पतंजलि योगपीठ के आयुर्वेदाचार्य और पतंजलि कारोबार के कार्यकारी मुखिया आचार्य बालकृष्ण ने सबसे पहले 11 जून 2020 को एक प्रेस कान्फ्रेंस की थी, जिसमें यह दावा किया गया कि उन्होंने कोरोना की दवा बना ली है, जिससे शत प्रतिशत नतीजे हासिल हुए हैं यानी जिस भी मरीज पर उस दवा का इस्तेमाल किया गया, वो सब सही हुए. यही नहीं आचार्य बालकृष्ण ने यह भी कहा कि 80 फीसदी मरीज तो सिर्फ 5 से 6 दिन के भीतर ठीक हो गये. कुछ को ठीक होने में 12 से 14 दिन लगे. लेकिन अधिकतम 14 दिनों के भीतर सभी मरीज ठीक हो गये यानी उनकी दवा 100 फीसदी कारगर रही. इस काॅन्फ्रेंस में आचार्य बालकृष्ण ने यह भी घोषणा की थी कि अगले 4-5 दिनों में यानी 15-16 जून 2020 तक हम अपनी इस दवा के लिए किये गये व्यापक शोध का क्लिनिकल कंट्रोल डाटा पूरी दुनिया के सामने उजागर कर देंगे.
लेकिन क्लिनिकल कंट्रोल डाटा या क्लिनिकल ट्रायल डाटा तो दावे के मुताबिक कुछ नहीं पेश किया गया, हां, 23 जून 2020 को योगगुरु बाबा रामदेव कुछ वैज्ञानिकों और अपने सहयोगियों के साथ हरिद्वार में प्रेस काॅन्फ्रेंस करके कोरोना की दवाई जरूर पेश कर दी. इसका नाम कोरोनिल है. दिव्य कोरोनिल टैबलेट. बाबा रामदेव ने भी आचार्य बालकृष्ण की तरह प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा कि हमने इसे बनाने के पहले क्लिनिकल कंट्रोल स्टडी की है और फिर 100 लोगों पर इसका टेस्ट किया गया है जिनमें 65 फीसदी पाॅजीटिव रोगी, 5 दिनों के अंदर नेगेटिव हो गये. यही नहीं उनके मुताबिक अगले 7 दिन में सभी 100 फीसदी रोगी बिल्कुल ठीक हो गये. इस तरह उनकी दवा की 100 फीसदी रिकवरी रेट हुई. पतंजलि के दावों के मुताबिक उनका यह शोध और ट्रायल जयपुर के बाहरी हिस्से में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज द्वारा किया गया है.
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लेकिन अभी इस प्रेस काॅन्फ्रेंस के 24 घंटे भी नहीं गुजरे थे कि भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने साफ कर दिया कि उन्हें ऐसी किसी दवा के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही उसके लिए किये गये किसी तरह के शोध या टेस्ट की जानकारी है. यही नहीं आयुष मंत्रालय ने साफ शब्दों में कह दिया कि पतंजलि को अपना विज्ञापन तत्काल बंद करना होगा. क्योंकि ड्रग एंड रेमेडीज एक्ट 1954 के मुताबिक यह अपराध है.
हालांकि आचार्य बालकृष्ण ने ट्वीट करके कहा कि आयुष मंत्रालय को सफाई दे दी गई है, साथ ही उन्हें वो सारे डाक्यूमेंट भिजवा दिये गये हैं. लेकिन इस ट्वीट के बाद भी समस्या खत्म नहीं हुई. हद तो यह है कि उत्तराखंड सरकार पर जब यह दबाव पड़ा कि किस आधार पर दवा को लाॅन्च किया गया है, तो सरकार के आयुर्वेद लाइसेंसिंग अथाॅरिटी के ड्रग डिपार्टमेंट ने साफ शब्दों में कहा कि पतंजलि को जो लाइसेंस दिया गया है वो इम्यूनिटी बूस्टर दवा के नाम पर दिया गया है, जो बुखार और खांसी की दवा है. उन्हें कोरोनिल टैबलेट के लिए कोई लाइसेंस नहीं दिया गया.
इस तरह देखा जाए तो साफ साफ पता चलता है कि चाहे पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के सीईओ आचार्य बालकृष्ण हों या योगगुरु बाबा रामदेव. किसी ने भी तथ्यों के संदर्भ में ही नहीं अपनी कही बातों के संदर्भ में भी ईमानदारी और पारदर्शिता नहीं बरती. ऐसे में सोशल मीडिया से लेकर आम जनजीवन तक इस संबंध में भारी प्रतिक्रिया होनी ही थी. हालांकि दुनिया के ज्यादातर देशों ने इस दावे पर आश्चर्य नहीं जताया और न ही इसे खारिज किया. लेकिन भारत में विशेषकर सोशल मीडिया में एक बड़ा तबका है, जिसने पतंजलि की इस सारी चूक को सरासर षड़यंत्र के रूप में पेश किया.
सवाल उठता है एक ऐसे समय में जबकि आयुष मंत्रालय ने वैकल्पिक दवाओं के निर्माताओं को स्पष्ट तौरपर चेतावनी दी है कि कोई भी दवा निर्माता उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए अपने उत्पाद को झूठमूठ में कोविड-19 के इलाज या रोकथाम में कारगार बताकर प्रचारित नहीं करे, वरना 6 साल तक की सजा और 1 लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है.
सवाल है ऐसे समय में आखिरकार पतंजलि ऐसा गड्डमड्ड क्यों कर रहा है? जिससे अगर वह चोर नहीं है तो चोर जैसा साबित हो और अगर वाकई उसने बिना किसी ठोस सबूत के ये तमाम दावे किये हैं तो फिर हैरानी इस बात पर है कि ये सब क्या हो रहा है? क्योंकि कोई सामान्य समय हो तो अलग बात है, इस समय पूरी दुनिया कोरोना की दवा पाने के लिए व्याकुल है. इस समय दुनिया का शातिर से शातिर शख्स भी ऐसी शातिरी नहीं दिखा सकता. क्योंकि इस समय दुनियाभर में हजारों, लाखों वैज्ञानिक और वैज्ञानिक अनुसंधान कोरोना के क्षेत्र में ही दिन रात नजरें गड़ाये हुए हैं.
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लेकिन इस सबके बीच पतंजलि के विरोधी जिस तरह पतंजलि के संजीवनी बूटी के दावे को सामने रख रहे हैं, जो कि ऐसी ही बड़ी घोषणा के बाद झूठ निकला था, उस सबको देखते हुए लगता है कि अगर वाकई पतंजलि के पास ठोस सबूत हैं तो उन्हें उसने अपने दावे के मुताबिक दवा लांच करने के पहले क्यों नही पेश किया? अगर बाबा अपनी विरोधियों के मुताबिक पैसा कमाने के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं तो यह झूठ कम से कम इस समय नहीं चलने वाला और इससे पतंजलि की अब तक की साख मिट्टी में मिल जायेगी. अगर लगा कि वह सरकार से नजदीकी होने के कारण कोई चतुराई दिखा रहे थे.
हालांकि पतंजलि योगपीठ का दावा है कि उन्होंने जनवरी 2020 में ही इस संबंध में शोध शुरु कर दिये थे और करीब 1550 पौधों के कंपाउंडों का दिन-रात अध्ययन करके इस दवा तक पहुंचे हैं. इसमें पतंजलि योगपीठ के मुताबिक उनकी 14 वैज्ञानिकों की टीम पूरी दुनिया के उन वैज्ञानिकों के साथ संपर्क में रही है, जो इस पर काम कर रहे हैं. इन तमाम दावों के बीच भी सवाल उठता है कि उसने सबूत क्यों नहीं पेश किये? अगर ये दावे गलत निकलते हैं तो सिर्फ पतंजलिभर की थू थू होगी बल्कि पूरे देश की साख में बट्टा लग जायेगा.