जन्म से ले कर मृत्यु तक न जाने कितनी बार पंडेपुजारियों द्वारा मानव को स्वर्ग और नर्क के रास्ते दिखाए जाते हैं. ‘ऐसा करोगे तो स्वर्ग में जाओगे’, ‘वैसा करोगे तो नर्क मिलेगा.’ जिन लोगों ने ये भ्रांतियां फैलाई हैं उन्हें खुद नहीं मालूम है कि वे कहां जाने वाले हैं?
आज अंधविश्वासों, मिथकों और छद्म वैज्ञानिक तथ्यों में अत्यधिक बढ़ोतरी हो रही है. आज जो मिथ्या परंपरागत रीतिरिवाज हमारी आवश्यकता के अनुकूल नहीं हैं, उन्हें भी मात्र परंपरा के नाम पर बढ़ावा दिया जा रहा है. जैसेजैसे लड़की बड़ी होती है अकसर बड़ों को कहते सुनते हैं कि फलां व्रत करने से अच्छा पति मिलेगा. यदि व्रत, पूजापाठ से ही मनभावन जीवनसाथी मिलता तो सब का जीवन सुखशांतिपूर्ण होता.
हमारे देश में अंधविश्वास अन्य देशों की तुलना में कुछ अधिक ही है, जोकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की गैरमौजूदगी को दर्शाता है, इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण भारत की तात्कालिक आवश्यकता है. यदि हम अपने दैनिक जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखेंगे तो हम व्यक्तिगत एवं सामाजिक घटनाओं के तर्कसंगत कारणों को जान सकेंगे, जिस से असुरक्षा की भावना और निरर्थक भय से छुटकारा प्राप्त हो सकेगा.
शकुन अपशकुन की मान्यताएं
हमारे समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली कथाओं से ले कर शकुनअपशकुन की अनगिनत मान्यताएं कौओं से जुड़ी हैं. यों भारतीय समाज में कौओं को धूर्त पक्षी मानते हैं पर श्राद्धपक्ष में उन की खूब आवभगत होती है. कौआ मुंडेर पर बैठे तो मेहमान आने का संकेत माना जाता है, पर महंगाई के इस युग में अतिथि आ जाए, यह कौन चाहेगा? अब अंधविश्वास के विरोधी माने जाने वाले सिद्धारमैया को ही देख लें, कार पर कौआ बैठा तो उन के लिए वह शुभ ही सिद्ध हुआ, नई महंगी कार जो आ गई.
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