लेखक- विनय कुमार पाठक

Best Satire In Hindi : शनिवार की एक रात. रेलवे प्लेटफार्म पर गहमागहमी का माहौल. सैकड़ों लोग ट्रेनों से उतर रहे थे या फिर ट्रेन पकड़ने का इंतजार कर रहे थे. पर एक जगह नजारा कुछ और ही था. वहां लोग कतार लगाए खड़े थे. यह उन के लिए शनि की साढ़ेसाती का प्रकोप था या और कुछ, पता नहीं.

जिस काम के लिए वे सब कतार में खड़े थे, वह ऐसा कुदरती काम है जिसे नित्यक्रिया कहते हैं. मतलब, वे मुंबई सैंट्रल टर्मिनल पर

बने एक शौचालय के बाहर खड़े थे.

वैसे, ‘आप कतार में हैं’ की आवाज तभी अच्छी लगती है जब आप सामान्य हालात में होते हैं या फिर कोई मीठी आवाज की औरत ऐसा बोलती है. शौचालय की कतार में खड़े हो कर किसी को यह सुनना अच्छा नहीं लगेगा.

हुआ यों कि शौचालय के मुलाजिम और ठेकेदार रेलवे की चादरें ‘चादर बिछाओ बलमा...’ गीत गाते हुए रेलवे के कंबल ओढ़ कर निद्रा देवी के आगोश में चले गए. इधर शौच के लिए जाने वाले लोग कतार में लगे अपने आगे के लोगों को गिनते रहे और अंकगणित के सवाल हल करते रहे कि अगर एक आदमी को शौच करने में तकरीबन

5 मिनट लगते हैं तो उन के आगे खड़े

7 लोगों को कितना समय लगेगा और उन के लिए वह सुनहरा वक्त कब आएगा जब वे खुद को एक बहुत बड़े तनाव से मुक्त कर सकेंगे.

वे बारबार अपनी जेब में रखा 2 का सिक्का छू कर तसल्ली कर रहे थे कि ऐन वक्त पर छुट्टे न होने के चलते उन्हें फिर से कतार में न लगना पड़े.

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