हर युवा अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए प्रयत्नशील रहता है. वे अकसर बहस करते रहते हैं, कार्य पर ध्यान नहीं देते. वे दूसरों के कार्यों, विचारों का विरोध कर सकते हैं. युवा अकसर दिवास्वप्न देखते हैं. अपने विचारों में खोए रहते हैं. युवाओं को अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व व अलग अस्तित्व बनाना होता है. इस के लिए वे बड़ों, मातापिता की नसीहत, सलाह को नजरअंदाज कर सकते हैं.
अनेक युवा अपने परिवारों से ज्यादा दोस्तों के साथ समय व्यतीत करना पसंद करते हैं. लेकिन जब इन के अनादरपूर्ण, उपेक्षापूर्ण और शत्रुतापूर्ण व्यवहार से दूसरे प्रभावित होते हैं तो इन का पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक जीवन प्रभावित होता है. ऐसा व्यवहार उन के हमउम्र वालों से ज्यादा होता है. अगर किसी युवा में यह स्थिति लगातार 6 माह से ज्यादा समय तक रहती है तो यह मानसिक बीमारी मानी जाती है. इस को मनोचिकित्सक अपोजीशनल डिफिऐंट डिसऔर्डर यानी ओडीडी कहते हैं.
असहयोग की भावना
हर परिवार में गलत व्यवहार की सहनक्षमता भिन्नभिन्न होती है. कुछ परिवारों में मामूली सा अनुशासन तोड़ने को बहुत बुरा माना जाता है, जबकि ज्यादातर परिवारों में विरोधी, उपेक्षापूर्ण व्यवहार को अनदेखा कर दिया जाता है. इस तरह के व्यवहार को इन परिवारों में तभी गलत समझा जाता है, जब वह समस्याएं उत्पन्न करता है. रोगग्रसित युवा दूसरों को सहयोग नहीं करते, दूसरों के साथ उपेक्षा, तिरस्कारपूर्ण और शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं. नतीजतन, उन की दैनिकचर्या, कार्यक्षमता प्रभावित होती है. इन को कभी भी गुस्सा आ जाता है और बड़ों से बेवजह बहस करते हैं, घर के नियममान्यताओं को तोड़ते हैं, जानबूझ कर दूसरों को नाराज करते हैं और गुस्सा दिलाते हैं.