आज भले ही महिलाऐं अपने हुनर और काबिलियत के बल पर हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हो मगर अगर समाज में ओवरऔल कंडीशन देखा जाए तो ज्यादातर महिलाएं खुद को कतार में पीछे खड़ा रखती हैं. वे आगे बढ़ सकती है पर बढ़ती नहीं. अपनी बात रखने या अपनी इच्छा का काम करने से हिचकिचाती हैं. हाल ही में पोंड्स द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक महिलाएं लंबे समय से खुद को रोक रही हैं. 10 में से 9 महिलाएं कहती है कि वे अपनी इच्छा की बात कहने या इच्छा का काम करने से खुद को रोकती हैं. पोंड्स द्वारा 2019 में किये गए सर्वे के मुताबिक़ 10 में से 6 महिलाएं खुद को कुछ कहने से रोकती हैं.
खुद को रोकने के कारण
59% महिलाओं को जज किए जाने का डर होता है. 58% महिलाएं इस बारे में अनिश्चित रहती हैं कि दूसरे क्या प्रतिक्रिया देंगे जब कि 10 में से 5 यानी 52 % महिलाओं को यह चिंता भी होती है कि वह जो कहेंगी उस से दूसरे उन के बारे में नकारात्मक बात सोचने लगेंगे.
जाहिर है मन का डर कि समाज या परिवार क्या सोचेगा और वह क्या प्रतिक्रिया देगा, यह महिलाओं को खुद के फैसले से अपने मन का काम करने से रोकता है.
खुद को रोकने वाले इस संकोच के अनेक रूप और नाम है. इसे भले ही महिलाएं अंदर की आवाज कहें पर वास्तव में यह एक तरह की नकारात्मक सोच है. यह सोच महिलाओं के आगे बढ़ने के मार्ग की सब से बड़ी बाधा है.
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