लेखक- किशोर श्रीवास्तव
दफ्तर से अपने बड़े सरकारी बंगले पर जाते हुए उस दिन अचानक एक ट्रक ने रवि की कार को जोरदार टक्कर मार दी थी. कार का अगला हिस्सा बुरी तरह से टूटफूट गया था.
खून से लथपथ रवि कार के अंदर ही फंसा रह गया था. वह काफी समय तक बेहोशी की हालत में कार के अंदर ही रहा, पर उस की जान बचाने वाला कोई भी नहीं था.
हां, उस के आसपास तमाशबीनों की भीड़ जरूर लग गई थी. सभी एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे, पर किसी में उसे अस्पताल ले जाने या पुलिस को बुलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.
भला हो रवि के दफ्तर के चपरासी रामदीन का, जो भीड़ को देख कर उसे चीरता हुआ रवि के पास तक पहुंच गया था. बाद में उसी ने पास के एसटीडी बूथ से 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुला लिया था.
जब तक पुलिस रवि को ले कर पास के नर्सिंगहोम में पहुंची तब तक उस के शरीर से काफी खून बह चुका था. रामदीन काफी समय तक अस्पताल में ही रहा था. उस ने फोन कर के दफ्तर से सुपरिंटैंडैंट राकेश को भी बुला लिया था जो वहीं पास में रहते थे.
रवि के एक रिश्तेदार भी सूचना पा कर अस्पताल पहुंच गए थे. गांव दूर होने व बूढ़े मांबाप की हालत को ध्यान में रखते हुए किसी ने उस के घर सूचना भेजना उचित नहीं समझा था. वैसे भी उस के गांव में संचार का कोई खास साधन नहीं था. इमर्जैंसी में तार भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं होता था.
रवि की पत्नी गुंजा अपने सासससुर व देवर रघु के साथ गांव में ही रहती थी. वह 2 साल पहले ही गौना करा कर अपनी ससुराल आई थी. रवि के साथ उस की शादी बचपन में तभी हो गई थी, जब वे दोनों 10 साल की उम्र भी पार नहीं कर पाए थे.
गांव में रहने के चलते गुंजा की पढ़ाई 8वीं जमात के बाद ही छूट गई थी पर रवि 5वीं जमात पास कर के अपने चाचा के पास शहर में ही पढ़ने आ गया था. उस ने अच्छीखासी पढ़ाई कर ली थी. शहर में पढ़ाई करने के चलते उस का मन चंचल हो गया था. वैसे भी वह गुंजा से हर मामले में बेहतर था.
शादी के समय तो रवि को कोई समझ नहीं थी, पर जब गौने के बाद विदा हो कर गुंजा उस के घर आई थी और पहली बार जवान और भरपूर नजरों से उस ने उसे देखा था तभी से उस का मन उस से उचट गया था.
गुंजा कामकाज में भी उतनी माहिर नहीं थी जितनी रवि ने अपनी पत्नी से उम्मीद की थी. यहां तक कि सुहागरात के दिन भी वह गुंजा से दूर ही रहा था.
गुंजा गांव की पलीबढ़ी लड़की थी. शक्लसूरत और पढ़ाईलिखाई में कम होने के बावजूद मांबाप से उसे अच्छे संस्कार मिले थे. उस ने रवि की अनदेखी के बावजूद उस के बूढ़े मांबाप और रवि के छोटे भाई रघु का साथ कभी नहीं छोड़ा.
मांबाप के लाख कहने के बावजूद रवि जब उसे अपने साथ शहर ले जाने को राजी नहीं हुआ तब भी उस ने उस से कोई खास जिद नहीं की, न ही अकेले शहर जाने का उस ने कोई विरोध किया.
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शहर में आ कर रवि अपने दफ्तर और रोजमर्रा के कामों में ऐसा बिजी हुआ कि गांव जाना ही भूल गया. उसे अपने मांबाप से भी कुछ खास लगाव नहीं रह गया था क्योंकि वह अपनी बेढंगी शादी के लिए काफी हद तक उन्हीं को कुसूरवार मानता था.
तनख्वाह मिलने पर घर पर पैसा भेजने के अलावा रवि कभीकभार चिट्ठी लिख कर मांबाप व भाई का हालचाल जरूर पूछ लेता था, पर इस से ज्यादा वह अपने घर वालों के लिए कुछ भी नहीं कर पाता था.
3-4 दिन आईसीयू में रहने के बाद अब रवि को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया था. दफ्तर के अनेक साथी तन, मन और धन से उस की सेवा में लगे हुए थे. बड़े साहब भी लगातार उस की सेहत पर नजर रखे हुए थे.
नर्सिंगहोम में जहां सीनियर सर्जन डाक्टर अशोक लाल उस के इलाज पर ध्यान दे रहे थे, वहीं वह वहां की सब से काबिल नर्स सुधा चौहान की चौबीसों घंटे की निगरानी में था.
सुधा चौहान जितना नर्सिंगहोम के कामों में माहिर थी, उतना ही सरल उस का स्वभाव भी था. शक्लसूरत से भी वह किसी फिल्मी नर्स से कम नहीं थी. उस की रातदिन की सेवा और बेहतर इलाज के चलते रवि को जल्दी ही होश आ गया था.
उस समय सुधा ही उस के पास थी. उसे बेचैन देख कर सुधा ने सहारा दिया और उस के सिरहाने तकिया रख दिया. अगले ही पल नर्स सुधा ने शीशी से एक चम्मच दवा निकाल कर आहिस्ता से उस के मुंह में डाल दी
रवि कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहता था, पर पूरे चेहरे पर पट्टी बंधी होने के चलते वह कुछ भी कह पाने में नाकाम था. सुधा ने हलकी मुसकान के साथ उसे इशारेइशारे में चुप रहने को कहा.
सुधा की निजी जिंदगी भी बहुत खुशहाल नहीं थी. उस का पति मनीष इस दुनिया में नहीं था. उस की रिया नाम की 5 साल की एक बेटी थी जो उस के साथ ही रहती थी.
मनीष सेना में कैप्टन था. जब रिया मां के पेट में थी उन्हीं दिनों बौर्डर पर सिक्योरिटी का जायजा लेते समय आतंकियों के एक हमले में उस की जान चली गई थी. इस के बाद सुधा टूट कर रह गई थी. पर मनीष की निशानी की खातिर वह जिंदा रही. अब उस ने लोगों की सेवा को ही अपने जीने का मकसद बना लिया था.
थोड़ी देर तक शांत रहने के बाद रवि कुछ बुदबुदाया. शायद उसे प्यास लग रही थी. सुधा उस के बुदबुदाने का मतलब समझ गई थी. उस ने 8-10 चम्मच पानी उस को पिला दिया. पानी पिला कर उस ने रूमाल से रवि के होंठों को पोंछ दिया था. फिर वह पास ही रखे स्टूल पर बैठ कर आहिस्ताआहिस्ता उस का सिर सहलाने लगी थी. यह देख कर रवि की आंखें नम हो गई थीं.
सुधा को रवि के बारे में मालूम था. डाक्टर अशोक लाल ने उसे रवि के बारे में पहले से ही सबकुछ बता दिया था. नर्सिंगहोम में रवि के दफ्तर से आनेजाने वालों का जिस तरह से तांता लगा रहता, उसे देख कर उस के रुतबे का अंदाजा लग जाता था.
कुछ दिनों के इलाज के बाद बेशक अभी भी रवि कुछ बोल पाने में नाकाम था, पर उस के हाथपैर हिलनेडुलने लगे थे. अब वह किसी चिट पर लिख कर अपनी कोई बात सुधा या डाक्टर के सामने आसानी से रख पा रहा था. कभी जब सुधा की रात की ड्यूटी होती तब भी वह पूरी मुस्तैदी से उस की सेवा में लगी रहती.
एक दिन सुबह जब सुधा अपनी ड्यूटी पर आई तो रवि बहुत खुश नजर आ रहा था. सुधा के आते ही रवि ने उसे एक चिट दी, जिस पर लिखा था, ‘आप बहुत अच्छी हैं, थैंक्स.’
चिट के जवाब में सुधा ने जब उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकरा कर ‘वैलकम’ कहा तो उस की आंखें भर आई थीं. उस दिन रवि के धीरे से ‘आई लव यू’ कहने पर सुधा शरमा कर रह गई थी.
सुधा का साथ पा कर रवि के मन में जिंदगी को एक नए सिरे से जीने की इच्छा बलवती हो उठी थी. जब तक सुधा उस के पास रहती, उस के दिल को बड़ा ही सुकून मिलता था.
एक दिन सुधा की गैरहाजिरी में जब रवि ने वार्ड बौय से उस के बारे में कुछ जानना चाहा था तो वार्ड बौय ने सुधा की जिंदगी की एकएक परतें उस के सामने खोल कर रख दी थीं.
सुधा की कहानी सुन कर रवि भावुक हो गया था. उस ने उसी पल सुधा को अपनाने और एक नई जिंदगी देने का मन बना लिया था. उस ने तय कर लिया था कि वह कैसे भी हो, सुधा को अपनी पत्नी बना कर ही दम लेगा. पर सवाल यह उठता था कि एक पत्नी के होते हुए वह दूसरी शादी कैसे करता?
उस दिन अस्पताल से छुट्टी मिलते ही रवि दफ्तर के कुछ काम निबटा कर सीधा अपने गांव चला गया था. जब वह सुबह अपने गांव पहुंचा तब घर वाले हैरान रह गए थे. बूढे़ मांबाप की आंखों में तो आंसू आतेआते रह गए थे.
पूरे घर में अजीब सा भावुक माहौल बन गया था. आसपास के लोग रवि के घर के दरवाजे पर इकट्ठा हो कर घर के अंदर का नजारा देखे जा रहे थे.
रवि बहुत कम दिनों के लिए गांव आया था. वह जल्दी से जल्दी गुंजा को तलाक के लिए तैयार कर शहर लौट जाना चाहता था. पर घर का माहौल एकदम से बदल जाने के चलते वह असमंजस में पड़ गया था. उस दिन पूरे समय गुंजा उस की खातिरदारी में लगी रही. वह उसे कभी कोई पकवान बना कर खिलाती तो कभी कोई. पर रवि पर उस की इस मेहमाननवाजी का कोई असर नहीं हो रहा था.
दिनभर की भीड़भाड़ से जूझतेजूझते और सफर की रातभर की थकान के चलते उस रात रवि को जल्दी ही नींद आ गई थी. गुंजा ने अपना व उस का बिस्तर एकसाथ ही लगा रखा था, पर इस की परवाह किए बगैर वह दालान में पड़े तख्त पर ही सो गया था. पर थोड़ी ही देर में उस की नींद खुल गई थी. उसे नींद आती भी तो कहां से. एक तो मच्छरमक्खियों ने उसे परेशान कर रखा था, उस पर से भविष्य की योजनाओं ने थकान के बावजूद उसे जगा दिया था.
रवि देर रात तक सुधा और अपनी जिंदगी के तानेबाने बुनने में ही लगा रहा. रात के डेढ़ बजे उस पर दोबारा नींद की खुमारी चढ़ी कि उसे अपने पैरों के पास कुछ सरसराहट सी महसूस हुई. उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उस के पैरों को गरम पानी में डुबो कर रख दिया हो.
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रवि हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा, गुंजा उस के पैरों पर अपना सिर रखे सुबक रही थी. पास में ही मच्छर भगाने वाली बत्ती चारों ओर धुआं छोड़ रही थी. उस के उठते ही गुंजा उस से लिपट गई और फिर बिलखबिलख कर रोने लगी.
गुंजा रोते हुए बोले जा रही थी, ‘‘इस बार मुझे भी शहर ले चलो. मैं अब अकेली गांव में नहीं रह सकती. भले ही मुझे अपनी दासी बना कर रखना, पर अब अकेली छोड़ कर मत जाना, नहीं तो मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगी.’’
गुंजा की यह दशा देख कर अचानक रवि उस के प्रति कुछ नरम होते हुए भावुक हो उठा. वह अपने दिलोदिमाग में हाल में बने गए सपनों को भूल कर अचानक गुंजा की ओर मुखातिब हो चला था.
गुंजा ने जब बातों ही बातों में रवि को बताया कि उस ने शहर चलने के लिए एबीसीडी समेत अंगरेजी की कई कविताएं भी मुंहजबानी याद कर रखी हैं तो रवि उस के भोलेपन पर मुसकरा उठा.
आज पहली बार उसे गुंजा का चेहरा बहुत अच्छा लगा था और उस के मन में गुंजा के प्रति प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा था. वह उस की कमियों को भूल कर पलभर में ही उस के आगोश में समाता चला गया था.
रवि गुंजा के बदन से खेलता रहा और वह आंखों में आंसुओं का समंदर लिए उस के प्यार का जवाब देती रही.
एक ही रात और कुछ समय के प्यार ने ही रवि के कई सपनों को जहां तोड़ दिया था वहीं उस के दिलोदिमाग में कई नए सपने भी बुनते चले गए थे. वह गुंजा को तन, मन व धन से अपनाने को तैयार हो गया था, पर सवाल यह था कि शहर जा कर वह सुधा को क्या जवाब देगा. जब सुधा को यह पता चलेगा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और जब उस को अब तक का उस का प्यार महज नाटक लगेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी.
इसी उधेड़बुन के साथ रवि अगली सुबह शहर को रवाना हो चला था. गुंजा को उस ने कह दिया था कि वह अगले हफ्ते उसे लेने गांव आएगा.
शहर पहुंचते ही रवि किसी तरह से सुधा से मिल कर उस से अपनी गलतियों व किए की माफी मांगना चाहता था. अपने बंगले पर पहुंच कर वह नहाधो कर सीधा नर्सिंगहोम पहुंचा, पर वहां सुधा से उस की मुलाकात नहीं हो पाई.
पता चला कि आज वह नाइट ड्यूटी पर थी. वह वहां से किसी तरह से पूछतापूछता सुधा के घर जा पहुंचा, पर वहां दरवाजे पर ताला लटका मिला. किसी पड़ोसी ने बताया कि वह अपनी बेटी के स्कूल गई हुई है.
मायूस हो कर रात को नर्सिंगहोम में सुधा से मिलने की सोच कर रवि सीधा अपने दफ्तर चला गया. आज उस का दिन बड़ी मुश्किल से कट रहा था. वह चाहता था कि किसी तरह से जल्दी से रात हो और वह सुधा से मिल कर उस से माफी मांग ले.
रात के 8 बजने वाले थे. सुधा के नर्सिंगहोम आने का समय हो चुका था, इसलिए तैयार हो कर रवि भी नर्सिंगहोम की ओर बढ़ चला था. मन में अपनी व सुधा की ओर से आतेजाते सवालों का जवाब ढूंढ़तेढूंढ़ते वह कब नर्सिंगहोम के गेट पर जा पहुंचा था, उसे पता ही नहीं चला.
रिसैप्शन पर पता चला कि सुधा प्राइवेट वार्ड के 4 नंबर कमरे में किसी मरीज की सेवा में लगी है. किसी तरह से इजाजत ले कर वह सीधा 4 नंबर कमरे में घुस गया, पर वहां का नजारा देख कर वह पलभर को ठिठक गया. सुधा एक नौजवान मरीज के अधनंगे शरीर को गीले तौलिए से पोंछ रही थी.
रवि को आगे बढ़ता देख उस ने उसे दरवाजे पर ही रुक जाने का इशारा किया. रवि दरवाजे पर ही ठिठक गया था.
मरीज का बदन पोंछने के बाद सुधा ने उसे दूसरे धुले हुए कपड़े पहनाए. उसे अपने हाथों से एक कप दूध पिलाया और कुछ बिसकुट भी तोड़तोड़ कर खिलाए. फिर वह उसे अपनी बांहों के सहारे से बिस्तर पर सुलाने की कोशिश करने लगी.
मरीज को नींद नहीं आते देख सुधा उस के सिर पर हाथ फेरते हुए व थपकी दे कर उसे सुलाने की कोशिश करने लगी थी. उस के ममता भरे बरताव से मरीज को थोड़ी ही देर में नींद आ गई थी.
जैसे ही मरीज को नींद आई, रवि लपक कर सुधा के करीब आ गया था. उस ने सुधा को अपनी बांहों में भरने की कोशिश की, पर सुधा छिटक कर उस से दूर हो गई.
‘‘अरे, यह आप क्या कर रहे हैं. आप वही हैं न, जो कुछ दिन पहले यहां एक सड़क हादसे के बाद दाखिल हुए थे. अब आप को क्या दिक्कत है?’ सुधा ने उस से पूछा.
‘‘अरे, यह क्या कह रही हो तुम? ऐसे अजनबियों जैसी बातें क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा वही रवि हूं जिस ने तुम्हारे प्यार के बदले में तुम से भी उतना ही प्यार किया था और हम जल्दी ही शादी करने वाले थे,’’ कहता हुआ रवि उस के करीब आ गया.
रवि की बातों के जवाब में सुधा ने कहा, ‘‘मिस्टर आप रवि हैं या कवि, आप की बातें मेरी समझ से परे हैं. आप किस प्यार और किस शादी की बात कर रहे हैं, मैं समझ नहीं पा रही हूं.
‘‘देखिए, मैं एक नर्स हूं. मेरा काम यहां मरीजों की सेवा करना है. भला इस में प्यार और शादी कहां से आ गई.’’
‘‘तो क्या आप ने मुझे भी महज एक मरीज के अलावा कुछ नहीं समझा?’’ रवि बौखलाते हुए बोला.
सुधा ने अपने मरीज की ओर देखते हुए रवि को धीरेधीरे बोलने का इशारा किया और उसे खींचते हुए दरवाजे तक ले गई. वह उस को समझाते हुए बोली, ‘‘आप को गलतफहमी हुई है. हम यहां प्यार करने नहीं बल्कि अपने मरीजों की सेवा करने आते हैं.
‘‘अगर हम भी प्यारव्यार और शादीवादी के चक्कर में पड़ने लगे तो हमारे घर में हर दिन एक नया पति दिखाई देगा.
‘‘प्लीज, आप यहां से जाइए और मेरे मरीज को चैन से सोने दीजिए.’’
इस बीच मरीज ने अपनी आंखें खोल लीं. उस ने सुधा से पानी पीने का इशारा किया. सुधा तुरंत जग में से पानी निकाल कर चम्मच से उसे पिलाने बैठ गई. पानी पिलातेपिलाते वह मरीज के सिर को भी सहलाए जा रही थी.
रवि सुधा से अपनी जिस बात के लिए माफी मांगने आया था, वह बात उस के दिल में ही रह गई. उसे तसल्ली हुई कि सुधा के मन में उस के प्रति ऐसी कोई बात कभी आई ही नहीं थी, जिसे सोच कर उस ने दूर तक के सपने देख लिए थे.
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सुधा रवि से ‘सौरी’ कहते हुए अपने मरीज की तीमारदारी में लग गई. रवि ने कमरे से बाहर निकलते हुए एक नजर सुधा व उस के मरीज पर डाली. मरीज को लगी हुई पेशाब की नली शायद निकल गई थी, इसलिए वह कराह रहा था. सुधा उसे प्यार से पुचकारते हुए फिर से नली को ठीक करने में लग गई थी.
सुधा की बातों और आज के उस के बरताव ने रवि के मन का सारा बोझ हलका कर दिया था.
आज रात रवि को जम कर नींद आई थी. एक हफ्ते तक दफ्तर के कामों में बिजी रहने के बाद रवि दोबारा अपने गांव जाने वाली रेल में सवार था. उस की रेल भी उसे गुंजा तक जल्दी पहुंचाने के लिए पटरियों पर सरपट दौड़ लगाती हुई आगे बढ़ी चली जा रही थी. जो गांव उसे कल तक काटता था और जिस की ओर वह मुड़ कर भी नहीं देखना चाहता था, आज उस के आगोश में समाने को बेताब था.