‘‘दीदी.’’ स्वरा चौंक उठी, अरे, यह तो श्रेया की आवाज है. वह उल्लसित मन से छोटी बहन की ओर लपकी, ‘‘अरे तू, आने की सूचना भी नहीं दी, अचानक कैसे आना हुआ?’’
‘‘कुछ न पूछो दीदी, कंपनी का एक सर्वे है, उसी के लिए मुझे 2 माह तक यहीं रहना है. बस, मैं तो बहुत ही खुश हुई, आखिर इतने दिन मुझे अपनी बहन के साथ रहने को मिलेगा,’’ कह कर श्रेया अपनी दीदी स्वरा के गले में झूल गई. स्वरा को भी खूब खुशी हो रही थी, आखिर श्रेया उस की दुलारी बहन जो थी.
‘‘स्वरा, एक कप चाय देना,’’ अमित ने गुहार लगाई.
जी, अभी लाई, कह कर स्वरा चाय ले जाने को तत्पर हो गई.
‘‘लाओ दीदी, मैं जीजू को चाय दे आती हूं,’’ कह कर श्रेया ने बहन के हाथ से चाय की ट्रे ले ली और अमित के कमरे की ओर बढ़ी. कमरा खुला था, परदे पड़े थे. उस ने झांक कर देखा, अमित की पीठ दरवाजे की ओर थी. वह अपना कोई प्रोजैक्ट तैयार कर रहा था. श्रेया ने चाय साइड टेबल पर रख दी और अमित की आंखों को अपने हाथों से बंद कर दिया. अमित हड़बड़ा गया, ‘‘क्या है स्वरा, आज बड़ा प्यार आ रहा है. क्या दिल रंगीन हो रहा है. अरे भई, दरवाजा तो बंद कर लो.’’ अमित ने श्रेया को स्वरा समझ कर अपनी ओर खींच लिया, श्रेया भरभरा कर अमित की गोद में आ गिरी.
‘‘हाय, जीजू क्या करते हैं, मैं आप की पत्नी नहीं, बल्कि श्रेया हूं, आप की इकलौती साली. क्यों, चौंक गए न,’’ श्रेया संभलती हुई बोली.
‘‘हां, चौंक तो गया ही, चलो कोई बात नहीं, आखिर साली भी तो आधी घरवाली होती है,’’ अमित ने ठहाका लगाया.
‘‘क्या बात है, बड़े खुश हो रहे हो,’’ स्वरा भी वहीं आ गई.
‘‘हां भई, खुशी तो होगी ही. अब इतनी सुंदर साली को पा कर मन पर काबू कैसे रखा जा सकता है. दिल ही तो है, मचल गया,’’ अमित ने शोखी से कहा.
‘‘हुं, ज्यादा न मचलें, थोड़ा काबू रखो. मेरी बहन कोई सेंतमेत की नहीं है, जो किसी का भी दिल मचल जाए,’’ स्वरा ने अमित को छेड़ा और दोनों बहनें हंसती हुई कमरे से बाहर आ गईं.
दिन के साढ़े 10 बजे रहे थे. श्रेया को सर्वे के लिए निकलना था. वह तैयार होने चली गई. अमित भी औफिस के लिए तैयार होने चला गया. दोनों साथ ही निकले. श्रेया आटो के लिए सड़क की ओर बढ़ने लगी कि तभी अमित ने पीछे से आवाज दी, ‘‘रुको साली साहिबा, तुम्हारी प्रोजैक्ट साइट मेरे औफिस के रास्ते में ही है, मैं तुम्हें ड्रौप कर दूंगा.’’ स्वरा ने भी हां में हां मिलाई और श्रेया लपक कर अमित की बगल वाली सीट पर बैठ गई.
अमित ने कहा, ‘‘बैल्ट लगा लो श्रेया, यहां ट्रैफिक रूल्स बहुत सख्त हैं.’’
श्रेया ने बैल्ट लगाने की कोशिश की लेकिन वह लग नहीं रही थी. शायद कहीं फंसी हुई थी. उस ने बेबसी से अमित की ओर देखा. अमित समझ गया और थोड़ा झुक कर बैल्ट को खींचने लगा कि अचानक बैल्ट खुल गई. श्रेया झटका खा कर अमित की ओर लुढ़क गई. ‘‘सौरी,’’ उस ने धीरे से कहा. ‘‘ओके, जरा ध्यान रखा करो.’’ अमित ने गाड़ी बढ़ाते हुए कहा.
अब यह प्रतिदिन का नियम बन गया था. अमित श्रेया को उस की साइट पर छोड़ता और शाम को लौटते हुए उसे साथ में ले भी लेता था. वैसे तो यह एक सामान्य बात थी. जब दोनों का समय और रास्ता भी एक ही था तो साथ आनेजाने में कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन यह प्रतिदिन का जो साथ था, वह बिना किसी रिश्ते के एक अनजाने रिश्ते की ओर बढ़ रहा था.
अमित युवा था और उस का दिल सदैव उन्मत्त रहता था. रूपसी पत्नी के साहचर्य ने उसे और भी अधिक शोख बना दिया था. सुंदर स्त्रियों के साथ उसे आनंद आता था. अब हर समय उसे स्वरा का साथ तो उपलब्ध नहीं होता था तो वह अकस्मात ही अन्य स्त्रियों की ओर आकर्षित होने लगता था. वह सोचता भी था कि यह गलत है, किंतु आंखें? उन का क्या, उन्हें बंद तो नहीं किया जा सकता था. उन्हें देखने से कोई कैसे रोक सकता था.
श्रेया भी युवा थी, अपरिमित सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का हृदय जबतब मचलता रहता था. पुरुषों की सौंदर्यलोलुप दृष्टि का वह आनंद उठाती थी. पुरुष साहचर्य की कामना भी करती थी परंतु अपनी मर्यादाओं को समझते हुए. एक बार उस की किसी नवविवाहिता सहेली ने उसे बताया था, ‘पुरुष का प्रथम स्पर्श बहुत ही मधुर होता है.’ यह सुन कर वह रोमांचित हो उठी थी.
उसे अमित का साथ अच्छा लगने लगा था. यद्यपि कि उसे अपने पर शर्म भी आती थी कि वह जो कुछ भी कर रही है, वह गलत है. अमित उस की ही बहन का सुहाग है. जिस की ओर देखना भी उचित नहीं है, किंतु मन, उस का क्या, उस पर तो किसी का वश नहीं चलता है.
श्रेया यौवन के नशे में चूर थी और पुरुष साहचर्य की कामना करती रहती थी जो विवाह से पूर्व संभव न था. लेकिन अमित के साथ सट कर बैठना, उस के साथ घूमनाफिरना सब बहुत लुभावना लगता था.
उसे अपनी बहन की आंखों में देखते हुए भय लगता था क्योंकि उन आंखों में अनेक संशयभरे प्रश्न होते थे जिन का उस के पास कोईर् जवाब नहीं होता था. वह कभी भी अपनी दीदी से आंख मिला कर बात नहीं कर पाती थी.
स्वरा सब देख, समझ रही थी. उसे आश्चर्य भी होता था और दुख भी. आश्चर्य अमित के रवैए पर था, वह पत्नी को कम से कम समय देता, खानेपीने में अरुचि दिखाता, उस के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से स्वरा अनभिज्ञ नहीं थी. दुख इस बात का था कि उस की प्यारी छोटी बहन उसे ही धोखा दे रही थी.
दिनप्रतिदिन श्रेया और अमित की नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थी. अब उन्हें इस बात की कोई भी चिंता नहीं होती थी कि स्वरा शाम की चाय पर उन की प्रतीक्षा कर रही होगी. वे दोनों तो घूमतेफिरते रात्रि के 8 बजे से पूर्व कभी भी घर नहीं पहुंचते थे. स्वरा जब भी अमित से देरी का कारण पूछती तो उत्तर श्रेया देती, ‘‘हां दीदी, जीजू तो समय पर लेने के लिए आ गए थे किंतु मेरा मन कुल्फी खाने का कर रहा था और मार्केट वहां से दूर भी बहुत है. अब समय तो लगता ही है न.’’ और कभी कौफी का बहाना, कभी ट्रैफिक का बहाना. स्वरा इन सब बातों का मतलब समझती थी. ‘‘और चाय,’’ वह धीमे से पूछती.
‘‘अब चाय क्या पिएंगे, सीधे खाना ही खिला देना, क्यों जीजू.’’
‘‘हां, और क्या, वैसे भी बहुत थक गया हूं. जल्दी ही सोना चाहूंगा,’’ अमित उबासी लेने लगता.
इधर सुबह दोनों जल्दी ही उठ कर कंपनीबाग सैर करने जाते थे. कभी भी स्वरा से चलने के लिए नहीं कहते थे. स्वरा मन ही मन कुढ़ती थी और समस्या के निराकरण का उपाय भी सोचती थी जो उसे जल्दी ही मिल गया. वह भी अकेली ही सैर पर निकल पड़ी और जौगिंग करते हुए अमित तथा श्रेया की बगल से हाय करते हुए मुसकरा कर आगे बढ़ गई. दोनों भौचक्के से उस की ओर देखने लगे. स्वरा को ट्रैक सूट में देख कर अमित अपनी आंखें मलने लगा, यह स्वरा का कौन सा अनोखा रूप था जिस से वह अपरिचित था.
घर आ कर स्वरा ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया और उन दोनों का इंतजार किए बिना स्वयं नाश्ता करने लगी. तभी अमित भी आ गया, ‘‘यह क्या मैडम, आज मेरा इंतजार नहीं किया, अकेले ही नाश्ता करने बैठ गई.’’
‘‘तो क्या करती? जौगिंग कर के आई हूं. भूख भी कस कर लग आई है, फिर खाने के लिए किस का इंतजार करना.’’ स्वरा ने टोस्ट में औमलेट रख कर खाते हुए कहा. अमित तथा श्रेया दोनों ने ही स्वरा में आए इस बदलाव को महसूस किया. दोनों ने अपनाअपना नाश्ता खत्म किया और तैयार होने कमरे में चले गए.
‘‘स्वरा, मेरा टिफिन लगा दिया?’’ अमित ने हांक लगाई.
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