अगर कोईर् यह कहे कि योग कोई धार्मिक कृत्य नहीं है, तो उस की नादानी पर या तो हंसा जा सकता है या फिर बेहिचक यह कहा जा सकता है कि वह नए दौर के पनपते धार्मिक पाखंडों के साजिशकर्ताओं में से एक है. हर साल सरकार अरबों रुपए खर्च कर के देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनवाती है. इसे मोदी सरकार की सफलता के बजाय इस नए नजरिए से देखा जाना मौजूं है कि यह जनता पर गैरजरूरी बोझ है. आखिरकार योग के प्रचारप्रसार और इसे सरकारी स्तर पर मनाने के लिए हमारे योगाचार्यों को अब खूब पैसा मिल रहा है, कुछ सरकार से तो कुछ अंधभक्तों से.
वजह सिर्फ इतनी है कि ‘भारत माता की जय’ बोलने के टोटके के बाद योग ऐसा धार्मिक कृत्य है जो ऊपरी तौर पर कर्मकांड से मुक्त है यानी एक ऐसा काम है जिस के एवज में आप को पंडों को सीधे कोई भुगतान नहीं करना पड़ता. सरकार बताना यही चाह रही है कि कर्मकांडों से इतर भी हिंदू धर्म है जिसे अब गैर शुद्ध दुकानदार भी बेच कर अपनी रोजीरोटी चला सकते हैं.
योग की आड़ में बिजनैस
यहां यह जानना बेहद दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटरी उन बाबाओं से नहीं बैठती, जो पूजापाठ, यज्ञ, हवन वगैरह को पूर्णकालिक रोजगार या उद्योग बना चुके हैं, बल्कि उन की पटरी उस किस्म के बाबाओं से बैठती है, जो धर्म के कारोबार में नएनए आइडिए लाते हैं, वे भी ऐसे कि ग्राहक हिंदुत्व से मुंह न मोड़े. इन में रामदेव भी शामिल हैं जिन का प्रचार 2014 में मोदी के खूब काम आया और अब पतंजलि के उद्योग में पनप रहा है.
खुशियां बेचने वाले ‘आर्ट औफ लिविंग’ के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर और योग की आड़ में अब हेयर रिमूवर छोड़ कर सबकुछ बेचने बाले योग गुरु के खिताब से ख्वाहमख्वाह नवाज दिए गए बाबा रामदेव बेवजह मोदी की पसंद नहीं हैं, जो गैरहिंदुओं से भी सूर्य पूजा करवाने और ओम भी कहलवाने की कूबत रखते हैं. विश्वभर में योग का प्रचार किया गया जबकि जो व्यायाम योग के नाम किए जाते हैं उन का तो पुराणों में जिक्र ही नहीं है.
धर्म के माने संकुचित क्यों
बात सही है कि धर्म के माने इतने संकुचित भी नहीं होने चाहिए कि वे अगरबत्ती के धुएं और 5-10 रुपए की भगवान की तसवीर में गुंथ कर रहे जाएं. धर्म की व्यापकता दिखाने के लिए सरकार योग के रैपर को भी एक प्रोडक्ट की तरह ले आई है, जिस का बाकायदा पिछले सालों से शुद्धिकारण किया जा रहा है और उम्मीद की जानी चाहिए कि योग पैसे वाले होते जा रहे अमीर हिंदुओं में इफरात से बिकेगा.
अभी करो योग रहो निरोग का दावा ठीक एक चमत्कार के रूप में किया जा रहा है जैसे कभी यह कहा जाता था कि हनुमान का नाम लेने भर से प्रेतात्माएं नजदीक नहीं फटकतीं. इस पर अंधविश्वासी लोगों ने सहज ही भूतप्रेतों के वजूद पर भरोसा कर लिया था. आज भी ये बुरी और भटकती आत्माएं गांवदेहातों के पीपल और पुराने पेड़ों पर लटकती मिल जाएंगी, जिन से बचाने का ठेका पंडितों ने दक्षिणा के एवज में ले रखा है.
धार्मिक लालसा
योग से बीमारियां दूर होती हैं इसीलिए कोविड-19 के दौरान रामदेव ने अपनी दवा जारी की. और कोई करता तो ड्रग कंट्रोलर उसे जेल में डलवा देता. अभिजात्य और शिक्षित हो चले नव हिंदुओं की धार्मिक लालसा को पकड़े मोदीजी यह दावा किए जा रहे हैं कि यह लालसा मुक्ति और मोक्ष की है जो योग से ही संभव है, स्वास्थ्य तो शुरुआती प्रलोभन भर है.
आप खुद योग करेंगे तो देरसवेर सीधे भगवान से कनैक्ट हो जाएंगे, फिर जीवन में कोई मोह या वासना नहीं रह जाएगी. आप देह से एक प्रकाशपुंज में परिवर्तित हो जाएंगे, जो कभी भी देह का धारण और त्याग इच्छा से कर सकता है यानी अतिमानव या ईश्वर बनने के लिए अब किसी को हिमालय की तरफ जाने की जरूरत नहीं रहेगी.
योगासनों को बेचने के लिए डाक्टरों और विचारकों की भी एक फौज तैयार की गई है. विदेशों में जो ईसा की मूर्ति के सामने बैठ कर अपने दुखों को दूर करने की कामना करते हैं, वे योग को भी ऐसे ही लपक रहे हैं जैसे संडे को चर्च में जाना. साधारण व्यायाम ज्यादा कारगर हैं तभी फिजियोथेरैपी और जिम चलाए जाते हैं जो शरीर विज्ञान के अनुसार चलते हैं.