‘‘मेरी बेटी इकोनौमिकली, इमोशनली और सैक्सुअली इंडिपैंडैंट है, तो उसे शादी करने की क्या जरूरत?’’ पीकू मूवी में अमिताभ बच्चन द्वारा बोला गया यह डायलौग मैट्रोसिटीज में रहने वाली हर इंडिपैंडैंट लड़की का सपना बनता जा रहा है. अब हर लड़की अपनी मरजी से अपनी लाइफ के फैसले करना चाहती है. शादी कब करनी है, करनी है या नहीं, यह खुद तय करना चाहती है. वह अपने तरीके से जिंदगी जीना चाहती है.

दिल्ली की 35 वर्षीय किरण हंसमुख, खूबसूरत होने के साथसाथ इंडिपैंडैंट भी है. वह अपनी लाइफ को अपने मनमुताबिक मस्ती से जी रही है. उस का शादी करने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन उसे कभीकभी समाज की बातें बेचैन कर देती हैं. हर किसी की जबान पर बस एक ही प्रश्न होता है कि कब सैटल हो रही हो? उम्र बढ़ती जा रही है. आगे प्रौब्लम होगी.

दरअसल, किरण अपनी मनपसंद का जो जीवन जीना चाहती है, वह सामाजिक, धार्मिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है. इसीलिए हर सिंगल वूमन को समाज प्रश्नसूचक नजरों से देखता है.

साथी औल फौर पार्टनरशिप की मनोचिकित्सक प्रांजलि मल्होत्रा कहती हैं, ‘‘हर व्यक्ति की सोच अलग होती है. यह जरूरी नहीं कि हमारे समाज के बनाए नियमों का हर कोई पालन करे. सही उम्र में पढ़ाई, शादी और बच्चा ये सब अब टिपिकल बातें हैं. अब लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं. अब इक्वैलिटी का जमाना है. अब लड़की भी पहले अपना घर, गाड़ी और बैंक बैलेंस बनाना चाहती है ताकि वह स्ट्रौंग फील कर सके. उस के बाद अगर शादी करनी हो तब इस का निर्णय लेती है वरना इस बारे में सोचती भी नहीं, क्योंकि उस के पास वह सब कुछ होता है, जो पहले के समय में लड़की को शादी के बाद पति से मिलता था.

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