हर लड़की अपने उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ घरवर देख कर शादी करती है, पर जल्दी ही वह कहने लगती है, तुम से शादी कर के तो मेरी किस्मत ही फूट गई है या तुम ने आज तक मुझे दिया ही क्या है. इसी तरह प्रत्येक पति को अपनी पत्नी ‘सुमुखी’ से जल्द ही ‘सूरजमुखी’ लगने लगती है.
लड़के के घर वालों को तो बरात के लौटतेलौटते ही अपने ठगे जाने का एहसास होने लगता है, जबकि आज के इंटरनैट के युग में पत्रपत्रिकाओं, रिश्तेदारों, इंटरनैट तक में अपने कमाऊ बेटे का पर्याप्त विज्ञापन करने के बाद जो श्रेष्ठतम लड़की, अधिकतम दहेज के साथ मिल रही होती है, वहीं रिश्ता किया जाता है.
यह असंतोष तरहतरह से प्रकट होता है. कहीं बहू जला दी जाती है, तो कहीं आत्महत्या करने को विवश कर दी जाती है. पराकाष्ठा की ये स्थितियां तो उन से कहीं बेहतर ही हैं, जिन में लड़की पर तरहतरह के लांछन लगा कर उसे तिलतिल जलने पर मजबूर किया जाता है.
नवयुगल फिल्मों के हीरोहीरोइन की तरह उच्छृंखल हो पाए, इस से बहुत पहले सास, ननद की ऐंट्री हो जाती है. स्टोरी ट्रैजिक बन जाती है और विवाह, जो बड़े उत्साह से 2 अनजान लोगों के प्रेम का बंधन और 2 परिवारों के मिलन का संस्कार है, एक ट्रैजिडी बन कर रह जाता है. घुटन के साथ एक समझौते के रूप में समाज के दबाव में मृत्युपर्यंत यह ढोया जाता है. ऊपरी तौर पर सुसंपन्न, खुशहाल दिखने वाले ढेरों दंपती अलगअलग अपने दिल पर हाथ रख कर स्वमूल्यांकन करें, तो पाएंगे कि विवाह को ले कर एक टीस कहीं न कहीं हर किसी के दिल में है.