कहावत है कि इंसान की सोच ही उसे दूसरों से अलग पहचान दिलाती है. लाइमरोड डौट कौम की सीईओ और फाउंडर सुचि मुखर्जी पर यह कहावत पूरी तरह से लागू होती है. सुचि को सफल और खास बनाया उन की अलग सोच ने. अपने बारे में बताते हुए सुचि कहती हैं, ‘‘मैं दिल्ली से हूं और 15 सालों के बाद लाइमरोडडौटकौम के निर्माण के लिए वापस आई हूं. मैं ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, यूके से इकोनौमिक्स में बीए करने के बाद कैंब्रिज कौमनवैल्थ स्कौलर के रूप में लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स से मास्टर्स इन फाइनैंस ऐंड इकानौमिक्स की डिग्री हासिल की.’’
सुचि ऐसे लोगों को पसंद करती हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपना रास्ता बना लेते हैं. वे कहती हैं, ‘‘मैं उन लोगों को बहुत पसंद करती हूं, जो मौजूदा स्थिति को चुनौती देते हैं और अपने खुद के परिदृश्य में बदलाव ले कर आते हैं. मेरे लिए स्थायी बदलाव लाना हमेशा से प्रमुख थीम रहा है और मैं हमेशा ऐसे कंज्यूमर तकनीकी उत्पाद बनाने की उत्सुक रही, जो लाखों यूजर्स के जीवन को छुएं. आज लाइमरोडडौटकौम पर मैं महिलाओं के लाइफस्टाइल उत्पादों के लिए भारत के सब से विस्तृत प्लेटफौर्म के निर्माण की यात्रा से जुड़ी हूं.’’
मेरी प्रेरणा
एक कहावत यह भी है कि जहां चाह वहां राह. व्यवसायी के तौर पर अपनी पहचान बनाने का आइडिया कब और कैसे आया. इस बारे में सुचि बताती हैं, ‘‘लाइमरोडडौटकौम का विचार मेरे दूसरे बच्चे के जन्म के बाद आया, जब मैं एक मैगजीन पढ़ रही थी. पेज पलटते हुए मैं ने एक ज्वैलरी देखी, जिसे मैं छूना और खरीदना चाहती थी. उस समय मुझे जो 2 चीजें पता चलीं उन में एक तो यह थी कि ऐसी कोई कंज्यूमर तकनीक नहीं थी, जो उत्पादों को तलाशना मैगजीन के पन्ने पलटना जितना आसान और मनोरंजक बना दे. और दूसरी यह कि ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां व्यक्ति उन बेहतरीन उत्पादों का संग्रह देख सके, जिन्हें भारत से बाहर निर्मित किया जा रह हो और भेजा जा रहा हो. इसी विचार के बाद लाइमरोड का जन्म हुआ, जो महिलाओं के लिए सब से विस्तृत और शानदार औनलाइन लाइफस्टाइल प्लेटफौर्म है.’’
मेरी उपलब्धि
यों तो सुचि ने अपने बलबूते अपनी पहचान बना कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है पर फिर भी इसे वह उपलब्धि नहीं मानतीं. अपनी असली उपलब्धि के बारे में वे कहती हैं, ‘‘एक दिन मैं ने देखा कि मेरी 9 वर्ष की बेटी बीच पर बैठ कर एक गड्ढा खोद रही थी. दरअसल, वह अफ्रीका के सूखाग्रस्त इलाकों तक एक सुरंग बनाना चाहती थी, जहां बच्चों को पानी पीने के लिए मीलों चलना पड़ता है. ‘‘मेरा 4 वर्ष का बेटा स्कूल जाने के लिए खुद तैयार होना चाहता है. मैं सोचती हूं कि कुछ बड़ा कर के जिंदगियों को लाभान्वित करने की यह चाहत और स्वतंत्रता की भावना उन में उन के पैरेंट्स से आई है, यही मेरे जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि है.’’
सेहत मंत्रा
एक उद्यमी के लिए काम और व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बैठाना काफी कठिन होता है. फिर भी सुचि अपनी सेहत के प्रति सजग हैं. वे बताती हैं, ‘‘मैं स्वस्थ आहार, सलाद, फल और हरीभरी सब्जियां खा कर वर्कआउट की जरूरत नहीं होने देती हूं. लेकिन वर्कआउट से अच्छा कुछ भी नहीं है, इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा जिम जाने की कोशिश करती हूं. प्लानिंग और टाइम का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना और इस योजना का पालन करते रहना सब से महत्त्वपूर्ण है.’’ भारत की विकासशील महिलाओं को सुचि यह संदेश देना चाहती हैं कि उन के लिए सब से महत्त्वपूर्ण है शिक्षा, क्योंकि शिक्षा से आत्मविश्वास आता है. ऐसा होने से वे महिला होने पर भी पुरुषों की भांति कोई भी काम कर सकती हैं.