लेखक- रामदेव लाल श्रीवास्तव
‘‘तुम...’’
‘‘मुझे अभिषेक कहते हैं.’’
‘‘कैसे आए?’’
‘‘मुझे एक बीमारी है.’’
‘‘कैसी बीमारी?’’
‘‘पहले भीतर आने को तो कहो.’’
‘‘आओ, अब बताओ कैसी बीमारी?’’
‘‘किसी को मुसीबत में देख कर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाता.’’
‘‘मैं तो किसी मुसीबत में नहीं हूं.’’
‘‘क्या तुम्हारे पति बीमार नहीं हैं?’’
‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’
‘‘मैं अस्पताल में बतौर कंपाउंडर काम करता हूं.’’
‘‘मैं ने तो उन्हें प्राइवेट नर्सिंग होम में दिखाया था.’’
‘‘वह बात भी मैं जानता हूं.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘तुम ने सर्जन राजेश से अपने पति को दिखाया था न?’’
‘‘हां.’’
‘‘उन्होंने तुम्हारी मदद करने के लिए मुझे फोन किया था.’’
‘‘तुम्हें क्यों?’’
‘‘उन्हें मेरी काबिलीयत और ईमानदारी पर भरोसा है. वे हर केस में मुझे ही बुलाते हैं.’’
‘‘खैर, तुम असली बात पर आओ.’’
‘‘मैं यह कहने आया था कि यही मौका है, जब तुम अपने पति से छुटकारा पा सकती हो.’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘बनो मत. मैं ने जोकुछ कहा है, वह तुम्हारे ही मन की बात है. तुम्हारी उम्र इस समय 30 साल से ज्यादा नहीं है, जबकि तुम्हारे पति 60 से ऊपर के हैं. औरत को सिर्फ दौलत ही नहीं चाहिए, उस की कुछ जिस्मानी जरूरतें भी होती हैं, जो तुम्हारे बूढ़े प्रोफैसर कभी पूरी नहीं कर सके.
‘‘10 साल पहले किन हालात में तुम्हारी शादी हुई थी, वह भी मैं जानता हूं. उस समय तुम 20 साल की थीं और प्रोफैसर साहब 50 के थे. शादी से ले कर आज तक मैं ने तुम्हारी आंखों में खुशी नहीं देखी है. तुम्हारी हर मुसकराहट में मजबूरी होती है.’’
‘‘वह तो अपनाअपना नसीब है.’’
‘‘देखो, नसीब, किस्मत, भाग्य का कोई मतलब नहीं होता. 2 विश्व युद्ध हुए, जिन में करोड़ों आदमी मार दिए गए. इस देश ने 4 युद्ध झेले हैं. उन में भी लाखों लोग मारे गए. बंगलादेश की आजादी की लड़ाई में 20 लाख बेगुनाह लोगों की हत्याएं हुईं. क्या यह मान लिया जाए कि सब की किस्मत
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