‘सच में, कैसी स्थिति हो गई है देश की ? न तो हम किसी से मिल सकते हैं. न किसी को अपने घर बुला सकते हैं और न ही किसी के घर जा सकते हैं. आज इंसान, इंसान से भगाने लगा है. लोग एक-दूसरे को शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं. क्या हो रहा है ये और कब तक चलेगा ऐसा? सरकार कहती रही कि अच्छे दिन आएंगे. क्या ये हैं अच्छे दिन ? किसी ने सोचा था कभी कि ऐसे दिन भी आएंगे ?’ अपने मन में ही सोच रचना दुखी हो गई.
रचना अपने घर के ही एक कोने में जहां से हवा अच्छी आती हो, वहाँ टेबल लगाकरऑफिस जैसा बना लिया और काम करने लगी, चारा भी क्या था ?वैसे,अच्छा आइडिया दिया था मानसी ने उसे. ‘थैंक यू’ बोला उसने उसे फोन कर के. काम करते-करते जबरचना मन उकता जाता, तो ब्रेक लेने के लिए थोड़ा बहुत इधर-उधर चक्कर लगा आती. नहीं,तो अपने छत पर ही कुछ देर टहल लेती. और फिर अपने लिए चाय बनाकर काम करने बैठ जाती. अब रचना का माइंड सेट होने लगा था. लेकिन बॉस का दबाव तो था ही जिससे मन चिड़चिड़ा जाताकभी-कभी कि एक तो इस लॉकडाउन में भी काम करो और ऊपर से इन्हें कुछ समझ नहीं आता. सब कुछ परफेक्ट और सही समय पर ही चाहिए. ये क्या बात हुई ? बार-बार फोन कर के चेक करते हैं कि कर्मचारी अपने काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं. कहीं वे अपने घर पर आराम तो नहीं फरमा रहे हैं.