अंधविश्वास की हद किसे कहते हैं, इस का उदाहरण है यह विज्ञापन जिस के छलावे में अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी आ जाते हैं. ससुराल में किसी तकलीफ या कष्टों से मुक्ति पाने के लिए करें ये उपाय- ‘‘किसी सुहागिन बहन को ससुराल में कोई तकलीफ हो तो शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखें. उपवास यानी एक बार बिना नमक का भोजन कर के उपवास रखें. भोजन में दाल, चावल, सब्जी रोटी न खाएं. दूधरोटी खा लें. शुक्ल पक्ष की तृतीया को, अमावस्या से पूनम तक शुक्ल पक्ष में जो तृतीया आती है उस को ऐसा उपवास रखें. अगर किसी बहन से यह व्रत पूरा साल नहीं हो सकता तो केवल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया, वैशाख शुक्ल तृतीया और भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया को करें. लाभ जरूर मिलेगा.

‘‘अगर किसी सुहागिन बहन को कोई तकलीफ है तो यह व्रत जरूर करें. उस दिन गाय को चंदन से तिलक करें. कुमकुम का तिलक ख़ुद को भी करें.  उस दिन गाय को भी रोटी गुड़ खिलाएं.’’

सोचने वाली बात है कि एक महिला को ससुराल में सम्मान और प्यार उस के अपने कर्मों से मिलेगा या फिर टोनेटोटकों से. अगर वह पूरे परिवार का खयाल रखती है, पति की भावनाओं को मान देती है, सास से ले कर दूसरे परिजनों से अच्छा रिश्ता कायम करती है और उन की सुविधाओं को अहमियत देती है तो जाहिर है ससुराल वाले भी उसे पूरा प्यार और स्नेह देंगे. ये रिश्ते तो परस्पर होते हैं. आप जितना प्यार दूसरों पर लुटाओगे दूसरे भी आप का उतना ही खयाल रखेंगे.

अब अगले विज्ञापन में तथाकथित महान धर्मगुरुओं और ज्योतिषियों से जानते हैं कि एक लड़की को ससुराल में तकलीफें होती क्यों हैं?

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति पक्ष में न होने पर लड़की को ससुराल में बारबार अपमानित होना पड़ता है. यहां जानिए उन ग्रहों के बारे में जो परेशानी की वजह बनते हैं, साथ ही उन के प्रभाव से बचने के तरीकों के बारे में भी जानिए:

मंगल: मंगल को क्रोधी ग्रह माना जाता है. क्लेश,   झगड़ा और गुस्से का कारक मंगल को ही माना जाता है. मंगल की अशुभ स्थिति जीवन में अमंगल की वजह बनती है. यदि किसी लड़की की कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति बनी हो तो उसे जीवन में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

उपाय: मंगलवार की अशुभ स्थिति को शुभ बनाने के लिए आप मंगलवार के दिन हनुमान बाबा की पूजा करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. अगर संभव हो तो हर मंगल को सुंदरकांड का पाठ करें. लाल मसूर की दाल, गुड़ आदि का दान करें.

शनि: शनि अगर शुभ स्थिति में हो तो जीवन बना देता है. लेकिन शनि की अशुभ स्थिति जीवन को तहसनहस कर डालती है. अगर किसी लड़की की कुंडली में शनि की स्थिति ठीक न हो तो ससुराल में उस के साथ बरताव अच्छा नहीं होता. उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

उपाय: हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनिवार के दिन सरसों का तेल, काले तिल, काली दाल, काले वस्त्र आदि का दान करें. शनि चालीसा का पाठ करें.

राहु और केतु: राहु और केतु दोनों ग्रहों को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है. जब ये अशुभ होते हैं तो मानसिक तनाव की वजह बनते हैं. साथ ही कई बार व्यक्ति को बेवजह कलंकित होना पड़ता है. राहु को ससुराल का कारक भी माना गया है. ऐसे में किसी लड़की की कुंडली में राहु और केतु की अशुभ स्थिति शादी के बाद उस के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करती है.

उपाय: राहु को शांत रखने के लिए माथे पर चंदन का तिलक लगाएं. महादेव का पूजन करें और घर में चांदी का ठोस हाथी रखें. वहीं केतु को शांत रखने के लिए भगवान गणेश की पूजा करें. चितकबरे कुत्ते या गाय को रोटी खिलाएं.

जरा सोचिए, अगर ग्रहनक्षत्र ही आप का जीवन चला रहे हैं तो फिर ग्रहों को शांत करने के सिवा जिंदगी में कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं. आप हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहो और ग्रहनक्षत्रों की स्थिति सही करने के उपाय करते रहो. क्या इस तरह जिंदगी चल सकती है? क्या अपने कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता खत्म हो जाती है?

बाबाओं के पास ससुराल की समस्याएं ही नहीं बल्कि जीवन से जुड़ी हर तरह की परेशानियों के हल करने के उपाय हैं. आइए, जानते हैं उन के द्वारा सु  झाए जाने वाले ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में:

तनाव मुक्ति के लिए

तनाव से मुक्ति पाने के लिए दूध और पानी को मिला कर किसी बरतन में भर लें व सोते समय उसे अपने सिरहाने रख लें और अगले दिन सुबह उठ कर उसे कीकर की जड़ में डाल दें. ऐसा करने से आप मानसिक रूप से स्वस्थ महसूस करेंगे व खुद को तनावमुक्त पाएंगे.

शनि दोषों को दूर करने के लिए

शनिवार को एक कांसे की कटोरी में सरसों का तेल और सिक्का डाल कर उस में अपनी परछाईं देखें और तेल मांगने वाले को दे दें या किसी शनि मंदिर में शनिवार के दिन कटोरी सहित तेल रख कर आ जाएं. यह उपाय आप कम से कम 5 शनिवार करेंगे तो आप की शनि की पीड़ा शांत हो जाएगी और शनि की कृपा शुरू हो जाएगी.

अचानक आए कष्ट दूर करने के लिए

एक पानी वाला नारियल ले कर उस व्यक्ति के ऊपर से 21 बार वारें जिस के ऊपर संकट हो. इस के बाद उसे किसी देवस्थान पर जा कर अग्नि में जला दें. ऐसा करने से उस सदस्य पर से संकट दूर हो जाता है. यह उपाय किसी मंगलवार या शनिवार को करना चाहिए. लगातार 5 शनिवार ऐसा करने से जीवन में अचानक आए कष्ट से मुक्ति मिलती है.

आज देश को आजाद हुए 75 साल बीत चुके हैं. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है. हमारा लाइफस्टाइल बदल चुका है. मगर इन सब के बावजूद विडंबना यह है कि समाज में अंधविश्वास भी चरम पर है. देश के बहुत से हिस्सों में आज भी   झाड़फूंक, तंत्रमंत्र, भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, ज्योतिष आदि पर लोग विश्वास करते हैं और इन सब का फायदा उठा कर ओ  झा, तांत्रिक, ज्योतिषी आदि की ठगी का धंधा फूलफल रहा है. आज भी बाबामाताजी,   झाड़फूंक व तंत्रमंत्र की मदद से किसी भी बीमारी या मानवीय समस्या का समाधान करने का दावा किया जाता है.

21वीं सदी के वर्तमान दौर में भी   झारखंड समेत देश के कई राज्यों में मौजूद डायन बिसाही प्रथा एवं डायन हत्या की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं. इस की जड़ें एक ओर ओ  झा, गुनी, तांत्रिक, ज्योतिष आदि तक जाती है वहीं समाज में मौजूद पुरुष वर्चस्व वाली मानसिकता भी इस से जुड़ी है. उस पर हाल यह है कि समाज में अंधविश्वास, कुरीति, लूट एवं पाखंड फैलाने और उसे बढ़ावा देने वाले लोग अकसर कानून के शिकंजे में फंसने से बच जाते हैं या पकड़ में आने के बाद भी आसानी से छूट जाते हैं.

कैसा है अंधविश्वास का संसार

जीवन को नकारात्मक दिशा में मोड़ता है: अकसर धर्मगुरु अपनी तथाकथित विद्या के माध्यम से लोगों को भयभीत करते हैं. लोगों का जीवन अकर्मण्यता और बिखराव का शिकार हो कर अपने मार्ग से भटक जाता है. इस भटकाव के कई पहलू हैं जिन में से एक पहलू यह है कि वह खुद से ज्यादा ज्योतिषी, तांत्रिक और बाबाओं पर विश्वास करता है. ग्रहनक्षत्रों से डर कर उन की भी पूजा या प्रार्थना करने लगता है. वह अपना हर कार्य लग्न, मुहूर्त या तिथि देख कर करता है और उस कार्य के होने या नहीं होने के प्रति संदेह से भरा रहता है.

जीवनभर टोनेटोटकों में उल  झा रहता है. ऐसे में उस का वर्तमान, वास्तविक जीवन और अवसर हाथों से छूट जाता है. व्यक्ति जिंदगी भर अनिर्णय की स्थिति में रहता है क्योंकि निर्णय लेने की शक्ति उस में होती है जो अपनी सोच से ज्ञान और जानकारी का उपयोग सही और गलत को सम  झने में कर सकता है.

मनुष्य को डरपोक बनाता है: अकसर बाबा, तांत्रिक और ज्योतिषी लोगों को सम  झाते हैं कि जीवन में कुछ भी हो रहा है वह सब ग्रहनक्षत्रों या अदृश्य शक्तियों का खेल है. उदाहरण भी दिया जाता है कि खुद राम तक ग्रहनक्षत्रों के फेर से बच नहीं पाए. राम को वनवास हुआ तो ग्रहों के कारण ही. दरअसल, ज्योतिष ग्रहनक्षत्रों के जरीए लोगों को डराने वाला ज्ञान है जिस की आज के तर्कशील समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसी तरह टोनेटोटके और धार्मिक युक्तियां आप को दिग्भ्रमित करने और डरा कर रखने का एक जरीया हैं.

सदियों पहले अंधकार काल में व्यक्ति मौसम और प्रकृति से डरता था. बस इसी डर ने एक तरफ ज्योतिष को जन्म दिया तो दूसरी तरफ धर्म को. जिन लोगों ने बिजली के कड़कने या गिरने को बिजली देव माना वे धर्म को गढ़

रहे थे और जिन्होंने बिजली को बिजली ही माना वे ज्योतिष के एक भाग खगोल विज्ञान को गढ़ रहे थे.

आज इसे व्यापार का रूप दे कर धन कमाने का जरीया बना लिया गया है. धार्मिक और ज्योतिषीय विश्वास के नाम पर किए जाने वाले इस व्यापार से सब परिचित हैं. टीवी चैनलों में बहुत से ज्योतिषशास्त्री तरहतरह की बातें कर के समाज में भय और भ्रम उत्पन्न करते हैं. स्थानीय जनता अपने क्षेत्र में मौजूद बाबा या ओ  झा तांत्रिक आदि के प्रभाव में रहती है. दीवारों तक पर इन बाबाओं के इश्तहार लिखे होते हैं. मध्यवर्गीय परिवारों को पंडित और मौलवी अपने नियमों और संस्कारों में बांधे रखते हैं.

बड़ेबुजुर्ग अंधविश्वास मानने के लिए दबाव बनाते हैं. हर समाज अपनी अच्छाइयों के साथ बुराइयां, संस्कारों के साथ कुरीतियां और तर्क के साथ अंधविश्वास अपनी अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करता है.

अंधविश्वास की कोई तर्कसंगत व्याख्या नहीं हो सकती और ये परिवार और समाज में बिना किसी ठोस आधार के भी सर्वमान्य बने रहते हैं. आज के तकनीकी युग में भी ये लोगों के दिमाग में जगह बनाए हुए हैं. शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के परिवारों में अंधविश्वास के प्रति मान्यताएं पाई जाती हैं.

ढोंगी बाबाओं की दुकानें

इन मान्यताओं को बिना सवाल किए पालन करने की उम्मीद बच्चों से की जाती है और अगर वे सवाल करते हैं तो दबाव बना कर समाज और परिवार उन्हें इन मान्यताओं और विश्वासों को मानने की जबरदस्ती करते हैं. इन अंधविश्वासों और भय के साए में ढोंगी बाबाओं की दुकानें चलती हैं.

आज भी हमारे समाज में अंधविश्वास को अनेक लोग मानते हैं. बिल्ली द्वारा रास्ता काटने पर रुक जाना, छींकने पर काम का न बनना, उल्लू या कौए का घर की छत पर बैठने को अशुभ मानना, बाईं आंख फड़कने पर अशुभ सम  झना, नदी में सिक्का फेंकना ऐसी अनेक धारणाएं आज भी हमारे बीच मौजूद हैं. इस के शिकार अनपढ़ों के साथसाथ पढ़ेलिखे लोग भी हो जाते हैं.

32 साल की शिप्रा बताती है कि उस की एक सहेली निभा दिल्ली में रहती थी. उस ने कई वर्षों तक आईएएस की तैयारी की. जब कई दफा कोशिश करने के बावजूद सफलता नहीं मिली तो उस की मां ने किसी वास्तु के जानकार से सलाह ली. उस जानकार ने बताया कि आप की बेटी के स्टडीरूम की खिड़की सही दिशा में नहीं खुलती है इसलिए या तो खिड़की की जगह बदलो या उसे खोलना ही छोड़ दो.

निभा ने दूसरा उपाय अपनाया और खिड़की खोलनी छोड़ दी. फिर भी सफलता नहीं मिली तो किसी बाबा ने सलाह दी कि घर के सामने नीबू का पेड़ नहीं होना चाहिए. यह कांटेदार वृक्ष है सो इसे निकलवा देना चाहिए. निभा की मां ने वह पेड़ कटवा दिया. इस के बावजूद उसे सफलता नहीं मिली तो उस की मां उसे बाबा के पास ले गई. बाबा ने उस से कई तरह के व्रत और अनुष्ठान कराए, जिस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही वह बीमार पड़ गई.

इस तरह के हजारों उदाहरण हम रोजमर्रा की जिंदगी में देखते हैं. आश्चर्य यह है कि इस प्रकार के अंधविश्वासों को न केवल अनपढ़ व ग्रामीण लोग मानते हैं बल्कि पढ़ेलिखे शिक्षित युवा व शहरी लोग भी इन की चपेट में आ जाते हैं.

सुकून और पैसे की बरबादी

कुछ साल पहले दिल्ली में एक ही परिवार के 11 लोगों ने इसी अंधविश्वास के चलते बाबाओं के बहकावे में मोक्ष के लिए सामूहिक आत्महत्या कर ली थी. यह अकेला मामला नहीं था. ऐसे बहुत से उदाहरण आए दिन दिखते रहते हैं जब लोगों ने अंधविश्वास के बहकावे में आ कर अपने परिवार बरबाद कर लिए या प्रियजनों को खो दिया. अंधविश्वासों के चक्कर में पड़ कर बच्चों की बलि तक दे दी जाती है. आज भी लोग कष्ट पड़ने पर विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वासों और बाबाओं पर विश्वास करते हैं और उन के जाल में फंस कर अपना बचाखुचा सुकून और पैसा भी गंवा देते हैं.

देश में कितने सारे ठग बाबा आएदिन पकड़े जाते हैं, कितनों के सच उजागर होते हैं इस के बावजूद बाबाओं और उन के भक्तों की संख्या में कमी न आना इस बात का प्रतीक है कि लोगों की मानसिकता के स्तर में बहुत फर्क नहीं पड़ता है. दरअसल, इन ढोंगियों को मीडिया का सहयोग हासिल है. अखबारों और चैनलों में तांत्रिकों, बाबाओं के विज्ञापन आते हैं. क्लेश दूर करने के ताबीज व लौकेट से ले कर घरेलू कलह दूर करने, ससुराल में सम्मान प्राप्ति बेटा पैदा करने, मनचाहा प्यार पाने और नौकरी दिलाने जैसे   झूठे दावे कर ये जालसाज लोगों को अपने जाल में फांस रहे हैं. दुनिया में किसी व्यक्ति के पास कोई भी समस्या हो उन के पास हर परेशानी का इलाज तैयार रखा होता है.

लोगों का विश्वास जीतने के लिए ये लोगों से पहली बार में ज्यादा रुपयों की मांग नहीं करते. पहले उन्हें तकलीफों से मुक्ति पाने का ख्वाब दिखाते हैं और जब इंसान अंधविश्वास में धीरेधीरे फंसने लगता है तब बहानेबहाने से बड़ी रकम ऐंठना शुरू की जाती है. तभी तो अंधविश्वास का यह कारोबार बिना कोई लागत लगाए दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. धोखे और   झूठ की नींव पर रखी गई अंधविश्वास की दुकानों में आम जनता के मन में छिपे भय और खौफ का फायदा उठा कर खूब मुनाफा कमाया जा रहा है.

क्या कहता है कानून

चमत्कार से इलाज करना कानूनन अपराध है. भारतीय कानून में ताबीज, ग्रहनक्षत्र, तंत्रमंत्र,   झाड़फूंक, चमत्कार, दैवी औषधी आदि द्वारा किसी भी समस्या या बीमारी से छुटकारा दिलवाने का   झूठा दावा करना जुर्म है. तंत्रमंत्र, चमत्कार के नाम पर आम जनता को लूटने वाले ज्योतिषी, ओ  झा, तांत्रिक जैसे पाखंडियों को कानून की मदद से जेल की हवा तक खिलाई जा सकती है. विडंबना यह है कि आज भी अनेक लोगों को कानून के बारे में सही जानकारी नहीं है. कुछ जरूरी कानूनों की जानकारी पेश है:

औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940: औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण और बिक्री को नियंत्रित करता है. इस के अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार द्वारा जारी उपयुक्त लाइसैंस के बिना औषधियों का स्टौक, बिक्री या वितरण नहीं कर सकता. ग्राहक को बेची गई प्रत्येक दवा का कैश मेमो देना अनिवार्य कानून है. बिना लाइसैंस के औषधि के निर्माण और बिक्री को जुर्म माना जाएगा.

औषधी एवं चमत्कारी (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954: औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत तंत्रमंत्र, गंडे, ताबीज आदि तरीकों के उपयोग, चमत्कारिक रूप से

रोगों के उपचार या निदान आदि का दावा करने वाले विज्ञापन निषेधित हैं. इस के अनुसार ऐसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रमित करने वाले विज्ञापन दंडनीय अपराध हैं जिन के प्रकाशन के लिए विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त समाचारपत्र या पत्रिका आदि का प्रकाशक व मुद्रक भी दोषी माना जाता है.

इस अधिनियम के अनुसार पहली बार ऐसा अपराध किए जाने पर 6 माह के कारावास अथवा जुरमाने या दोनों प्रकार से दंडित किए जाने का प्रावधान है जबकि इस की पुनरावृत्ति करने पर 1 वर्ष के कारावास अथवा जुरमाना या फिर दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिए कोई भी सामान अथवा सेवाएं खरीदता है वह उपभोक्ता यानी क्रेता है. जब आप किसी ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा से कोई गंडा, ताबीज, ग्रहनक्षत्र खरीदते हैं तो इस से यदि आप को कोई लाभ नहीं मिलता है तो आप एक उपभोक्ता के रूप में विक्रेता ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दायर कर सकता है. इस के अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुए जीवन तथा सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो भी आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

भारतीय दंड संहिता की धारा 420: भारतीय दंड संहिता की धारा 420 में किसी भी व्यक्ति को कपट पूर्वक या बेईमानी से आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति संबंधी क्षति पहुंचाना शामिल है. यह एक

दंडनीय अपराध है. इस के तहत 7 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है. धर्म, आस्था, ईश्वर के नाम पर अकसर कुछ पाखंडी अंधविश्वास के दलदल में डूबे लोगों को कपट से लूटते हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...