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लेखक- संजीव कपूर लब्बी

नंदन गिलास उठाता या कुछ बोलता, इस से पहले ही भानु का इशारा पा कर युवती ने कंपकपाते हाथों से गिलास उठा लिया. नंदन अभी सोच में डूबा बैठा था. भानु उस की ओर देख कर व्यंग्य में बोला, ‘‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. ज्यादा संयासी न बनो उठाओ गिलास.’’

नंदन का हाथ फिर भी आगे नहीं बढ़ा तो भानु अपना गिलास मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘यकीन मानो, तुम्हें डिस्टर्ब करने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ये सब तो मजाक था. फोटो डिलीट कर दूंगा. लेकिन जब तक मैं हूं, मेरे साथ इंजौय करो. मैं 2 पैग पी कर चला जाऊंगा. लेकिन ये 2 पैग मैं ने तुम दोनों के साथ पीने का वादा किया है.’’

नंदन समझ गए, भानु यूं मानने वाला नहीं है. मजबूरी थी, सो उन्होंने गिलास उठा लिया. युवती और नंदन दोनों ही आधे घंटे से भयानक तनाव में थे. उन्होंने गिलास हाथ में उठाए तो खाली होते देर न लगी. एक पैग ह्विस्की गले से नीचे उतरी, तो उन के चेहरों पर तनाव की रेखाएं कुछ कम हुईं.

उन दोनों के गिलास खाली देख भानु ने भी अपना गिलास खाली किया और तीनों के लिए एकएक पैग और बनाया. नंदन और उस युवती ने यह सोच कर दूसरे पैग भी जल्दी ही खाली कर दिए कि उन की देखादेखी वह भी जल्दी से गिलास खाली कर के चला जाएगा. लेकिन भानु ने दूसरा पैग पीने में कोई जल्दी नहीं की. वह चिकन खाते हुए आराम से सिप करता रहा.

खानेपीने के इस दौर में उन तीनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी. बीच में कुछ बोलता भी था, तो केवल भानु. नंदन और युवती के गिलास खाली देख भानु ने उन के गिलासों में ह्विस्की डालनी शुरू की, तो नंदन ने चौंकते हुए कहा, ‘‘ये क्या कर रहे हो भानु?’’

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