तना कमजोर होता है और एक उच्च शिक्षिता, स्वावलंबी, आत्मनिर्भर स्त्री का मन भी. पति छोड़ कर चला जाता है, दूसरी शादी कर लेता है लेकिन वह उस के नाम का सिंदूर कभी नहीं छोड़ती. वह परित्यक्ता का जीवन बिताती है लेकिन सिंदूर की आड़ में अपने पारिवारिक अलगाव को छिपाना चाहती है. पति साथ में नहीं है और सिंदूर भी नहीं लगाएगी तो समाज सवाल उठाएगा. इस से उस के मतभेद बाहर आ जाएंगे और न चाहते हुए भी वह दोषी ठहराई जाएगी. आज हम बेटी को बेटे की ही तरह उच्चशिक्षा दे रहे हैं. उसे किताबी ज्ञान तो हासिल हो जाता है लेकिन साथ ही उसे जन्म से ही लड़की होने का एहसास भी कराते हैं और यह एहसास उस के इस मन में जहर बन कर फैल जाता है, जिस से वह कभी बाहर नहीं आ पाती.
बेटी में कभी इतना साहस नहीं आता कि वह अपनी खुशियों के लिए समाज को ठोकर मार सके. उस की सोच में, उसे उसी समाज में रहना है और वह उसी समाज का हिस्सा है, तो समाज के खिलाफ वह कैसे जाए. गरीब अनपढ़ को तो समझ में आता है कि उस का समाज वैसा ही है, उस की मान्यताएं वैसी ही हैं. लेकिन उच्चशिक्षा हासिल करने के बाद भी अगर स्त्री समाज के डर से खुद को सुरक्षित रखने के लिए सिंदूर लगाती है, तो उस की शिक्षा का क्या महत्त्व रह जाता है?
अगर वह शिक्षित हो कर भी समाज की बेडि़यों को तोड़ने का साहस नहीं दिखाती तो फिर उस ने शिक्षित हो कर नारी के उत्थान में, समाज के विकास में, सामाजिक परिवर्तन में क्या योगदान दिया?