क्या आपकी शादी दोराहे पर खड़ी है? आपके पति ने आपका भरोसा तोड़ दिया है? आपके पति के सम्बन्ध दूसरी औरतों से हैं? आपके पति शराबी हैं? शराब पीकर आपको पीटते हैं? आपको भूखा रखते हैं? घर और बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठाते? दहेज की मांग करते हुए आपका उत्पीड़न और शोषण करते हैं? आपको और आपके परिजनों को भद्दी गालियां देते हैं? यदि आपके साथ ऐसा हो रहा है तो आप तलाक के रास्ते पर जा सकती हैं.

ऐसे रिश्ते में जहां प्रेम, विश्वास और सम्मान न रह जाए, उससे अलग हो जाना ही बेहतर है. आत्महत्या या हत्या जैसी सिचुएशन आने से पहले ही उस सीमारेखा को पहचान लेना चाहिए, जहां औरत की सुरक्षा की गारंटी खत्म हो रही है. जीवन अनमोल है और इसको त्रासदी झेलने के लिए मजबूर करते रहना कोई समझदारी नहीं है.

लेकिन आज कल छोटी-छोटी बातों पर जिस तरह पति-पत्नी तलाक की अर्जियां थामे अदालतों में खड़े हैं, उसे देखकर लगता है कि आज की पीढ़ी में सहनशीलता, एक दूसरे को समझने की क्षमता, प्रेम और सम्मान का नितांत अभाव है.

रश्मि अपने पति ऋषभ से लड़कर ससुराल से इसलिए चली आयी क्योंकि ऋषभ ज्यादातर अपनी मां के बनाये खाने की तारीफ करता था. उसे अपनी मां की बनायी कढ़ी, राजमा ही पसन्द था और वह रश्मि को कहता था कि वह उनकी तरह बनाना सीख ले. रश्मि को लगने लगा था कि ऋषभ उसका पति कम ‘ममाज बॉय’ ज्यादा है, लिहाजा वह उसको छोड़ आयी. मायके आने के बाद उसने अपने घर में ऋषभ और उसकी मां की इतनी बुराइयां कीं कि रश्मि के दोनों भाई और पापा गुस्से में भर उठे और उसकी ससुराल जाकर उन्होंने हंगामा बरपा दिया. दोनों परिवारों के बीच खूब गाली-गलौच हुआ और मामला हाथापायी तक पहुंच गया. रश्मि की नासमझी, जलन और सहनशीलता की कमी ने ऐसी सिचुएशन बना दी कि दोनों पक्षों के बीच समझौते का रास्ता ही बंद हो गया. अब दोनों तलाक की अर्जियां लेकर अदालत में खड़े हैं.

जबकि हकीकत यह थी कि बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद ऋषभ को उसकी मां ने बड़ी मुसीबतें उठा कर पाला था और पढ़ा-लिखा कर लायक बनाया था. ऋषभ ने अपनी मां की तकलीफों को बचपन से देखा था. मां ने ही उसे पिता का प्यार भी दिया था. घर में ही कोचिंग क्लासेज चला कर मां किस मेहनत से पैसा कमाती थीं, उसने देखा था. कई बार तो अपनी दवाएं लाने की जगह वह उस पैसे से उसकी फीस भरा करती थी ताकि उसे स्कूल में कोई कुछ कह न सके. आज अगर ऋषभ एक बड़ी कम्पनी में बड़े ओहदे पर है, तो इसका पूरा श्रेय उसकी मां को जाता है. ऋषभ को प्रेम और सुरक्षा उसकी मां से मिली थी, लिहाजा वह उनके बेहद करीब था. हर बच्चे को अपनी मां के हाथ का खाना ही पसन्द होता है, ऐसे में अगर वह अपनी पत्नी से मां के हाथ के बने राजमा या कढ़ी की तारीफ करता था, तो रश्मि को इस बात से नाराज होने के बजाय यह सोचना चाहिए था कि उसे भी तो अपनी मां के हाथ का बना खाना पसन्द है. ऐसे में ऋषभ गलत कहां है? अगर वह अपनी सास से जलने की जगह उनसे वैसी ही कढ़ी और राजमा बनाना सीख लेती तो ऋषभ ही नहीं, उसकी मां के दिल में भी बहुत खास जगह बना लेती, मगर उसकी नासमझी और जलन ने तो उसकी ही नहीं, बल्कि ऋषभ और उसकी मां की जिन्दगी भी कष्टों से भर दी थी.

तलाक के बाद रश्मि के पिता बुढ़ापे में एक बार फिर उसके लिए दूल्हे की तलाश में भटक रहे हैं, तो वहीं बहन की शिकायत पर जीजा को पीट देने वाले उसके दोनों भाई अपनी-अपनी पत्नियों और बच्चों में ही बिजी रहते हैं. शेरनी की तरह अकड़ कर ससुराल की दहलीज लांघने वाली रश्मि अब अपने मायके में भीगी बिल्ली सी डरी-सहमी रहती है. कभी मां उसकी फूटी किस्मत का रोना किसी के भी सामने रोने लगती हैं, तो कभी भाभियां उसको ताने मारने लगती हैं. निराश पिता घर में घुसते ही उसके कारण मां को उल्टा-सीधा सुनाना शुरू कर देते हैं, तो वहीं कभी बहन को सिर-आंखों पर बिठाने वाले उसके भाई घर से बाहर जाते वक्त उसका चेहरा देखना भी अपशकुन मानते हैं.

एक मल्टीनेशनल कम्पनी में काम कर रहे अंकुश नय्यर ने अपनी पत्नी नन्दिता को इसलिए तलाक दे दिया, क्योंकि नन्दिता का झुकाव ईसाई धर्म के प्रति होने लगा था. अंकुश ने नन्दिता को बाईबल पढ़ते पकड़ा था. उसका पीछा करते हुए वह चर्च तक भी गया था. हालांकि नन्दिता सिर्फ उस धर्म को जानने के प्रति जिज्ञासु थी. मगर ये बात अंकुश को इतनी नागवार गुजरी कि उसने नन्दिता की बुरी तरह पिटाई कर दी. उच्च शिक्षा प्राप्त नन्दिता को यह सहन नहीं हुआ और वह अंकुश को छोड़कर अपने मायके चली गयी. दूसरे ही दिन उसने अपने वकील से तलाक का नोटिस भिजवा दिया. हैरानी की बात यह है कि दोनों ने लव मैरिज की थी. शादी से पहले दो साल तक एक दूसरे को डेट भी करते रहे थे, मगर धर्म जैसी चीज के लिए दोनों ने अपने प्यार की बलि चढ़ा दी. आज दोनों अकेले और परेशान हैं. अंकुश का जीवन जहां शाम ढलते ही शराब में डूब जाता है, वहीं नन्दिता जीविका कमाने के चक्कर में कहीं इस दफ्तर तो कहीं उस दफ्तर चक्कर काटते नजर आती है. पहले कभी नौकरी की बात सोची ही नहीं थी, मगर मायके में पिता की थोड़ी सी पेंशन और भाई के अपने परिवार की जिम्मेदारी के बीच उसकी जरूरतें तो नौकरी किये बिना पूरी होने से रहीं.

मेरा मानना है कि तलाक का फैसला कभी भी जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए. थोड़ी-बहुत खटपट तो हर घर में होती रहती है. हम अपने मां-बाप, भाई-बहन से लड़ पड़ते हैं, पर क्या उन्हें अपने जीवन से निकाल फेंकते हैं? कतई नहीं. फिर पत्नी या पति को क्यों अपने जीवन से दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकने पर उतारू हो जाते हैं, वह भी ऐसी छोटी-छोटी बातों पर? जाहिर है, हमारी सोचने-समझने और सहन करने की ताकत कमजोर पड़ती जा रही है. दो भिन्न परिवेश में पले-बढ़े दो लोग जब शादी के बन्धन में बंध कर एक-दूसरे के निकट आते हैं तो एक दूसरे को समझने के लिए और परिवार के अन्य सदस्यों को समझने के लिए उन्हें उचित समय और सलाह की जरूरत होती है. रिश्तों में प्रगाढ़ता समय के साथ-साथ बढ़ती जाती है. अगर कोई नवविवाहिता यह सोचने लगे कि जिस दिन मैं ब्याह कर पति के घर आयी, बस उसी दिन से पति अपनी मां-बहन को दरकिनार कर उसके ही पल्लू से बंध कर घूमने लगे, तो ऐसा न तो सम्भव है, और न ही उचित है. रिश्तों को समझने और उन्हें मजबूत बनाने के लिए लड़की को ज्यादा कोशिश करनी होती है.

पति-पत्नी में अलगाव या तलाक की स्थिति तब आनी चाहिए, जब हालात बहुत हिंसक हो जाएं, लड़की की जान को खतरा हो और सुलह-समझौते की कोई गुंजाइश न बची हो. परिवार को टूटने से बचाने के लिए तो अदालतें भी आखिरी हद तक कोशिश करती हैं. पारिवारिक सुलह केन्द्रों में पति पत्नी और उनके माता पिता की काउंसलिंग के कई-कई राउंड चलते हैं. छह महीने से लेकर दो साल तक तलाक की लम्बी कार्रवाई के बीच अदालत पति पत्नी को कई मौके देती है कि वे किसी तरह एक हो जाएं.  क्योंकि अदालतें भी शादी के महत्व और स्थायित्व पर जोर देती हैं. ऐसे में आज के युवा क्यों नहीं तलाक का फैसला अच्छी तरह सोच समझ कर लेते हैं?

दोस्तों, यह जरूरी नहीं कि तलाक लेने से आपकी जिन्दगी में छाये परेशानी के काले बादल छंट ही जाएंगे. इसके उलट अकसर यह देखा गया है कि तलाक से एक समस्या तो हल हो जाती है, लेकिन उसकी जगह एक नयी समस्या खड़ी हो जाती है. डॉ. ब्रैड साक्स ने अपनी किताब ‘द गुड इनफ टीन’ में लिखते हैं कि जो पति-पत्नी तलाक का फैसला करते हैं, वे इसकदर अपने ख्वाबों-खयालों में खो जाते हैं कि वे सोचने लगते हैं कि इससे एकदम से सारी समस्याओं का हल हो जाएगा, रोज-रोज की किट-किट से हमेशा की छुट्टी मिल जाएगी, उनके रिश्ते से खटास चली जाएगी और जिन्दगी में चैन-सुकून आ जाएगा. लेकिन यह उतना ही नामुमकिन है जितना नामुमकिन एक ऐसी शादीशुदा जिन्दगी जीना, जिसमें सिर्फ खुशियां ही खुशियां हों.

इसलिए यह जानना बेहद जरूरी है कि तलाक लेने के क्या-क्या नतीजे हो सकते हैं. इन बातों को ध्यान में रखकर ही तलाक का फैसला लेना चाहिए.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...