लेखक- जावेद राही
असलम ने माफी भी मांगी, लेकिन सुरैया नरम नहीं पड़ी. असलम चला गया. सुरैया अक्को कुली को कुछ न कुछ देती रहती थी, क्योंकि उसी की वजह से वह इस कोठे पर बैठी थी. पूरे शहर में शाहिदा और असलम के चरचे थे.
मां बेटी बनठन कर रोज शाम को तांगे में बैठ कर निकलतीं तो लोग उन्हें देखते रह जाते. तांगे पर उन का इस तरह निकलना कारोबारी होता था, इस से वे रोज कोई न कोई नया पंछी फांस लेती थीं.
एक दिन शावेज अपनी बहन शाहिदा और मां से उलझ गया. बात हाथापाई तक पहुंच गई. उस ने शाहिदा के मुंह पर इतनी जोरों से थप्पड़ मारा कि उस के गाल पर निशान पड़ गया. सुरैया को गुस्सा आया तो उस ने उसे डांटडपट कर घर से निकाल दिया.
शावेज गालियां देता हुआ घर से निकल गया और एक हकीम की दुकान पर जा बैठा. वहां वह अकसर बैठा करता था. उस की मां को वहां बैठने पर आपत्ति थी, क्योंकि उसे लगता था कि वही हकीम उसे उन के खिलाफ भड़काता है. शावेज ने असलम और एक दो ग्राहकों से भी अभद्र व्यवहार किया था.
वेश्या बाजार के वातावरण ने शावेज को नशे का आदी बना दिया था, वह जुआ भी खेलने लगा था. उस के खरचे बढ़ रहे थे, लेकिन उस की मां उसे खरचे भर के ही पैसे देती थी. वह जानबूझ कर लोगों से लड़ाईझगड़ा मोल लेता था. इसी चक्कर में वह कई बार थाने की यात्रा भी कर आया था, जिस की वजह से उस के मन से पुलिस का डर निकल गया था.