हमारे पिताश्री सुबह शाम नियमित रूप से लंबी सैर को जाया करते थे. दादाजी ज्यादा उम्र होने के कारण सैर करने नहीं जा पाते थे तो भोजनोपरांत आवाज लगाते, ‘‘बेटा, थोड़ा चूरन खिला दे, खाना हजम हो जाए.’’
पर हमारे पड़ोसी नंदलालजी का तरीका कुछ हट कर है. भोजन से पहले, भोजन के दौरान और भोजन के पश्चात वे किसी न किसी की बुराई करते ही रहते हैं, नुक्स निकालते ही रहते हैं. क्या करें, इस के बगैर उन का भोजन हजम ही नहीं होता. दूसरों की खामियां निकालना वे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. उन्हें यह खुशफहमी है कि वे दुनिया के सब से अक्लमंद व्यक्ति हैं. देश के प्रधानमंत्री से ले कर घर के नौकरनौकरानी तक, कोई ऐसा नहीं, जिस में वे कोई त्रुटि न निकाल सकते हों.
कभी मक्खी को देखा है आप ने? आप कहेंगे कि लो, कर लो बात. हमारे प्यारे वतन में मक्खियों की कोई कमी है क्या? आम की एक फांक रख दो, अभी 10 आ बैठेंगी. पर मेरा आशय उस के पंखों और पैरों से नहीं है, उस के फोटो तो बच्चों की पुस्तक में भी मिल जाएंगे. मैं उस के स्वभाव की बात कर रही हूं.
अगली बार वह आप के घर पधारे तो जरा गौर करना. जब वह आप के घर में घुसती है तो इधरउधर देख कर यह नहीं सोचती कि आहा, क्या सुंदर घर सजाया है अथवा क्या कलात्मक रुचि है, बल्कि वह अपनी घ्राणशक्ति का प्रयोग यह जानने के लिए करती है कि कचरे का डब्बा कहां रखा है और फिर उसे तलाशती हुई सीधे वहीं पहुंचती है. वह किसी सुंदर मुखड़े या परफैक्ट काया को देख यह नहीं कहती है कि आहा, क्या लावण्य है. वह तलाशती है कि इस परफैक्ट शरीर पर कोई फोड़ाफुंसी है क्या? आप उसे भगाने की कितनी भी कोशिश करें, वह वहीं बैठने का हठ करेगी. चिपक ही जाएगी उस जगह पर.