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‘‘लेकिन यहां पार्लरों में जिस तरह के लोग आते हैं तुम कब तक अपनेआप को बचा कर रख पाओगी?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘हां, कभीकभी बहुत परेशानी में पड़ जाती हूं, बहुत डर लगता है. पर अब तक बची हुई हूं. इसीलिए जल्द से जल्द यहां से वापस जाना चाहती हूं क्योंकि आप जैसे शरीफ और सच्चे लोग हर रोज नहीं मिलते,’’ जूली ने एक बार फिर से मनोज की तारीफ की तो वह और अधिक खिल उठा.

‘‘पर तुम वापस जा कर करोगी क्या?’’ मनोज ने सवाल किया.

‘‘मैं एक गिफ्ट शौप खोलना चाहती हूं. मेरे छोटे से शहर में ज्यादा दुकानें नहीं हैं. अगर मैं शौप खोल पाई तो अपने परिवार का पालनपोषण करने के लायक अच्छा काम कर सकूंगी और फिर मुझे रेड जोन की जिल्लतभरी जिंदगी जीने की कोई जरूरत नहीं रहेगी,’’ जूली आशाभरी आवाज में बोली.

‘‘कितनी रकम की जरूरत है तुम्हें शौप खोलने के लिए?’’ मनोज के मुंह से न चाहते हुए भी जाने कैसे यह सवाल निकल गया.

‘‘2 हजार डौलर में एक अच्छी शौप गांव में खुल सकेगी,’’ जूली ने उत्साहित स्वर में जवाब दिया.

मनोज के गले में जैसे अचानक ही कुछ अटक गया. जूली उस की मनोदशा समझ कर गंभीर मगर रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘मैं जानती हूं, यह बहुत बड़ी रकम है. और आज के युग में इतना बड़ा दिल किसी का नहीं होता कि बिना लड़की का इस्तेमाल कर के उसे एक तिनका भी दे दे. आजकल तो सब मर्द शरीर के लोलुप होते हैं. लड़की का जीभर कर इस्तेमाल किया और फिर उस के हाथ में चंद नोट पकड़ा दिए. बिना स्वार्थपूर्ति के महज इंसानियत के नाते लड़की की मदद करने वाले बड़े दिल के स्वार्थरहित सच्चे मर्द आजकल बचे ही कहां हैं.’’

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