करीब 3 माह के इलाज के बाद आज दिनकर को मैंटल हौस्पिटल से छुट्टी मिलने वाली थी. उसे जबरदस्त मानसिक आघात की वजह से आगरा के मैंटल हौस्पिटल में भरती कराया गया था. जब हौस्पिटल से सूचना मिली कि वह अब पूरी तरह से ठीक है और उसे घर ले जाया जा सकता है, तो उस की पत्नी, बेटाबहू और 3 साल का पोता विनम्र उसे लेने आए थे. हौस्पिटल की औपचारिकताएं पूरी करने में 2-3 घंटे का समय लग गया. फिर दिनकर जैसे ही वार्ड से बाहर आया उसे लेने आए सभी की आंखों में चमक दौड़ गई. खुशी के मारे सभी के आंसू छलक पड़े. दिनकर ने जैसे ही बांहें फैलाईं सब के सब दौड़ कर लिपट गए. नन्हा विनम्र दिनकर के गले से लिपट गया और दादूदादू कह कर प्यार से अपने कोमल हाथ उस के चेहरे पर फिराने लगा. दिनकर की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. विनम्र आंखें पोंछने लगा दादू की. बड़ा भावपूर्ण दृश्य था.

पत्नी कविता भी रह नहीं पाई, दिनकर के पांवों में गिर पड़ी, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए,’’ कह कर बिलख पड़ी.

दिनकर ने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसे उठाया, फिर कहा, ‘‘चलो चलते हैं.’’

सरिता को ले कर दिनकर को मानसिक आघात लगा था, जिस के इलाज के लिए वह अस्पताल में था. सरिता से उस की मुलाकात 15 साल पहले एक रिश्तेदार की शादी में हुई थी. उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. गजब का आकर्षण था उस में. उस की शादी को 10 बरस हो गए थे, लेकिन आज भी ऐसा लगता था जैसे जवानी की दहलीज पर कदम रखा है. किसी को विश्वास ही नहीं होता था कि 30 वसंत देख चुकी सरिता 2 बच्चों की मां भी है. शादी में कविता ने दिनकर से सरिता का परिचय कराया.

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