हर साल लाखों भारतीय देश की नागरिकता छोड़ विदेशों की नागरिकता ले रहे हैं. वजह जान कर चौंक जाएंगे आप

भारत में सीएए यानी सिटिजिनशिप अमैंडमैंट एक्ट लागू होने के साथ नागरिकता मुद्दा की चर्चा जोरों पर है. सीएए के माध्यम से भारत 3 पड़ोसी देशों के गैरमुसलिम धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देगा. लेकिन एक सच यह भी है कि जहां भारत एक तरफ पड़ोसी देशों के लोगों को नागरिकता देने जा रहा है वहीं हर वर्ष लाखों भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ विदेश की नागरिकता अपना रहे हैं.

हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने संसद में बताया कि 2021 में करीब 1.63 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी. 2020 में लगभग 85 हजार 256 लोगों ने नागरिकता छोड़ी. 2019 में 1.4 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी. 2015 से 2021 तक यानी 7 साल का आंकड़ा देखें तो 9.24 लाख भारतीय देश छोड़ कर परदेशी हो गए.

21 दिसंबर, 2023 को 303 यात्रियों, जिन में अधिकतर भारतीय थे, को ले जा रही एक चार्टर उड़ान को इस संदेह में फ्रांस में रोक दिया गया कि विमान में सवार सभी लोग मानव तस्करी के शिकार थे. यह उड़ान संयुक्त अरब अमीरात से मध्य अमेरिकी देश निकारागुआ जा रही थी. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि उस विमान में 66 यात्री गुजरात से थे और बाकी पंजाब से. इन यात्रियों में शामिल 11 नाबालिग भी थे.

अवैध रूप से प्रवेश

इस से पता चलता है कि पंजाब और गुजरात के गरीब गांवों के रहने वाले ये यात्री अवैध रूप से अमेरिका या कनाडा में प्रवेश करने के उद्देश्य से निकारागुआ जा रहे थे. ‘डंकी विमान’ को वापस भारत भेजे जाने के कुछ सप्ताह बाद गुजरात पुलिस ने निकारागुआ सीमा के माध्यम से भारतीयों को अमेरिका में अवैध रूप से स्थानांतरित करने में शामिल 14 एजेंटों पर मामला दर्ज किया. इन में से अधिकांश एजेंट गुजरात के ही थे, जबकि कुछ अन्य दिल्ली, मुंबई और दुबई से थे.

एक जांच से पता चला कि उन एजेंटों ने यात्रियों से 60 लाख से 80 लाख रुपए अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश कराने के लिए थे. एजेंटों ने यात्रियों को निर्देश दिया था कि वे खुद को खालिस्तानी के रूप में पहचानें और अगर पुलिस उन्हें सीमा पर पकड़ती है तो वे अमेरिका में शरण लें.

सूत्रों से यह भी पता चला कि उस विमान में सवार जितने भी गुजराती थे वे गुजरात लौट कर नहीं आना चाहते थे. वे इस बात पर अड़े थे कि वे यहां से निकारागुआ ही जाएंगे, जबकि लगभग 12 यात्री फ्रांस में शरण मांग रहे थे.

हमारा भारत देश कभी सोने की चिडि़या कहलाता था. पूरे विश्व में यहां की कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, शासन व्यवस्था आदि को ससम्मान स्वीकार किया जाता था. भारत की उन्नत अर्थव्यवस्था और संपन्नता की चर्चा पूरी दुनिया में होती थी. विश्व के कोनेकोने से व्यापारी यहां आते थे. आज उसी भारत के लाखों भारतीय देश छोड़ कर विदेश का रुख कर रहे हैं, तो आखिर क्यों?

क्या कहते हैं आंकड़े

एक आंकड़े के अनुसार, नौकरी, रोजगार, अकूत पैसा, बेहतर जीवन आदि की लालसा में हर वर्ष लाखों भारतीय अपना देश छोड़ कर विदेश का रुख कर रहे हैं. 2020 के बाद से तो अमेरिका में भारतीयों के अघोषित प्रवसन में आश्चर्यजनक वृद्धि देखी गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस के कारणों में भारत में आर्थिक अवसरों की कमी, अल्पसंख्यकों का धार्मिक और राजनीतिक उत्पीड़न और अमेरिका में कानूनी आव्रजन चैनलों की कमी शामिल है.

बता दें कि भारत छोड़ कर जाने वाले लोगों की पहली पसंद अमेरिका है, दूसरी कनाडा. इस के अलावा आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, इटली, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, जरमनी, नीदरलैंड और स्वीडन आदि देशों में भी जा कर लोग बस रहे हैं और यह आंकड़ा सालदरसाल बढ़ता ही जा रहा है. वैसे हरेक व्यक्ति के लिए देश छोड़ कर विदेश में बसने के अलगअलग कारण हो सकते हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों के देश छोड़ने की मुख्य वजह क्या हो सकती है?

विदेशों में जिंदगी आसान

मनीषा बदला हुआ नाम 2003 में नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गई तो वहीं की हो कर रह गई. वह कहती है कि उस की बेटी भी वहीं पैदा हुई, फिर उस ने ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया और वहां की नागरिकता भी मिल गई. यहां की जिंदगी बहुत आसान है. स्टैंडर्ड औफ लिविंग बहुत अच्छा है. बच्चों की पढ़ाई अच्छे से हो जाती है. यहां मौके भी भारत से बेहतर हैं. इस के अलावा काम का माहौल बहुत अच्छा है. आप जितना काम करते हैं उसी हिसाब से पैसे मिलते हैं. अगर भारत को अपनी नागरिकता छोड़ने की दर या ब्रेन ड्रेन पर काबू करना है तो उसे कई कदम उठाने होंगे. इन में बेहतर सुविधा, नए मौके से ले कर दोहरी नागरिकता पर विचार करना जरूरी है.

वहीं कनाडा में रहने वाले एक भारतीय शख्स का कहना है कि उस ने यहीं से अपनी पढ़ाई पूरी की और अब यहीं जौब कर रहा है. वह भारतीय नागरिकता छोड़ने के लिए तैयार है. उस का कहना है कि यहां काम करने का अच्छा माहौल है. यहां काम घंटे के हिसाब से निर्धारित हैं और वर्क प्लेस पर नियमकानून का पालन होता है जबकि भारत में नियमों का इतने अच्छे तरीके से पालन नहीं होता है. इसलिए वह भारत नहीं जाना चाहेगा.

दांव पर जान

2017 की एक घटना पर गौर करें तो करीब 30 की संख्या में भारतीय, अमेरिका के लिए डेरेन गैप से गुजर रहे थे. थकावट, भूख, जंगली जानवरों, जहरीले कीड़ेमकोड़ों की चुनौतियों की परवाह न कर के वे किसी भी तरह अमेरिका में बस दाखिल हो जाना चाहते थे. जब उन्हें प्यास लगती थी तब अपनी टीशर्ट को निचोड़ कर बारिश के पानी में भिगो कर पी लेते थे. जब थकावट ज्यादा होती तो जंगल में कहीं बैठ या लेट जाते. भूख तेज लगती तो दिल को सम?ाते कि कोई बात नहीं, अब तो मंजिल पास ही है, बस थोड़ा और आगे जाना है.

यह कहानी सिर्फ 30 लोगों की नहीं है बल्कि सैकड़ों भारतीयों की है जो विदेश जाने की चाहत में अपनी जान दांव पर लगा कर कैसे भी रास्ते पर निकल पड़ते हैं.

शाहरुख खान की फिल्म ‘डंकी रूट’ अपनाने वालों पर आधारित है. ‘डंकी रूट’ असल में वह होता है, जिस में कोई भी व्यक्ति एक से दूसरे देश में अवैध तरीके से जा सकता है.

विदेश जाने की चाह करीबकरीब हर भारतीय की होती है. खासतौर से पश्चिमी देश (अमेरिका, कनाडा, यूके) अपनी चमक से भारतीयों को आकर्षित करते हैं. युवाओं में विदेश जाने की सब से बड़ी वजह बेहतर रोजगार के अवसर, ज्यादा कमाई की चाह है. लेकिन इन देशों के नियमकानून बेहद कड़े होते हैं और उस की वजह से सीमित संख्या में ही भारतीय कानूनी तौर से वहां जा पाते हैं. अब चूंकि जो युवा कानूनी तौर पर विदेश नहीं जा पाते हैं तो वे अवैध तरीका अपनाते हैं, जिसे ‘डंकी रूट’ फ्लाइट के नाम से जाना जाता है. ‘डंकी रूट’ एक पंजाबी टर्म है जिस का अर्थ है कि कूंद, फांद कर एक जगह से दूसरी जगह जाना. ‘डंकी रूट’ से भेजने के एवज में एजेंट लोगों से लाखों रुपए चार्ज करते हैं.

अमेरिकी कस्टम ऐंड बौर्डर पैट्रोल के मुताबिक, 2018 में मैक्सिको के रास्ते अवैध तरीके से अमेरिका घुसने की कोशिश में करीब 9000 भारतीय लोग पकड़े गए थे. 2017 के मुकाबले यह संख्या करीब 3 गुना ज्यादा थी.

अमेरिका की आईबीआई कंसल्टैंट्स फर्म में अप्रवासन विशेषज्ञ और रिसर्च कौर्डिनेटर कायेतलिनयेल्स का कहना है कि ज्यादातर भारतीय लैटिन अमेरिका जाते हैं. वे ब्राजील के रास्ते मैक्सिको पहुंचते हैं क्योंकि यहां वीजा के कानून कमजोर हैं. यहां से ये लोग उत्तर की तरफ हाईवे के रास्ते से बढ़ना शुरू करते हैं और कोलंबिया और मध्य अमेरिकी से होते हुए अमेरिका सीमा पर पहुंचते हैं.

येल्स का कहना है कि इन में ज्यादातर अप्रवासी आमतौर पर आर्थिक मौके की तलाश में या फिर अपने परिवार के सदस्यों के साथ रहने के लिए यहां आते हैं. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से आने वाले कई अप्रवासियों का कहना है कि वे धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए यहां आते हैं जबकि कुछ लोग राजनीति दमन की बात करते हैं.

सवाल यह भी है

कैलिफोर्निया के फ्रेंसो में अप्रवास मामलों के वकील दीपक आहलुवालिया ने मीडिया को बताया कि भारत के राजनीति असंतुष्ट, अल्पसंख्यक और समलैंगिक समुदाय के लोग दूसरे देशों में शरण पाने की सब से ज्यादा कोशिश करते हैं.

यहां एक सवाल यह भी है कि आखिर पंजाब और हरियाणा के लोग अमेरिका और कनाडा क्यों जाना चाहते हैं? तो इस के लिए हमें 20वीं सदी की तरफ नजर डालनी होगी. 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब के करीब हर परिवार से लोग अमेरिका, कनाडा और यूके गए. वहां उन लोगों ने कड़ी मेहनत कर अपनी संपत्ति बनाई. वे लोग वहां से भारत, अपने परिवार को भी पैसे भेजते थे जिस की वजह से उन के गांवघर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी होने लगी थी और यही सब देख कर युवाओं का विदेशों के प्रति आकर्षण बढ़ा और फिर कैसे भी कर के वहां जाने की होड़ लग गई. युवाओं के मनोस्थिति को सम?ा कर एजेंट्स के लिए कम मेहनत में ज्यादा पैसे कमाने का अच्छा मौका मिल गया.

विदेश जाने की चाह के बारे में युवाओं का कहना है कि अपने यहां धूलधक्कड़ फांकने से बेहतर है कि किसी भी तरह अमेरिका, कनाडा चले जाएं. सिर्फ युवा ही क्यों करोड़पति लोग भी विदेशों में सैटल होने की चाह रखते हैं.

करोड़पतियों का पलायन

हजारों भारतीय करोड़पति हर साल विदेशों में जा कर सैटल हो जाते हैं. एचएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में करीब 6 से 8 हजार हाई नैटवर्थ इंडिविजुअल्स देश छोड़ कर जाने का अनुमान था. कोरोनाकाल में बहुत सारे बड़े उद्योगपति देश छोड़ कर कनाडा, अमेरिका, यूके जैसे देशों में जा कर बस गए. धन कुबेर के देश छोड़ने की एक बड़ी वजह कोरोना को बताया गया. सुपर रिच भारतीयों का ठिकाना कनाडा, अमेरिका और आस्ट्रेलिया बनता जा रहा है.

क्या ऐसा इंडिया में बढ़ती दरों के टैक्स के कारण हो रहा है? क्या इन देशों में टैक्स की दरें भारत की अपेक्षा कम हैं?

दुनियाभर के तमाम देशों के टैक्स स्लैब चैक करने पर पता चलता है कि भारतीय अमीरों के देश छोड़ कर परदेश में जा कर बसने के पीछे का कारण टैक्स दरों में इजाफा होना ही है. एक सर्वे के मुताबिक, व्यापारी वर्ग का मानना है कि भारत में उन्हें अपने व्यापार या कारोबार की सुरक्षा की चिंता है. यह असुरक्षा देश में विभिन्न करों और नियमों में आएदिन होने वाले बदलाव के कारण भी है. इसी असुरक्षा के कारण उद्योगपतियों को देश छोड़ने का निर्णय लेना पड़ रहा है. यदि भारत में उन्हें उन के व्यापार के प्रति सुरक्षा की गारंटी मिल जाए तो शायद यह पायलन इतनी बड़ी संख्या में न हो.

शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ता देश

शिक्षा के क्षेत्र में देश में मूलभूत जरूरतों का कमजोर होना भी देश से हो रहे ‘ब्रेन ड्रोन’ का एक कारण है. देश के होनहार युवा तमाम कोशिशों के बावजूद देश में आरक्षण या अन्य वजहों के चलते अपने हुनर को निखार नहीं पाते हैं.

एक तरफ जहां भारत दूसरे देशों को टक्कर देने के होड़ में लगा है, वहीं यहां के युवाओं को भारत से अधिक संभावनाएं दूसरे देशों में दिख रही हैं. भारत में बेरोजगारी का आलम यह है कि देश छोड़ कर विदेश जाना चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. युवाओं में हताशा देखी जा रही है और सरकार की नीतियां नाकाम साबित हो रही हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था पलायन का एक बड़ा कारण है. भारत की शिक्षा व्यवस्था अभी इतनी अच्छी नहीं है, जितनी कि उन देशों में, जहां भारतीय जाना पसंद करते हैं. अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों में से करीब 70-80त्न युवा वापस अपने देश यानी भारत नहीं लौट कर आते हैं. कैरियर और अच्छे भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए वे विदेश में बस जाना बेहतर सम?ाते हैं.

हमारे देश के नागरिक खुशीखुशी अपनी नागरिकता छोड़ विदेशी नागरिकता अपना रहे हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा था, जब दुनियाभर से लोग भारत आते थे. 7वीं शताब्दी में चीन से हेनसांग का भारत आना हो, 11वीं शताब्दी में अलबरूनी का भारत आना हो या फिर 14वीं शताब्दी में इब्न बतूता का आगमन हो. हमारे देश की विरासत ऐसी रही है कि दुनियाभर से लोग यहां आते थे. लेकिन आज इस के उलट यहां के लोग विदेशों में बसने की ख्वाहिश रखने लगे हैं.

एक सर्वे में यह बात पता चली है कि भारत में रहने वाले लोग जैसेजैसे अमीर बनते जाते हैं, भारत को ले कर उन का प्यार कम होता जाता है और जब लोग करोड़पति, अरबपति बन जाते हैं तो भारत छोड़ विदेश में जा कर बस जाते हैं.

भारत जहां विश्वगुरु बनने के कगार पर है, वहीं भारतीय युवाओं का दूसरे देशों में पलायन अच्छे संकेत नहीं लगते.

गुजरात विश्वविद्यालय में बोल्ट वाले समाजशास्त्री गौरांग जैन कहते हैं कि विदेश भागने की होड़ बहुत तेज है. यहां के लोग किसी भी तरह से अमेरिका पहुंचने के लिए कितना भी नक्द पैसा खर्च करने को तैयार होते हैं. वो कहते हैं कि एक बार जब वे अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं तो वहां उन के समुदाय से उन्हें भारी समर्थन मिलता है.

एचऐंडपी के अनुसार, भारत छोड़ने के ट्रैंड को कोविड 19 ने और ज्यादा बढ़ा दिया है और अमीर भारतीयों के अंदर खुद को ‘जीवन और संपत्ति को ग्लोबलाइज’ करने की प्रवृति में भारी इजाफा हुआ है.

कनाडा में भारतीय मूल के रिएल स्टेट दिग्गज और मैगनेट और मेनस्ट्रीट इक्विडी कौर्प के सीईओ बाब ढिल्लो भारत से प्रवास की तीसरी लहर के रूप में देखते हैं. उन का कहना है कि करीब 100 साल पहले पंजाब के गरीब और किसानों ने पश्चिम देशों की तरफ रुख किया था और उस के बाद भारतीय प्रोफैशनल्स में भारत छोड़ने की होड़ सी लग गई और अब भारत के अमीरों और युवाओं में देश छोड़ने की रेस लगी हुई है.

पुरानी पीढ़ी बनाम नई पीढ़ी

हेनली ग्लोबल सिटिजन रिपोर्ट कहती है कि भारत में पुरानी पीढ़ी के उद्योगपति देश में ही जमे हुए हैं जबकि आज की नई पीढ़ी के उभरते बिजनैसमैन अपने कारोबार का विदेश में प्रसार करने के लिए आतुर हैं. वे देश की सीमाओं से बाहर जाने से नहीं हिचक रहे हैं. ये उद्यमी ऐसे देशों में अपने पैसे का निवेश करना चाहते हैं जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके. यही वजह है कि भारतीयों की पसंदीदा जगहों में अमेरिका, यूरोप के देश, दुबई और सिंगापुर है. भारतीय मानते हैं कि वहां का लीगल सिस्टम मजबूत है. अपने बेहतर भविष्य के लिए भारतीय बड़ी संख्या में नागरिक बाउंड्री के बाहर जा रहे हैं.

वैसे मेहुल चौकसी जैसे कुछ हाई प्रोफाइल मामले भी हैं जिस में लोग कानून ऐक्शन के डर से देश से बाहर भाग रहे हैं.

ईवाई इंडिया के नैशनल लीडर टैक्स सुधीर कपाडि़या ने इकोनोमिक टाइम्स को बताया कि अमीर भारतीयों का लगातार दूसरे देशों में जाना या किसी दूसरे देश में निवास करना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि भारत का लक्षय 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने का है.

अमीरों के देश से बाहर निकलने की वजह से भारत को टैक्स कलैक्शन के मोरचे पर भी नुकसान होता है. कई कारोबारी खासकर वे जो इनवैस्टमैंट कंपनियों को संभालते हैं या फिर इंटरनैशनल बिजनैस में शामिल हैं, उन की आगे की योजना भारत से बाहर निकलने की है. वे अभी सिर्फ टैक्स के दायरे में आने से बचते हैं.

डेलायट इंडिया की पार्टनर सरस्वती कस्तूरीरंगन ने इकोनोमिक टाइम्स को बताया कि यूएई और सिंगापुर जैसे देशों में कई भारतीय अपना आशियाना बना रहे हैं तो इसलिए कि भारत में टैक्स की ऊंची दरें हैं.

ऐक्सपर्ट मान कर चल रहे हैं कि 2031 तक देश में करोड़पतियों की संख्या में 80 फीसदी तेजी आएगी. देश में टैक्नोलौजी, हैल्थकेयर समेत कई सेवाओं में बूम देखा जा सकता है.

क्या है ओआईसी कार्ड

चूंकि भारत में दोहरी नागरिकता की छूट नहीं है ऐसे में जिन भारतीयों को विदेश में बसना होता है उन्हें अपना भारतीय पासपोर्ट जमा कराना होता है. विदेश में बसे और वहां की नागरिकता ले चुके भारतीय लोगों के लिए एक खास तरह की सुविधा का नाम है ओसीआई कार्ड ओसीआई का यानी ओवरसीज सिटिजन औफ इंडिया. ओसीआई कार्ड ले कर विदेश से भारतीय स्वदेश आ सकते हैं और उन्हें वीजा की जरूरत नहीं पड़ेगी.

बहरहाल, इन सभी समस्याओं का समाधान एक ही है कि सरकार को इस का हल ढूंढ़ना चाहिए कि आखिर क्यों भारतीय दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं? हमारे देश की प्रतिभाएं बाहर चली जाएंगी तो फिर हमारे देश का विकास किस तरह होगा? इसलिए सरकार को देश की खासकर युवाओं को उचित अवसर और रोजगार, अच्छी शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए ताकि हमारे देश के लोग बाहर का रुख न कर सकें.

अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देना, नागरिकों को भय रहित माहौल देना और उन के अच्छे जीवन और अच्छे भविष्य के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देना हरेक सरकार की जिम्मेदारी बनती है. देश के नागरिकों को भी अपने कर्तव्य नहीं भूलने चाहिए. थोड़े से स्वार्थ के लिए अपने देश से मुंह मोड़ना सही नहीं है. भारत को समृद्ध बनाने के लिए सरकार के साथसाथ देश के नागरिकों को भी सोचना होगा कि हम अपनी प्रतिभा और पैसे का इस्तेमाल अपने देश की तरक्की के लिए करें न कि दूसरे देश के लिए.

वैसे अमेरिका जैसे बड़े देश में अब भारतीय सुरक्षित नहीं रहे. वहां भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ नफरती हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं. इस शुरू नए वर्ष में अब तक 5 भारतीय हिंसा के शिकार हो चुके हैं. ताजा घटना वाशिंगटन शहर की है, जहां एक संदिग्ध अमेरिकी नागरिक ने भारतीय मूल के एक व्यक्ति पर हमला किया, जिस से उस के सिर पर चोट आई और तमाम प्रयासों के बाद भी उसे बचाया न जा सका.

दुनियाभर में लोकतंत्र की दुहाई देने वाले अमेरिका की हकीकत यह है कि वह भारत जैसे देशों से वहां पढ़ने, रोजगार के लिए गए या फिर कारोबार कर रहे, बस गए लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है. नस्ली हिंसा पर काबू पाना आज भी उस के लिए चुनौती है. अगर अमेरिकी सरकार ने जल्दी इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला तो न केवल उसे कुशल भारतीयों के योगदान से वंचित होना पड़ेगा बल्कि भारी आर्थिक नुकसान भी ?ोलना पड़ेगा.

 

 

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