कुछ दिनों पूर्व वट सावित्री के अवसर पर सोसाइटी के मंदिर में महिलाओं की काफी भीड़ थी. वे युवा मौडर्न महिलाएं जिन्हें मैं ने अकसर लोअर टीशर्ट और जींसटौप के अलावा अन्य किसी परिधान में नहीं देखा था आज वे सिंदूर से लंबी मांग भरी, हाथों में भरभर चूडि़यां और साड़ी पहने सोलहशृंगार में नजर आ रही थीं. सभी तथाकथित आधुनिकाएं, वट सावित्री की कथा सुना रहे पंडितजी की ओर शांत भाव से देख रही थीं.
पंडितजी कह रहे थे, ‘‘सत्यवान के मरणोपरांत वट वृक्ष ने अपनी विशाल जटाओं में सावित्री के मृत पति सत्यवान के शरीर को सुरक्षित रखा था ताकि कोई उसे हानि न पहुंचा सके और फिर बाद में अपने तप के बल पर सावित्री अपने पति को जीवित करने में सक्षम हो गई इसलिए अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रत्येक महिला को यह व्रत जरूर करना चाहिए.’’
40 वर्षीय आषी पेशे से डाक्टर है परंतु वट सावित्री की पूजा को बड़े ही मनोयोग से करती है. चूंकि घर से बाहर जाना उसे पसंद नहीं है. अत: उस ने अपने घर में ही वरगद का पेड़ लगाया है ताकि पूजा में किसी भी प्रकार का विघ्न न आ सके. इस दिन सुबह जल्दी उठ कर सोलहशृंगार में सज कर वह पूजा करती है. उस के बाद ही क्लीनिक जाती है यह बात दूसरी है कि इस दिन पूजा के चक्कर में शुगर की पेशैंट होने के बाद भी वह पूजा होने तक भूखी रहती है और इसे ले कर हर साल आज के दिन पति अमन से बहस भी हो जाती है.
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