अगर संख्या के लिहाज से देखें तो दुनियाभर में कोरोना से पीड़ित मरीजों में महज 16 से 18 फीसदी तक ही 15 से 25 साल के युवा हैं. जबकि सबसे ज्यादा प्रभावित अधेड़ या बूढ़े लोग हैं. लेकिन कोरोना के चलते कॅरियर पर लटकती तलवार और महत्वाकांक्षाओं के पर कतरे जाने के मामले में इस महामारी से सबसे ज्यादा पीड़ित युवा हैं. इस कोरोना संकट में न सिर्फ सबसे ज्यादा नौकरियां युवाओं ने खोयी हैं बल्कि उम्मीदों से भरा भविष्य भी सबसे ज्यादा युवाओं ने ही खोया है. कोरोना एक तरह से युवाओं पर कहर बनकर टूटा है.
हिंदुस्तान का हाल
हिंदुस्तान के लिए तो यह और भी परेशानी का सबब है क्योंकि पिछले दो दशकों में हिंदुस्तान को दुनिया की कतार की संभावनाओं वाले देश में खड़े करने वाले युवा ही हैं. ये युवा ही हैं जिन्होंने अपनी रात दिन की मेहनत से हिंदुस्तान को दुनिया की पांच सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाया है. ये युवा ही हैं, जिन्होंने भारत में आने वाले रेमिटेंस को हर साल न केवल पिछले साल के मुकाबले आगे ले गये हैं बल्कि पूरी दुनिया की नजरों में भारत को खटकने वाला मुल्क बना दिया है. अमेरिका से लेकर आॅस्ट्रेलिया तक कोई ऐसा देश नहीं हैं जो भारतीय युवाओं से, अपने युवाओं की संभावनाओं के छीने जाने को लेकर आशंकित न हो. लेकिन आज अव्वल तो किसी भी देश में नयी नौकरियां नहीं आ रहीं और पुरानी नौकरियों में भी करीब करीब 50 फीसदी खत्म हो गई हैं या हो रही हैं.
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हताश है दुनिया का मैन पावर हब
इस स्थिति में भारत जैसे देश के युवा हताश हैं; क्योंकि भारत को विश्व का ‘स्किल मैन पावर हब’ कहा जाता है. लेकिन अब यही हब बेरोजगारी के हब में न तब्दील हो जाए, इसको लेकर युवा बेहद डरे हुए हैं. कोरोना ने एक झटके में भारतीय युवाओं का सतरंगी भविष्य उनसे छीन लिया है. कोरोना के चलते युवा इस कदर हताशा और डिप्रेशन में चले गये हैं कि पिछले चार महीनों में युवाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं में पांच से आठ फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो गई है. यही नहीं कोरोना से भले युवा आमतौर पर बचे हों लेकिन इसने जिस तरीके से युवाओं के भविष्य पर काली चादर तानी है, उस कारण आज बड़े पैमाने पर युवा तमाम लाइफस्टाइल बीमारियों की चपेट में आ गये हैं.
सेहत के संकट से घिरे युवा
बड़े पैमाने पर करीब 50 से 55 फीसदी तक कोरोनाकाल में युवाओं का ब्लड प्रेशर बढ़ गया है, इसकी पुष्टि दुनिया में हुए कई तरह के सर्वेक्षणों और युवाओं द्वारा की जाने वाली निराश करने वाली हरकतों से हो रही है. कोरोना के चलते बड़े पैमाने पर युवा अनिद्रा का शिकार हो गये हैं. भारत जैसे देश में पिछले चार महीनों में अनिद्रा और अर्धनिद्रा से लाखों युवा पीड़ित हुए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही दुनियाभर के युवाओं पर सुरक्षित भविष्य के तनाव का जबरदस्त असर देखा था. नौकरी को लेकर असुरक्षा के चलते भारत में इन दिनों करीब 75 से 80 फीसदी युवक चिड़चिड़े हो गये हैं. यूं तो लाॅकडाउन के दौरान देश में अपराधों की संख्या नहीं बढ़ी, लेकिन अपराधियों में युवाओं की भागीदारी कोरोना के पहले के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ गई है.
अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं युवा
ये तमाम आंकड़े चीख चीखकर आखिर हमसे क्या कह रहे है या कहने की कोशिश कर रहे हैं? ये तमाम आंकड़े, ये तमाम स्थितियां, हम सुन सकें तो चीख चीखकर कह रही हैं कि हमारे युआवों की हालत बहुत खराब है. यह सही बात है कि आज अर्थव्यवस्था में यूथ रीढ़ की हड्डी वाली भूमिका निभा रहा है, जिस कारण उसके खर्च, उसके रहन-सहन में आमूलचूल बदलाव हुए हैं. लेकिन इसकी वह भारी कीमत भी चुका रहा है. आप कहेंगे फल भी तो वही भारी कीमत भी चुका रहा है. कोरोना के चलते हुए ल\कडाउन के कारण देश में सबसे ज्यादा आमदनी युवाओं की घटी है और सबसे ज्यादा बोझ भी उन्हीं पर बढ़ा है. क्योंकि देश में करीब 56 फीसदी ईएमआई युवा भरते हैं. इसमें सबसे ज्यादा ईएमआई दुपहिया वाहनों की होती है. कोरोना के चलते लाॅकडाउन में चूंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौरपर करीब 60 फीसदी युवाओं की आय में घटोत्तरी हुई है, इसलिए ईएमआई का बोझ, भविष्य में इसे दे पाने की आशंका युवाओं के खाये डाल रही हैं.
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विश्व जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक सन 2020 में भारत की औसत आयु 29 वर्ष होगी. जबकि ठीक इन्ही दिनों चीन की औसत उम्र 37, अमरीका की 45 और यूरोप तथा जापान की औसत आयु 48 वर्ष होगी. सन 2011 की जनगणना के जनसांखिक आंकड़ों के अनुसार भारत में 60 करोड़ 13 से 35 वर्ष की आयु के युवा हैं. इन आंकड़ो से स्पष्ट है कि भारत में कामकाजी व्यक्तियों कि संख्या दुनिया में सबसे अधिक है. पहले ये आंकड़े हमे खुश करते थे लेकिन अब यही आंकड़े हमें परेशान करते हैं क्योंकि इन आंकड़ों के पक्ष में बहुत सारी उपलब्धियां और कमाईयां आती थी, अब इन्हीं के पक्ष में आशंकाएं और निराशाएं आ रही हैं. इसलिए सिर्फ भारत को ही नहीं दुनिया के हर देश को पोस्ट कोरोनाकाल हेतु नयी सोच, नयी योजना और नये विश्वास सिर्फ युवाओं को ध्यान में रखकर लानी चाहिए.