उस दिन गुरुवार था. तारीख थी 2018 की 13 दिसंबर. कोटा के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रैट (एनआई एक्ट) राजेंद्र बंशीलाल की अदालत में काफी भीड़ थी. वजह यह थी कि एक नृशंस हत्यारे को उस के अपराध की सजा सुनाई जानी थी. हत्यारे का नाम लालचंद मेहता था और जिन्हें उस ने मौत के घाट उतारा था, वह थीं बीएसएनएल की उपमंडल अधिकारी स्वाति गुप्ता. लालचंद मेहता उन का ड्राइवर रह चुका था. उस के अभद्र व्यवहार को देखते हुए स्वाति गुप्ता ने घटना से 2 दिन पहले ही उसे नौकरी से निकाला था.
3 साल पहले 21 अगस्त, 2015 की रात को लालचंद ने स्वाति की हत्या उन के घर के बाहर तब कर दी थी, जब वह औफिस से लौट कर घर पहुंची थीं. लालचंद ने स्वाति गुप्ता पर चाकू से 10-15 वार किए थे. इस केस में गवाहों के बयान, पुलिस द्वारा जुटाए गए सबूत और अन्य साक्ष्य अदालत के सामने पेश किए जा चुके थे. दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह भी हो चुकी थी. सजा के मुद्दे पर बचाव पक्ष के वकील ने कहा था, ‘‘आरोपी का परिवार है, उसे सुधरने का अवसर देने के लिए कम सजा दी जाए.’’
जबकि लोक अभियोजक नित्येंद्र शर्मा तथा परिवादी के वकील मनु शर्मा और भुवनेश शर्मा ने दलील दी थी कि आरोपी लालचंद मेहता मृतका स्वाति का ड्राइवर-कम-केयरटेकर था. परिवादी पक्ष ने उस की हर तरह से मदद की थी, लेकिन उस ने मामूली सी बात पर जघन्य हत्या कर दी थी. इसलिए अदालत को उस के प्रति जरा भी दया नहीं दिखानी चाहिए.