लेखक-अरुण अर्णव खरे
आनंदिता इतनी खूबसूरत थी कि शेखर पहली नजर में ही उस के व्यक्तित्व और खूबसूरती पर फिदा हो गया था. जिंदगी का एक खुशनुमा दौर था उन दोनों का लेकिन, उन्हें क्या पता था कि जिंदगी का एक घिनौना रूप भी उन्हें देखना पड़ेगा.
‘‘पापा, सी देयर, हाऊ स्केरी इज दैट आंटी,’’ प्रशांत के 12 वर्षीय पुत्र प्रथम ने हाथ के इशारे से आनंदिता को दिखाते हुए कहा, ‘‘अरे, वे तो इसी ओर आ रही हैं.’’
प्रथम अपनी बात समाप्त कर पाता, इस से पहले ही आनंदिता का बेटा रुद्र चिल्लाते हुए उस की ओर लपका, ‘‘ओए, क्या बोला तू ने, स्केरी, मैं बताता हूं इस का मतलब तुझे.’’
‘‘रुद्र, बेटे रुको, ऐसा नहीं करते,’’ आनंदिता और शेखर दोनों ने ही बेटे को रोकना चाहा लेकिन तब तक रुद्र ने प्रथम को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया था और उस के गालों पर ताबड़तोड़ 3 तमाचे जड़ दिए थे, ‘‘क्या बोला तू ने मेरी मां के लिए, फिर से बोल, देख, मैं क्या हाल करता हूं तेरा.’’
शेखर ने रुद्र को पकड़ कर अलग किया. आनंदिता ने गुस्से से कांप रहे बेटे को मीठी डांट लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता. माफी मांगो इन से. हम यहां एलुमिनी मीट में पुराने दोस्तों से मिलने आए हैं. अगर तुम ऐसा ही करोगे तो हम वापस चलते हैं.’’
‘‘सौरी,’’ रुद्र ने मां की आज्ञा मानते हुए प्रथम की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. प्रशांत ने भी बेटे से हाथ मिलाने को कहा. लेकिन प्रथम आंख दिखाता हुआ कमरे के अंदर चला गया.
‘‘सौरी प्रशांत, यह अच्छा नहीं हुआ. हम शर्मिंदा हैं. रुद्र को ऐसा नहीं करना चाहिए. बच्चा है, हम समझाएंगे उसे,’’ शेखर ने प्रशांत से हाथ मिलाते हुए कहा. ‘‘इन से मिलो, ये हैं मेरी बेटरहाफ आनंदिता. तुम्हें याद होगा, मैं तुम से अकसर इन के बारे में ही बातें किया करता था.’’
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‘‘नमस्ते,’’ प्रशांत की आवाज सुन कर आनंदिता ने असहज महसूस किया लेकिन तुरंत ही संभलते हुए बोली, ‘‘नमस्ते भाईसाहब.’’
इसी बीच प्रशांत की पत्नी रोहिणी भी कमरे से बाहर आ गई थी. औपचारिक परिचय हुआ. वर्षों रूममेट रहे 2 मित्रों की मुलाकात अजीब सी कड़वाहटभरे माहौल में हुई. शेखर और आनंदिता रुद्र के व्यवहार को ले कर दुखी थे. उस ने पहले कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया था, उस समय भी नहीं जब पिं्रसिपल ने आनंदिता को विनयपूर्वक स्कूल के कार्यक्रमों में आने से मना किया था. शायद उस समय का गुस्सा था जो मौका पा कर अब बाहर आ गया था.
शेखर के सामने फादर विलियम्स का चेहरा घूम गया और उन के कहे शब्द कानों में गूंजने लगे, ‘आई होप, यू विल अंडरस्टैंड माइ पोजिशन. मुझे स्कूल के दूसरे बच्चों का भी ध्यान रखना है. मिसेज अग्निहोत्री जब भी स्कूल आती हैं, मैं ने स्वयं कुछ बच्चों की आंखों में भय महसूस किया है. हम रुद्र को पढ़ाना चाहते हैं. ही इज ए मेरीटोरियस स्टूडैंट, लेकिन आप को मेरी बात ध्यान में रखनी होगी, मिस्टर अग्निहोत्री. प्लीज डोंट बिं्रग हिज मदर फौर पीटी मीटिंग्स ऐंड इन अदर स्कूल ऐक्टिविटीज. इट्स माय हंबल रिक्वैस्ट.’
तब आनंदिता ने आगे बढ़ कर उस को इस असमंजस से उबारा था, ‘शेखर, अपने बच्चे के लिए इतना त्याग तो मुझे करना ही चाहिए. मैं सह सकती हूं इतना, तो… जीवन में जब इतना सहा है तो यह कौन सी बड़ी बात है.
आनंदिता की बात सुन कर अंदर तक भीग गया था वह. और कितना सहेगी आनंदिता. पिछले 20 सालों से सह ही तो रही है और शायद आखिरी सांस तक सहती ही रहेगी. घटनाएं भी किसीकिसी के जीवन को कैसे बदल डालती हैं. हर पल नई चुनौती. नई परीक्षा. हर आंख घूरती हुई, उपेक्षा और घृणा का भाव लिए.
क्या गलती है आनंदिता की? किसी के वहशीपन की सजा भुगत रही है वह तो. उसे पता ही नहीं कि किस ने उस के ऊपर तेजाब फेंका था. क्या अपराध था उस का. क्या चाहता था वह. पर उस के निशाने पर वह थी, यह जानती है.
जब यह हादसा हुआ था उस समय वह अकेली ही थी. खरी फाटक के मोड़ के आगे सुनसान सड़क पर. कोचिंग क्लास से लौटने में देर हो गई थी उस दिन उसे. रात गहराने लगी थी. वह जल्दी से घर पहुंच जाना चाहती थी. पर नहीं रोक पाई वह गहराते हुए अंधेरे को. और अगले कुछ ही क्षणों में सारी जिंदगी उसी अंधेरे के हवाले हो गई. पर हिम्मतवाली है आनंदिता. इतना सब होने के बाद भी जिंदगी से हारी नहीं. उठ कर खड़ी हो गई. दरिंदगी को ठेंगा दिखाते हुए जिंदादिली की मिसाल बन कर. अब तक कितनी ही विपरीत पस्थितियों से, घूरती आंखों और कड़वी जबानों से बिना उफ किए लड़ती आई है. आगे भी लड़ेगी इसी बहादुरी से.
‘‘मुझे माफ कर दो, मां. अब दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा,’’ रुद्र आनंदिता से लिपट कर बोल रहा था, ‘‘आप को दुख पहुंचाया मैं ने. क्या करूं मैं, आप की तरह अच्छा नहीं बन पाया. कोशिश करूंगा कि फिर आप को दुखी न करूं.’’
आनंदिता ने खींच कर उसे गले लगा लिया, ‘‘गलती का एहसास हो जाना, पछतावे के बराबर है, बेटा. अब आगे ध्यान रखना. फिर कभी मेरे लिए इस तरह किसी से बिहेव मत करना. यदि कोई तुम्हें बदसूरत मां का बिगड़ैल बेटा कहेगा, तो मैं नहीं सह पाऊंगी. मैं सब से लड़ सकती हूं पर खुद से लड़ने की शक्ति नहीं है मुझ में.’’
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‘अरे, तुम दोनों यहां आओ मेरे पास, बैठो. हमें शाम के कार्यक्रम के बारे में फाइनल करना है. तुम अपनी सीडी भी चैक कर लो, रुद्र, जिस पर तुम डांस करने वाले हो,’’ शेखर ने रुद्र और आनंदिता का ध्यान बंटाने के लिए कहा, ‘‘आनंदी, तुम भी एक बार रुद्र को प्रैक्टिस करा दो और स्वयं भी गाना गुनगुना कर देख लो कि कहीं कुछ भूल तो नहीं रही हो. बहुत दिनों से अभ्यास नहीं किया है तुमने भी.’’
आनंदिता और रुद्र अभ्यास में लग गए जैसे कुछ हुआ ही न हो. शेखर पलंग पर 2 तकियों के सहारे टिक गया. थोड़ी देर तक वह रुद्र के डांस स्टैप्स को देखता रहा, फिर आंखें बोझिल होने लगीं. उस के सामने बारबार प्रशांत और उस के बेटे प्रथम की तसवीर आ कर मन में हलचल मचा रही थी. क्या प्रथम के रूप में प्रशांत फिर लौट आया है? वैसी ही उद्दंडता, बेशर्मी और अक्खड़पन. 5 साल उस ने प्रशांत के साथ एक ही रूम में रहते हुए गुजारे थे. वह उस की कितनी ही कारगुजारियों का प्रत्यक्षदर्शी था. कितनी बार उस ने प्रशांत की ज्यादतियों का खमियाजा भी भुगता था, पर प्रशांत के चेहरे पर कभी आत्मग्लानि की हलकी सी शिकन तक नहीं देखी थी.रुद्र के स्टैप्स देखते हुए शेखर यादों में खो गया. मस्तिष्क में उभर आई
प्रशांत के साथ हुई पहली मुलाकात. एसए इंजीनियरिंग कालेज के ओल्ड होस्टल में उसे और प्रशांत को एक ही रूम अलौट हुआ था. शेखर पहले होस्टल में रहने आ गया था. प्रशांत ने 2 दिनों बाद वार्डन को रिपोर्ट किया था. उस ने प्रशांत का स्वागत करते हुए परिचय दिया था, ‘मैं शेखर अग्निहोत्री, नरसिंहपुर से.’ प्रशांत ने पूरी तरह बेरुखी दिखाई और बिना कोई उत्तर दिए अपना सामान शेखर के पलंग पर रख दिया और बोला, ‘तुम अपना बिस्तर उठा कर उस पलंग पर रखो, मैं यह पलंग लूंगा. यह टेबल और अलमारी भी खाली कर दो, मैं अपना सामान इन में रखूंगा.’
शेखर अवाक रह गया था, पर संयत रहा था. उस ने अपना बिस्तर और अन्य सामान हटा लिया. तीसरे दिन ही प्रशांत एक सीनियर से उलझ गया, जिस के कारण उस की पिटाई तो हुई ही, शेखर भी सीनियर्स के राडार पर आ गया. रात में जबतब उसे रैगिंग के लिए बुला लिया जाता, पिटाई होती और घंटों एक पैर पर खड़ा रखा जाता.
5 वर्षों में ऐसी कितनी ही ज्यादतियां शेखर ने सहन की थीं. प्रशांत अकसर ही उस के सैशनल पेपर और ड्राइंगशीट्स फोल्डर से निकाल कर अपने नाम से सब्मिट कर देता. शेखर को दोबारा मेहनत करनी पड़ती और टीचर्स की डांट मिलती, वह अलग. शेखर के विरोध का कभी कोई असर प्रशांत पर नहीं हुआ. वह तो जैसे शेखर की हर चीज पर अपना हक समझता था. धीरेधीरे शेखर भी सावधानी बरतने लगा और वह अपने नोट्स, ड्राइंगशीट्स अलमारी में लौक कर के रखने लगा. 4 माह बीत गए. प्रशांत बदलने लगा. उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया और वह विनम्र होने के साथ ही दोस्ताना भी हो गया. शेखर से उस की जमने लगी. दोनों अपनी बहुत सी बातें भी आपस में शेयर करने लगे..