‘हम 2 हमारे 2’ का नारा देश में बहुत चला था और आज यह इस कदर जनमानस में अंदर तक पसर गया है कि तीसरा बच्चा अब अवांछित अनचाहा लगने लगा है. और तीसरा बच्चा जीवन भर इसलिए कुंठित रहता है कि वह मातापिता की भूल का परिणाम है. हां, अगर तीसरा बच्चा बेटा हो या जुड़वां संतान का हिस्सा, तो कम से कम अपराधभाव नहीं होता. 2 बच्चों का होना मांओं के लिए वरदान साबित हुआ है पर इस का परिणाम लाखों कन्याओं की भू्रण हत्या में हुआ है, क्योंकि अगर बच्चे 2 ही होने हैं तो उन में से 1 को तो लड़का होना ही चाहिए चाहे उस के लिए दूसरे गर्भ की जांच क्यों न करानी पड़े और फिर गर्भपात क्यों न कराना पड़े, अगर दूसरी संतान भी गर्भ में लड़की हो. यह स्वाभाविक है और व्यावहारिक भी. अगर बच्चे 2 ही होने हैं तो एक का लड़का होना मातापिता की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है, क्योंकि बेटी विवाह के बाद कठिनाई से ही मातापिता को सुरक्षा दे पाती है. ऐसा नहीं कि बेटे कोई गारंटी हैं पर थोड़ी आशा बनी रहती है. चीन में हालत इस से भी ज्यादा बुरी है, क्योंकि माओत्से तुंग के जमाने से चीन में 1 बच्चा का नियम लागू कर दिया गया था और दूसरे बच्चे की इजाजत न मिलने पर जबरन गर्भपात करा दिया जाता था. कई बार सरकारी मशीनरी हमारे आपातकाल में हुई नसबंदी की तरह गर्भपात कराती थी.
एक अनुमान के अनुसार चीन में 30 से 40 करोड़ गर्भपात एक बच्चा नीति के अंतर्गत हुए हैं. भारत में कितने हुए हैं इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि यहां चिकित्सा का क्षेत्र काफी हद तक निजी हाथों में है. लड़कों की चाहत के कारण गर्भ परीक्षण के बाद गर्भपात औरत के लिए कोई फिल्म देखने जैसी मनोरंजन की चीज नहीं है. इस में शारीरिक कष्ट तो है ही वर्षों मन में अपराधभाव रहता है कि एक बच्चे की जान ले ली गई. यह दुख तब भी होता है जब तीसरे का गर्भपात बिना भू्रण के लिंग परीक्षण के किया जाए पर बहुत कम. समाज ऐसा हो जो लड़कों और लड़कियों दोनों को बराबर सा स्वीकार करे और गर्भ रोकने के लिए गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल हो, गर्भपातों का नहीं. गर्भपात तो बहुत हो रहे हैं पर नसबंदियां नहीं, यह भी एक और अत्याचार और भेदभाव है औरतों पर.