हजारों वर्षों से दुनिया समाज में एक रूढ़िवादी अवधारणा अपनी जड़ जमाए हुए है, जो कहती है, ‘पौराणिक समय से ही भगवान व प्रकृति ने महिला और पुरुष के बीच भेद किया है. इस वजह से पुरुष का काम अलग और महिलाओं का काम अलग है.’

यह धारणा हमेशा कहती रही, ‘आदिम समाज को जब भी खाना जुटाने जैसा कठोर काम करना पड़ा, चाहे वह पुराने समय में शिकार करना हो या आज के समय में बाहर निकल कर परिवार के लिए पैसा जुटाना हो, पुरुष ही इस का जुगाड़ करने के काबिल रहे हैं और महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता के कारण उन के हिस्से घर के हलके काम आए हैं.’

इस लैंगिक भेद में महिलाओं का बाहर निकल कर काम न करने का एक बड़ा तर्क उन की शारीरिक दुर्बलता को बताया गया. उन के शारीरिक ढांचे की बनावट को पुरुषों के मुकाबले कमजोर और अशुद्ध बताया गया. यही कारण भी रहा कि एक लंबे इतिहास तक महिलाओं के पैरों को घर में लगी दीवारों की जंजीरों से बांध दिया गया. उन पर कई तरह की रोकटोक लगाई गई. इस बात का एहसास उन्हें करवाया गया कि आप पुरुषों के मुकाबले शारीरिक तौर पर दुर्बल हैं. आप बाहर का काम करने के योग्य नहीं हैं, और परिवार का भरणपोषण नहीं कर सकती हैं.

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यही वजह रही कि आज लिंग आधारित असमानता पर दुनियाभर में एक बहस खड़ी हुई. इस बहस में एक बड़ा हिस्सा महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता का भी रहा. हाल ही में इसी बहस के बीच वैज्ञानिकों ने दक्षिणी अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला में 9000 साल पुराने एक ऐसे स्थान का पता लगाया है, जहां महिला शिकारियों को दफनाया जाता था. इस खोज से लंबे समय से चली आ रही इस पुरुष प्रधान अवधारणा को चुनौती मिली है.

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