मीनू शक्की थी और अपने पति सुवीर पर अकसर शक करती रहती थी. उसका यही शक एक दिन दोनों में अलगाव की वजह बन गया. उस दिन कोर्ट में आखिरी पेशी थी...
उस दिन अदालत में सुवीर से तलाक के लिए चल रहे मुकदमे की आखिरी पेशी थी. सुबह से ही मेरा मन न जाने क्यों बहुत घबराया हुआ था. इतना समय बीत गया था, पर थोड़ी छटपटाहट और खीज के अलावा मेरा दिल इतना बेचैन कभी नहीं हुआ था.
शायद इस की वजह यह थी कि उस के ठीक 8 दिन बाद ही दीवाली थी. किसी को तो शायद याद भी न हो पर मुझे खूब याद था कि 4 साल पहले दीवाली से 8 दिन पहले ही सुवीर से रूठ कर मैं मायके चली आई थी.
क्या पता था कि जिस दिन मैं ससुराल की देहरी छोड़ूंगी, ठीक उसी दिन मेरे और सुवीर के तलाक के मुकदमे का फैसला होगा.
सुवीर से बिछुड़े मुझे पूरे 4 वर्ष हो चुके थे. साल के और दिन तो जैसेतैसे कट जाते थे परंतु दीवाली आते ही मेरे लिए वक्त जैसे रुक सा जाता था, रुलाई फूटफूट पड़ती थी. जब सब लोग खुशी और उमंग में डूबे होते तो मैं अपने ही खींचे दायरे में कैद हो कर छटपटाती रहती.
यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि सुवीर से बिछुड़ कर यह सारा वक्त मैं ने अजीब घुटन सी महसूस करते हुए काटा था. इस के बावजूद सुवीर से तलाक की अर्जी मैं किस निर्भीकता और जिद में दे आई थी, इस पर मुझे अभी भी अकसर आश्चर्य होता रहता है. शायद उस वक्त मैं ने सोचा था कि सुवीर तलाक की अर्जी पर अदालत का नोटिस मिलते ही कोर्टकचहरी के चक्करों से बचने के लिए अपनी गलती महसूस कर मुझे स्वयं आ कर मना कर ले जाएंगे पर यह मेरी भूल थी.