दिल्ली की रहने वाली अनीशा सिंह एक ऐसी महिला उद्यमी हैं, जिन्होंने 21 साल की उम्र से अपने कैरियर की शुरुआत की और आज अपनी मेहनत और लगन के कारण वे ‘माईडाला’ की संस्थापक व कार्यकारी अधिकारी हैं. 2014 में इन्हें वर्ल्ड लीडरशिप अवार्ड और 2012 में रीटेल में लीडिंग वूमन अवार्ड से सम्मानित भी किया गया.

फैमिली बैकग्राउंड और पढ़ाईलिखाई

अपने बारे में बताते हुए अनीशा कहती हैं, ‘‘मैं दिल्ली की हूं और एक जौइंट फैमिली में जन्मी हूं. मैं एक पंजाबी कंजरवेटिव फैमिली से बिलौंग करती हूं. मेरे फादर फौज में थे और मेरी मां डैंटिस्ट हैं. मेरे ग्रैंडफादर बहुत स्ट्रौंग पर्सनैलिटी के थे.’’ वे आगे कहती हैं, ‘‘मैं ने शुरू से ही हर चीज उलटी की. मैं ने कभी यह नहीं सोचा कि मैं लड़की हूं, तो मुझे यह नहीं करना चाहिए. पर मेरी फैमिली कंजरवेटिव थी तो मेरा शौर्ट्स वगैरह पहनना मेरे ग्रैंडफादर को पसंद नहीं था. इस बात पर मेरी उन से खूब लड़ाई होती थी. मैं कहती थी कि जब लड़के पहन सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं पहन सकती? पर मैं अपने ग्रैंडफादर से प्यार भी बहुत करती थी. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन की ग्रैंडडौटर ऐसी बनेगी.’’ अनीशा की पढ़ाई का दौर बेहद दिलचस्प रहा. इस बारे में वे बताती हैं, ‘‘मैं ने दिल्ली के एअरफोर्स स्कूल से पढ़ाई की और कालेज के लिए दिल्ली के प्रोफैशनल कालेज कालेज औफ आर्ट में गई, क्योंकि मुझे आर्ट बहुत पसंद था. मैं जाना अमेरिका चाहती थी पर घर में किसी ने इजाजत नहीं दी.

कालेज औफ आर्ट में पढ़ाई के साथ मैं ने डिसकवरी चैनल में इंटर्नशिप की और दूसरी जगह भी इंटर्नशिप की. जब डिसकवरी पर इंटर्नशिप कर रही थी, तो किसी ने बताया कि अमेरिका में एक बहु अच्छा कम्युनिकेशन स्कूल है और वह पौलिटिकल कम्युनिकेशन के लिए तो नंबर वन है. मुझे पौलिटिक्स में बहुत इंटरैस्ट था, तो मैं ने सोचा कि अमेरिका जाने की कोशिश करती हूं. फिर पेरैंट्स को बहलाफुसला आखिर मैं अमेरिका चली ही गई. मेरी कोई भी बहन बाहर पढ़ने नहीं गई थी फिर भी मुझे इसलिए इजाजत मिल गई कि मैं वहां से मास्टर डिगरी हासिल कर लूंगी. अमेरिका पहुंच कर मैं ने मास्टर्स कोर्स करना शुरू कर दिया और उस के साथ एक हाउस में भी काम करना शुरू किया. उस का नाम था स्प्रिंग बोर्ड और वह वूमन ऐंटरप्रेन्योर को फंडिंग दिलाने का काम करता था.’’ बीते दिनों को याद करते हुए वे आगे कहती हैं, ‘‘जब मैं ने स्प्रिंग बोर्ड से काम करने की शुरुआत की थी, उसे अब याद करती हूं तो लगता है कि यह मेरा बैस्ट टाइम था. जिंदगी में कई मूवमैंट्स होते हैं चेंज होने के. मैं भी चेंज हुई. वहां कुछ सफल महिलाओं को देख कर व उन की स्टोरीज पढ़ कर मैं चकित होती थी. मुझे लगता था कि ये कैसी महिलाएं हैं, जो इतना सब कुछ कर सकती हैं. पति छोड़ कर जा चुका है कोई फंडिंग नहीं है फिर भी अपने स्टोर चला रही हैं. उन को देख कर लगा कि मैं भी कुछ कर सकती हूं.

‘‘फिर उसी वक्त मैं ने एक बिजनैस स्कूल में एक कोर्स में ऐडमिशन ले लिया, जो इनफौरमेशन सिस्टम का था पहले क्लास में मैं ज्यादा बोलती नहीं थी, चुप सी रहती थी. मेरा जो प्रोफैसर था वह हमेशा मुझ से ही पूछता कि अनीशा, तुम बताओ, यह तुम कर सकती हो कि नहीं? पहले तो यह बात मुझे बहुत इरिटेटिंग लगती थी. उस के बाद मुझे समझ में आ गया कि अगर जिंदगी में कुछ बोलोगे नहीं तो कुछ नहीं मिलेगा. जिंदगी में बोलने की कला आना बहुत जरूरी है. प्रोफैसर मुझ से जो पूछता था, वह सही था, क्योंकि औरतें जल्दी बोलती नहीं उन के पास अच्छे आइडियाज तो बहुत होते हैं पर उन में हिचक बहुत होती है. उस ने मेरी हिचक दूर कर दी. फिर क्लास में सब से पहले मैं ही उस से प्रश्न पूछती.’’

मेरी कंपनी का स्वरूप

अपनी कंपनी के बारे में बताते हुए अनीशा कहती हैं, ‘‘मेरी कंपनी माईडाला डौट कौम को अगर आप यूजर की तरह देखें तो यह एक कूपनिंग साइट है, इसलिए इस में आप की बचत होती है. इस के जरीए हैल्थ चैकअप ब्यूटी डील सैलोन और रैस्टोरैंट वगैरह के खर्चे में सेविंग होती है, जो 15% से शुरू हो कर 90% तक होती है. जब मैं ने माईडाला शुरू किया था, तब इंडिया में सिर्फ एक ही औनलाइन इंडस्ट्री बहुत चली थी और वह थी हैगन.’’ पति और घरपरिवार के सपोर्ट को अनीशा बहुत अहम मानती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मेरे काम में मेरे हसबैंड का सपोर्ट बहुत रहा. अगर आप सिंगल हैं तो परिवार का सपोर्ट और अगर शादी हो गई है, तो पति का सपोर्ट मिलना बहुत जरूरी है.

‘‘मैं अपनी दोनों बच्चियों के साथ एक क्वालिटी टाइम बिताती हूं. अमारा को सुबह स्कूल के लिए तैयार करती हूं तो शाम को 2 घंटे उस के साथ बिताती हूं. जब मेरी छोटी बेटी आलिया हुई उस समय मैं पूरी रात सो नहीं पाती थी. फिर भी अमारा को सुबह उठ कर स्कूल के लिए तैयार करती थी.’’

जिंदगी का अच्छा और बुरा पल

मुश्किल दौर को याद करते हुए अनीशा बताती हैं, ‘‘मेरी लाइफ का सब से अच्छा और सब से बुरा समय कौन सा रहा. यह सवाल बहुत से लोग मुझ से पूछते हैं. मेरा इस के बारे में यही कहना है कि मेरा तो हर दिन बैस्ट डे औफ लाइफ रहता है. हां, जब हम ने कंपनी शुरू की थी तभी अमारा हुई थी. हम ने उस में अपनी पूरी सेविंग लगा दी थी. उस वक्त हमारे पास जो इनवैस्टर्स आ रहे थे उन्होंने कंपनी में काफी चेंज कराने की बात की थी. इन को हायर कर लो, इन को हटा दो वगैरह. ऐसा होने पर हम ने बहुत से इनवैस्टरों को मना कर दिया था. फिर ऐसा लगा कि जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. पर मेरी टीम सपोर्टिव थी. मैं ने टीम के लोगों को अपनी बात बताई तो उन्होंने कहा कि हम चलते रहेंगे, रुकेंगे नहीं. फैमिली ने भी साथ दिया.’’

महिलाएं स्ट्रौंग और केयरिंग दोनों

अनीशा मानती हैं कि आज की महिलाओं को भी अपने अंदर बदलाव लाने की जरूरत है. वे कहती हैं, ‘‘महिलाओं की कमजोरी यह है कि वे गिल्ट क्वीन हैं यानी वे कोई भी गलती अपने ऊपर रख कर बैठ जाती हैं और अपनेआप से सवाल करती रहती हैं कि हम कर पाएंगे या नहीं? जबकि अगर हम अपनी क्षमता को सही ऐंगल से देखें तो सब कुछ ठीक हो सकता है, क्योंकि महिलाएं स्ट्रौंग और केयरिंग दोनों होती हैं.’’

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