लोग तरस खा कर उन की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, तो कई लोग उन्हें देखते ही मुंह मोड़ लेते हैं. लेकिन इन सब से अलग कई विकलांग लोगों ने दुनियाभर में अपनी बड़ी पहचान बनाई है.
आंखें खोने के बाद भी शौन क्यों नहीं रोईं
किसी ने सच ही कहा है कि अगर हौसला बुलंद हो, तो जीवन में कुछ करने की चाह होने पर बड़ीबड़ी मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं.' ये पंक्तियां अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक और पूर्व पैरामैडिक ईएमटी शौन चेशायर पर फिट बैठती है. जी हां, 49 साल की शौन चेशायर ब्रेन में गहरी चोट लगने के कारण पूरी तरह से अंधी हो गई थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने दृढ़ संकल्प लिया और अपने सपने को पंख दी और फिर बड़ी कामयाबी हासिल की.
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