आज लड़कियां ऊंची डिगरियां हासिल कर रही हैं. शादी से पूर्व ही वे जौब करने लगती हैं. शादी के बाद भी वे जौब जारी रखना चाहती हैं. पति या ससुराल के अन्य लोगों को भी इस में कोई आपत्ति नहीं होती, क्योंकि आज लड़के भी कामकाजी पत्नी चाहते हैं ताकि दोनों की आमदनी से अपनी गृहस्थी को चला सकें. लेकिन उन की लाइफ में नया मोड़ तब आता है जब उन के बच्चा होता है. जब तक वह स्कूल जाने नहीं लगता तब तक उसे अपनी मां की जरूरत होती है. ऐसे में उसे अपने बच्चे की परवरिश के लिए जौब छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि उस के पास 2 ही विकल्प होते हैं कि या तो वह जौब कर ले या फिर बच्चे की परवरिश. वह शिशु की परवरिश की खातिर जौब छोड़ने का विकल्प चुनती है.
बच्चा मां पर निर्भर
आजकल एकाकी परिवारों का जमाना है. ऐसे में सासससुर या देवरानीजेठानी साथ नहीं रहतीं. प्रसव के बाद यदि प्रसूता अपनी मां या सास को बुलाती भी है तो वे कुछ दिन रह कर वापस चली जाती हैं. वे 4-5 साल तक साथ नहीं रह सकतीं. पति को भी अपने काम से इतना समय नहीं मिलता कि वह बच्चे की परवरिश में अपनी पत्नी का हाथ बंटाए. फिर वैसे भी बच्चे को पिता से ज्यादा मां की जरूरत होती है. मां की गोद में आ कर ही उसे सुरक्षा का एहसास होता है. कुछ बच्चे तो मां के बगैर 1 घंटा भी नहीं रहते. मां थोड़ी देर भी न दिखे तो रोरो कर बुरा हाल कर लेते हैं.