युवा पीढ़ी पर नशीले पदार्थों की पकड़ लगातार मजबूत हो रही है. युवतियों में भी ड्रग्स स्टेटस सिंबल बन जाने से इस बुराई की समाप्ति और भी मुश्किल होती जा रही है. स्कूलकालेज भी नशे से अछूते नहीं रहे. नशीले पदार्थों को आमतौर पर 4 भागों में बांटा जाता है- अफीम व अफीम से बने मारफिन, कोडीन, हेरोइन व ब्राउन शुगर, गांजा व गांजे से बने चरस व हशीश, कोकीन, सैन्कोटिक ड्रग्स जैसे एलएसडी, मैंड्रोक्स व पीसीपी. ये सभी बेहद खतरनाक हैं. छोटे नगरों व गांवों में सुल्फे गांजे ने अपने पैर पसार रखे हैं, तो बड़े नगरों में हेरोइन व ब्राउन शुगर ने अपनी जड़ें जमा ली हैं. मुंबई में इन का सेवन करने वालों में 14 से 25 आयुवर्ग के युवकयुवतियों की संख्या सब से अधिक है.

युवक युवतियों में नशाखोरी की वजह उन का किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होना है. आर्थिक दिक्कत, नौकरी की तलाश, असफल प्रेम, मनचाही सफलता न मिलना, परीक्षा में फेल हो जाना, सुखशांति न मिलना, परिवार में इग्नोर फील करना, किसी काम में मन न लगना जैसे कितने ही कारण हैं, जिन से बचने के लिए उन्हें नशे का सेवन ही आसान व एकमात्र उपाय नजर आता है. जबकि नशा किसी समस्या का हल नहीं है.

नशे की गिरफ्त में लड़कियां

पश्चिमी सभ्यता व आधुनिक विचार अपनाने वाले कितने ही परिवारों की लड़कियां स्कूल व कालेज से ही नशीले पदार्थों का सेवन करने लगती हैं. शुरू में वे चोरीछिपे अपना शौक पूरा करती हैं, पर बाद में यह शौक लज्जा व शर्म की सारी हदें लांघ जाता है. नशे को आधुनिकता का पर्याय व नई पीढ़ी की पहचान समझने वाली लड़कियां फैशन, पारिवारिक परिस्थिति, कुंठा, हीनभावना, तनाव आदि से मुक्ति के लिए इसे अपनाती हैं. इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च लड़कियों के नशा करने के पीछे 3 कारण मानता है- मित्रों का प्रभाव, अपने से बड़ों की नकल व भूख को दबाना. इन में दोस्तों के प्रभाव में नशा करने वाली लड़कियों की संख्या सर्वाधिक है. युवतियों में सिगरेट व शराब पीने की निरंतर बढ़ रही प्रवृत्ति तो हानिकारक है ही, नशीले पदार्थों का सेवन तो इस से भी ज्यादा घातक है.

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