राइटर- आचार्य नीरज शास्त्री

रौयल स्काई टावर को बनते हुए 2 साल हो गए. आज यह टावर शहर के सब से ऊंचे टावर के रूप में खड़ा है. सब से ऊंचा इसलिए कि आगरा शहर में यही एक 22 मंजिला इमारत है. जब से यह टावर बन रहा है, हजारों मजदूरों के लिए रोजीरोटी का इंतजाम हुआ है. इस टावर के पास ही मजदूरों के रहने के लिए बनी हैं  झोंपडि़यां.

इन्हीं  झोंपडि़यों में से एक में रहता है सुखराम अपनी पत्नी चंदा के साथ. सुखराम और चंदा का ब्याह 2 साल पहले ही हुआ था. शादी के बाद ही उन्हें मजदूरी के लिए आगरा आना पड़ा. वे इस टावर में सुबह से शाम तक साथसाथ काम करते थे और शाम से सुबह तक का समय अपनी  झोंपड़ी में साथसाथ ही बिताते थे. इस तरह एक साल सब ठीकठाक चलता रहा.

एक दिन चंदा के गांव से चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था कि चंदा के एकलौते भाई पप्पू को कैंसर हो गया है और उन के पास इलाज के लिए पैसे का कोई इंतजाम नहीं है.

सुखराम को लगा कि ऐसे समय में चंदा के भाई का इलाज उस की जिम्मेदारी है, पर पैसा तो उस के पास भी नहीं था, इसलिए उस ने यह बात अपने साथी हरिया को बता कर उस से सलाह ली.

हरिया ने कहा, ‘‘देखो सुखराम, गांव में तुम्हारे पास घर तो है ही, क्यों न घर को गिरवी रख कर बैंक से लोन ले लो. बैंक से लोन इसलिए कि घर भी सुरक्षित रहेगा और बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.’’

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