यूथ और पौलिटिक्स , ये दोनों शब्द सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन यंग जनरेशन हमेशा से पौलिटिक्स के खिलाफ रही हैं. युवाओं को लगता है कि राजनीति क्राइम का काम है. कुछ युवाओं को तो ये भी लगता है कि जिन्हें कोई काम नहीं होता वो राजनीति में रूचि रखते हैं. युवाओं के मन में पौलिटिक्स को लेकर गलत धारण बनी है, जिससे उनका और देश का नुकसान होता है.
कई युवाओं का मानना है कि नेताएं सिर्फ चापलूसी करते हैं, वो सिर्फ वोटबैंक बढ़ाने के लिए जनता का इस्तेमाल करते हैं.
लेकिन जब युवा ही पौलिटिक्स के खिलाफ हैं, तो देश क्या ही विकास करेगा ? हालांकि ‘भारत को युवाओं का देश कहा जाता है.’ रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में भारत सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश है. यूएनडीपी के आंकड़े बताते हैं कि विश्व में 121 करोड़ युवा हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 21 प्रतिशत भारतीय युवा हैं, लेकिन ये युवा राजनीति में कहीं भी दिखाई नहीं देते..
आज मैंने अपने आसापस के युवाओं से बात की और पौलिटिक्स के बारे में वो क्या सोचते हैं, ये मैंने जानने की कोशिश की. मैंने 23 साल के कौशिक से पूछा कि पैलिटिक्स में इंटरेस्ट है? मेरा यह सवाल सुनकर पहले उसने मुंह बनाया, फिर उसने ये जवाब दिया कि मुझे अच्छा नहीं लगता, राजनिती में सिर्फ बेकार की बातें होती है. पौलिटिक्स में रूचि न रखने का एक और कारण उसने बताया कि उसके फैमिली में पौलिटिक्स से कोई नहीं जुड़ा है.
तो वहीं कुछ युवाओं ने पैलिटिक्स में हिस्सा न लेने के कुछ और कारण बताए. एक ने कहा राजनीति में हमारे काम की कोई चीज नहीं होती है, तो इसके बारे में दिमाग लगाने का कोई मतलब नहीं है. कुछ यंग जनरेशन को ये भी लगता है कि राजनिती में सिक्का जमाना हो, तो इसके लिए बहुत पैसे होने चाहिए. कई युवा राजनीति में आते भी हैं, तो आंदोलन, धार्मिक उन्माद, हिंसा फैलाते हैं और इन्हीं कामों को वो पौलिटिक्स समझ लेते हैं.
राजनीति में युवाओं को लाने के लिए उन्हें मार्गदर्शन की जरूरत है. राजनीति को कीचड़ समझने वाले युवाओं के लिए एक ऐसी मुहिम चलानी चाहिए, जिसमें उन्हें गाइड किया जा सके कि पौलिटिक्स में भाग लेना और एक्टिव रहना देश का भविष्य बदल सकता है.
लोकतंत्र में चुनाव एक बड़ा पर्व है. भारत में वोट देने की न्यूनतम आयु 18 साल है. एक आंकड़े के अनुसार इस साल लोकसभा चुनाव में कुल मतदाता आबादी का लगभग 13 प्रतिशत युवा वर्ग था. आज हम इस आर्टिकल में कुछ मुद्दों पर चर्चा करेंगे जिसमें ये बताएंगे कि क्यों युवाओं के लिए पौलिटिक्स में भाग लेना जरूरी है?
पौलिटिक्स भी एक कैरियर है
युवा राजनीति में भी अपना कैरियर बना सकते हैं. पौलिटिक्स में युवाओं के लिए अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं. अगर कोई यूथ कहता भी है कि राजनीति में कैरियर बनाना चाहता हूं, तो इसे बेकार कहकर चुप करा देते हैं, लेकिन सवाल यह है कि मेडिकल, इंजीनियरिंग, टीचिंग जैसे क्षेत्र में कैरियर बनाया जा सकता है, तो राजनीति में क्यों नहीं? लेकिन सच यह है कि अगर इरादे नेक हैं, तो राजनीति में कैरियर बनाकर देश की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है.
पौलिटिक्स ही सबकुछ करती है तय
साल 2016 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में 29 साल (2016 में) के कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आोरप में गिरफ्तार किया गया था. इस बेबाक युवा ने तिहाड़ जेल में रहते हुए एक किताब लिखा था, जिसका नाम ‘बिहार से तिहाड़ तक’ है. इसमें कन्हैया ने कई युवा भारतीयों के संघर्षों और आकांक्षाओं के बारे में बताया. उन्होंने अपने बारे में भी कई सारी बातें लिखी और बताया कि जब उन्हें देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्दायल जेएनयू में छात्र संघ का अध्यक्ष बनाया गया, तो कन्हैया ये मानने लगे कि जब राजनीति आपके जीवन में सब कुछ तय करती है, तो तय करें कि आपकी राजनीति क्या होनी चाहिए… उनकी राजनीति करियर की शुरूआत छात्र संघ से शुरु हुई थी. कन्हैया कुमार कांग्रेस पार्टी के नेता हैं.
एक महीने पहले ही लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद लोजपा (रामविलास) के मुखिया और सांसद चिराग पासवान लगातार सुर्खियों में छाए हैं. उन्होंने बौलीवुड में भी काम किया है, लेकिन अब वो राजनीति में आ चुके हैं. 2014 में पहली बार लोकसभा सदस्य के रूप में चिराग पासवान चुने गए थे.
टीएससी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी युवावस्था से ही राजनीति में अपना कैरियर बनाया. साल 2009 में महुआ की राजनीति यात्रा की शुरूआत कांग्रेस पार्टी से हुई. वह राहुल गांधी की ‘आम आदमी के सिपाही’ परियोजना की वह एक मुख्य सदस्य थी लेकिन वह कांग्रेस के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रहीं और फिर वो तृणमूल कांग्रेस में आ गईं. अपने तेज तर्रार और ओजस्वी भाषण के लिए महुआ मोइत्रा प्रसिद्ध हैं.
बूढ़े चला रहे हैं देश
युवा भारत के पास बू़ढ़े नेता हैं, जो देश चला रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनकी उम्र 73 साल है . हालांकि बूढ़े नेताओं को लेकर कांग्रेस पार्टी में चर्चा भी हुई थी. इस पार्टी के नेता जनार्दन द्विवेदी का कहना था कि 70 साल से अधिक उम्र के नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. उन्हें सलाहकार की भूमिका निभानी चाहिए. उन्होंने ये भी कहा था कि पौलिटिक्स में रहने वालों के लिए भी अन्य प्रोफेशनल्स की तरह उम्र की सीमा होनी चाहिए. महत्वपूर्ण पदों के लिए कम उम्र के लोग उपयुक्त होते हैं. तो राजनेता राहुल गांधी का विश्वास युवा नेताओं पर ज्यादा होता है. वो अक्सर युवाओं के लिए आवाज भी उठाते हैं.
भारतीय राजनीति में देखा गया है कि महत्वपूर्ण पदों पर बूढ़े नेता ही हावी होते रहे हैं. कई राजनीतिक नेता जो शारीरिक रूप से भी अक्षम रहते थे, उन्हें महत्वपूर्ण पद दे दिया जाता था. इसका एक उदाहरण आपको बताते हैं, 86 वर्ष की उम्र में सीस राम ओला को मंत्री बनाया गया. वह महज छह महीने ही इस पद पर रह पाए और उनका निधन हो गया. कहने का मतलब साफ है कि ज्यादा उम्र के नेताओं को मंत्री या कोई महत्वपूर्ण पद देना कोई समझदारी का काम नहीं है.