बात चौंकाने वाली है और नहीं भी. भारत-नेपाल सीमा पर 12 जून, 2020 को हुई फ़ायरिंग की घटना में एक भारतीय युवक की मौत हो गई, जबकि 3 घायल हो गए.

चौंकाने वाली इसलिए है कि नेपाल और भारत का बौर्डर हमेशा से शांत रहा है. यह भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन और यहां तक कि भारत-बंगलादेश जैसा बौर्डर नहीं रहा. इस सीमा से झड़प होने की ख़बर का आना नई बात है. मगर, चौंकाने वाली बात इसलिए नहीं है कि हालिया वर्षों में भारत के पड़ोसी देशों में हालात बहुत तेज़ी से बदलते गए हैं. भारत के क़रीबी घटक समझे जाने वाले देशों को चीन की ओर तेज़ी से झुकते देखा जा रहा है.

भारत व चीन के बीच विवाद अभी पूरी तरह थमा नहीं है कि इसी बीच नेपाल सीमा पर भी बवाल हो गया है. 'रोटी-बेटी' के साथ वाले नेपाल में भारतविरोध की आंच तेज हो गई है. लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को ले कर दोनों देशों के बीच विवाद गहराता जा रहा है.

गौरतलब है कि पिछले 200 वर्षों से लिपुलेख से ले कर लिंपियाधुरा को नेपाल अपना क्षेत्र मानता रहा है. नेपाल ने अपने देश के ताजा नकशे में लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाल की महाकाली नदी की पश्चिमी सीमा में दिखाया है. जबकि, भारत सरकार ने नवंबर 2019 में अपना नया राजनीतिक नकशा जारी किया था. भारत यह दावा करता रहा है कि नेपाल से उस की सीमा लिपुलेख के बाद शुरू होती है.

बात नेपाल की :

नेपाल की अगर बात की जाए तो इस देश में चीन ने व्यापकरूप से विकास परियोजनाओं में हिस्सा लिया है और बड़े पैमाने पर निवेश किया है. चीन अपनी बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) में नेपाल को ख़ास महत्त्व देता है और इसीलिए वह नेपाल में भारत के मुक़ाबले अधिक आक्रामक रूप से निवेश कर रहा है. नतीजा यह हुआ कि चीन धीरेधीरे नेपाल की ज़रूरत बनता जा रहा है. वहीं, नेपाल इस दौरान भारत से दूर हुआ है. नेपाल के नए संविधान के ख़िलाफ़ मधेसियों के प्रदर्शनों के समय भारत और नेपाल के बीच खाई साफ़ नज़र आई भी थी.

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