पहले जनता कर्फ्यू... फिर लॉकडाउन... और अब ये पूरा कर्फ्यू... समझ में नहीं आता कि टाइमपास कैसे करें...” निशिता ने पति कमल से कहा.
“पहले तो रोना ये था कि समय नहीं मिल रहा... अब मिल रहा है तो समस्या है कि इसे बिताया कैसे जाये...” कमल ने हाँ में हाँ मिलाई.
निशिता और कमल मुंबई की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हैं. सुबह से लेकर रात तक घड़ी की सुइयों को पकड़ने की कोशिश करता यह जोड़ा आखिर में समय से हार ही जाता है. पैसा कमाने के बावजूद उसे खर्च न कर पाने का दर्द अक्सर उनकी बातचीत का मुख्य भाग होता है.
मुंबई में अपना फ्लैट... गाड़ी... और अन्य सभी सुविधाएं होने के बाद भी उन्हें आराम करने का समय नहीं मिल पाता... टार्गेट पूरे करने के लिए अक्सर ऑफिस का काम भी घर लाना पड़ जाता है. ऐसे में प्यार भला कैसे हो... लेकिन यह भी एक भौतिक आवश्यकता है. इसलिए इन्हें प्यार करने के लिए वीकेंड निर्धारित करना पड़ रहा है. लेकिन पिछले दिनों फैली इस महामारी यानी कोरोना के कहर ने दिनचर्या एक झटके में ही बदल कर रख दी. अन्य लोगों की तरह निशिता और कमल भी घर में कैद होकर रह गए.
“क्या करें... कुछ समझ में नहीं आ रहा. पहाड़ सा दिन खिसके नहीं खिसकता...” निशिता ने लिखा.
“अरे तो बेबी! समय का सदुपयोग करो... प्यार करो ना...” सहेली ने आँख दबाती इमोजी के साथ रिप्लाइ किया.
“अब एक ही काम को कितना किया जाये... कोई लिमिट भी तो हो...” निशिता ने भी वैसे ही मूड में चैट आगे बढ़ाई.