बलात्कार समाज का एक वह घिनौना सच है जो हमारे समाज में पौराणिक, ऐतिहासिक काल से ले कर आधुनिक काल तक फलफूल रहा है. जहां एक ओर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से बच्ची से ले कर जवान और बूढ़ी औरत तक शोषित हो कर शारीरिक और मानसिक पीड़ा सह कर घायल और छलनी हो जाती है, वहीं दूसरी ओर जानवररूपी आदमी किसी लड़की का बलात्कार करने को ले कर या तो इसे मर्दानगी का नाम देते हैं या फिर शारीरिक भूख को शांत करने की हवस.
असल में तो आदमी के रूप में छिपे ऐसे भेड़िए को जानवर कहना भी गलत होगा क्योंकि ऐसा घिनौना काम जानवर भी नहीं करते. ज्यादातर देखा गया है कि जानवर छोटे बच्चे पर वार नही करते. लेकिन इंसान के रूप में जानवर से भी बदतर बलात्कारी छोटी बच्चियों तक का बलात्कार करने से भी बाज नहीं आते.
बेकार है न्याय की उम्मीद
बलात्कार नामक यह दीमक सिर्फ समाज में ही नहीं, घरघर में घुसा हुआ है। कभी करीबी रिश्तेदार के रूप में तो कभी गुंडेमवाली या भ्रष्ट नेता या भ्रष्ट पुलिस अधिकारी के रूप में. कई बार गैंगरैप करने वाले गुनहगार सजा नहीं पा पाते क्योंकि बलात्कारी का कनैक्शन किसी बड़े नेता, अभिनेता या बड़े पुलिस अधिकारियों तक होता है. ऐसे में अपराधी को सजा मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है क्योंकि बलात्कार पीड़ित लड़की या औरत कानूनी तौर पर अगर गुनहगार को सजा दिलाना भी चाहे तो कोर्ट का फैसला आने तक उस को सालों रुकना पड़ता है और हर डेट पर सब के सामने उसी बलात्कार की चर्चा बारबार होने के तहत बेइज्जत और शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है.