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बहुत तेज रफ्तार से दौड़ती उस मोटरसाइकिल पर बीच में बैठी होने के बाद भी लतिका भय से कांप रही थी. भय कम हो जाए इस के लिए उस ने अभय की कमर कस कर पकड़ ली. अभय के साथ उस की मोटरसाइकिल पर वह पहली बार बैठी थी पर अब मन ही मन सोच रही थी कि आज किसी तरह बच जाए तो फिर कभी इस के साथ मोटरसाइकिल पर नहीं बैठेगी.

‘‘तुम गाड़ी धीरे नहीं चला सकते, अभय?’’ उस से सटी पीछे बैठी लतिका एक प्रकार से चिल्लाते स्वर में बोली.

हर हिचकोले के साथ लतिका से और अधिक सटने का प्रयत्न करता परमजीत हंसा और बोला, ‘‘डरो नहीं, डार्ल्ंिग, इस का अभय नाम यों ही नहीं है. इसे तो मौत का सामना करते हुए भी डर नहीं लगता.’’

‘‘लेकिन मैं लड़की हूं. इतनी तेज रफ्तार से डरती हूं. प्लीज, रोको न इसे वरना मैं चिल्लाने लगूंगी कि ये लोग मुझे जबरन कहीं भगाए लिए जा रहे हैं,’’ लतिका ने धमकी दी.

अपनी पीढ़ी की तरह रफ्तार और तेज रफ्तार जिंदगी तो लतिका को भी पसंद थी पर यह रफ्तार तो एकदम हवाई रफ्तार थी. इस में होने वाली दुर्घटना का मतलब था, शरीर का एकएक कीलकांटा बिखर जाना.

मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे उसे याद आया कि फैसला करने में उस से गलती हो गई थी. कनक ठीक कहती थी कि ये लोग भरोसे के लायक नहीं हैं. तुम्हें अभय के प्रेम में पड़ने से पहले उस के बारे में ठीक से जान लेना चाहिए.

उस समय लतिका ने कनक की बातों पर इसलिए ध्यान नहीं दिया था क्योंकि कनक कभी खुद अभय की तरफ आकर्षित थी पर अभय ने उसे भाव नहीं दिया था क्योंकि वह एक साधारण नाकनक्श की लड़की थी.

लतिका उस के मुकाबले अपने को हर तरह से बेहतर पाती थी. शक्लसूरत में ही नहीं पढ़ाई में भी अंगरेजी से एम.ए. कर रही लतिका ने प्रथम वर्ष की परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक पाए थे और कालिज के प्राध्यापकों ने उस की पीठ ठोंकी थी. प्रो. चोपड़ा तो उस से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उसे एम.ए. फाइनल में एक पेपर के रूप में लघु शोध लिखने का महत्त्वपूर्ण काम भी सौंप दिया था और स्वयं ही उस के लिए एक उपयुक्त विषय का चुनाव किया था. विषय था फ्रांस की सुप्रसिद्ध उपन्यासकार  ‘साइमन बोऊवा की स्त्री स्वतंत्रता की अवधारणा और उन के उपन्यास.’ चोपड़ा साहब ने बोऊवा की एक खास पुस्तक ‘द सेकंड सेक्स’ अपने निजी पुस्तकालय से निकाल कर लतिका को पढ़ने को दी थी. यही नहीं उन्होंने खुद पत्र लिख कर लतिका को विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय का सदस्य बना दिया था और इसी के बाद लतिका अपने इस महती कार्य में जुट गई थी.

केंद्रीय पुस्तकालय एक विशाल बगीचे के बीचोंबीच बना हुआ था. मुख्य गेट से उस तक आने के लिए जो पक्की सड़क बनी थी वह उस बगीचे के घने वृक्षों और ऊंची झाडि़यों से हो कर गुजरती थी. चूंकि वहां आम लोग नहीं आतेजाते थे और वाहनों को भी बाहर ही रोक दिया जाता था इसलिए वहां भीड़भाड़ नहीं रहती थी. ज्यादातर सन्नाटा पसरा रहता था, जिसे देख कर दिन में भी भय लगता था.

लतिका 1-2 बार अपने भय को कम करने के लिए कनक को साथ लाई थी, ‘यार, बगीचे में रास्ता बेहद सुनसान हो जाता है. डर लगता है कि कहीं कोई गुंडाबदमाश दबोच ले तो क्या होगा?’

‘शहर में अभय ही एक ऐसा गुंडा है जो हमेशा अपने कालिज की लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करता रहता है,’ कनक बोली.

‘कौन अभय? वही जो फेडेड जींस और चमड़े की काली जैकेट पहने मोटरसाइकिल पर फर्राटे भरता घूमता रहता है?

‘हां, वही. और वह कभी मोटरसाइकिल पर अकेला नहीं चलता. हमेशा 3 लड़के उस के साथ होते हैं.’

‘कुछ भी हो, मुझ से तो वह बहुत तमीज से पेश आता है,’ लतिका ने उस का पक्ष लेते हुए कहा, ‘विभाग में आतेजाते जब भी वह सामने पड़ा उस ने मेरा रास्ता छोड़ दिया.’

‘तेरा भ्रम जल्दी भंग हो जाएगा लाड़ो,’ कनक भी हंस दी थी, ‘जब किसी से इश्क हो जाता है तो बुद्धि काम नहीं करती, तर्क के तीर तरकस में पड़े जंग खाते रहते हैं और वह अंधा बना प्रेम की तरफ दौड़ता चला जाता है.’

कनक की कही हुई सब बातें अचानक मोटरसाइकिल पर बैठी लतिका को याद आ गईं. कनक के समझाने के बाद भी वह अभय व उस के दोस्तों पर विश्वास कर के इस सुनसान इलाके में उन के साथ चली आई. अगर वे इस सुनसान इलाके में उस के साथ मनमानी करने लगें तो वह इन 2 राक्षसों का क्या कर लेगी?

यह सोचते ही भय और आतंक से किसी तरह साहस कर के पूछा ही लिया, ‘‘हम लोग आखिर जा कहां रहे हैं?’’

‘‘डरो नहीं, लतिका,’’ बहुत देर की खामोशी के बाद अभय बोला, ‘‘हम लोग तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिस से तुम्हें किसी तरह का नुकसान पहुंचे. असल में तुम इस मोटरसाइकिल को जिस प्यार भरी नजरों से देखती

थीं, उसे देख कर ही मैं ने तय किया था कि एक दिन तुम्हें इस पर बैठा कर

सैर कराई जाए. आज तुम साथ आने को तैयार हो गईं तो हम इधर सैर को

आ गए.’’

‘‘लेकिन इस सुनसान इलाके में क्यों?’’ किसी तरह थूक निगल कर लतिका ने कहा. उसे अब अपने पर ही गुस्सा आ रहा था कि उस ने जरा भी बुद्धि से काम नहीं लिया जबकि रोज ही अखबारों में बलात्कार की घटनाएं वह पढ़ती है. यहां तक कि केंद्रीय पुस्तकालय तक आतेजाते भी कई बार लड़कियों के साथ छेड़छाड़ हुई है फिर यह तो एकदम सुनसान और एकांत स्थान है. यहां तो ये लोग कुछ भी कर सकते हैं उस के साथ.

इसी तरह के डरावने विचारों में डूबतीउतराती लतिका को अनायास ही अपने भाई नकुल के मनोविज्ञान में चल रहे शोध की याद आ गई. वह टीनएजर्स और बाल अपराधों के मनोविज्ञान पर शोध कर रहा है. उस के शोध को टाइप करते समय उन्हें पढ़ कर वह अकसर आश्चर्यचकित हो जाती है कि इतनी कम उम्र के लड़के बलात्कार का अपराध कर गुजरते हैं.

अचानक लतिका को लगा वह गलत फंस गई. उसे इन लोगों की बातों में नहीं आना चाहिए था. पुस्तकालय गई थी. भाई अब घर पर इंतजार कर रहा होगा पर अब वह क्या करे, कैसे बचे. कैसे सुरक्षित घर पहुंचे.

लतिका की जान में तब जान आई जब अभय की मोटरसाइकिल आ कर एक छोटी बस्ती में रुक गई. उस बस्ती के बाहर ही एक पुराना सा मकान था. उस के फाटक और टूटीफूटी चारदीवारी को अभय और परमजीत गौर से देखते रहे. फिर उस मकान के चारों तरफ एक चक्कर भी लगाया.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’ लतिका ने पूछा.

‘‘एक दोस्त को देखने आए हैं,’’ अभय बोला.

‘‘दोस्त को देखना है तो अंदर जा कर देखो. तुम तो इस मकान का बारबार चक्कर लगा रहे हो.’’

परमजीत बोला, ‘‘चलो, लतिका को योगी के घर ले कर चलते हैं.’’

‘‘यह योगी कौन है?’’ लतिका ने मुसकराने का प्रयास किया.

‘‘योगी, हमारा जिगरी दोस्त है और वह यहीं रहता है,’’ अभय ने कहा और मोटरसाइकिल एक सड़क पर दौड़ा दी.

लतिका को कुछ तसल्ली हुई कि चलो, यह जगह इन के लिए अनजान जगह नहीं है. यहां भी इन का एक दोस्त रहता है जिसे वह शक्ल से पहचानती है. नाम आज जान गई….अजीब नाम है…योगी.

बहुत आवभगत की योगी ने लतिका की. काफी अच्छा मकान था उस का. मां बहुत सरल स्वभाव की. एक छोटी बहन थी जो 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस से देर तक लतिका बातें करती रही. चायनाश्ते के बाद वह अभय और परमजीत के साथ वापस लौटी.

अब उसे उतना डर नहीं लग रहा था. पर एक सवाल उस के दिमाग में बारबार उठ रहा था कि आखिर अभय और परमजीत उस पुराने मकान को क्यों चारों तरफ  से घूमघूम कर गौर से देख रहे थे? अगर उन्हें योगी से ही मिलना था तो सीधे उसी के घर क्यों नहीं चले गए?

अभय लतिका को ले कर सीधे उस के घर आया. नकुल बाहर ही बेचैनी से लतिका का इंतजार कर रहा था. उन लोगों के साथ लतिका को देख कर वह गुस्से को किसी तरह जज्ब किए रहा.

अभय और परमजीत को घर में बुला कर लतिका ने पानी पिलाया. नमकीन और मिठाई खाने को दी और अपने भाई से उस का परिचय कराया. जब अभय को विदा करने लगी तो वह बोला, ‘‘मैं नकुलजी को अच्छी तरह जानता हूं. ये कम उम्र के लड़कों और बच्चों के अपराधों पर शोध कर रहे हैं और उस के लिए अकसर बालसुधार गृह और जेल व पुलिस वालों के पास आतेजाते रहते हैं. आप के पिताजी एक इंजीनियरिंग कंपनी के उत्पाद बेचने के सिलसिले में दूसरे शहरों की यात्रा करते रहते हैं. घर की देखरेख और तुम्हारी रक्षा नकुलजी ही करते हैं. मां हैं नहीं इसलिए घरगृहस्थी का सारा काम तुम करती हो. तुम प्रोफेसर चोपड़ा की खास छात्रा हो. केंद्रीय पुस्तकालय में अपने लघु शोध के सिलसिले में कनक के साथ आतीजाती हो और कनक मुझे कोसती रहती है,’’ एक सांस में सब कह गया अभय.

‘‘अरे, तुम तो मेरा पूरा इतिहास जानते हो और यह भी कि तुम्हारे बारे में कनक मुझसे क्या कहती है.’’

आगे पढ़ें- नकुल को लतिका की चिंता…

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