आज सुबह वह रोज से जरा जल्दी जाग गई. उस ने झट से दरवाजा खोला और बाहर पड़े अखबार को उठा लाई. अखबार के एकएक पन्ने को वह बारीकी से देखने लगी. तभी एक कुटिल सी मुसकान उस के होंठों पर तैर गई.
उस की मां रसोई से पुकार रही थी, ‘‘शोमा...शोमा, तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है. रसोई में आ कर ले जाओ. ’’
पर शोमा तो खबर पढ़ने में मशगूल थी. पूरी खबर पढ़ कर बोली, ‘‘मां, क्यों शोर मचा रही हो? मेरे तो कान पक गए.’’
‘‘तुम्हारे कान पक गए और मेरी जीभ में छाले न पड़े तुम्हें पुकारपुकार कर? उलटा चोर कोतवाल को डांटे... इतनी जोर से पुकारा तो तुम्हें अब सुनाई दिया,’’ शोमा की मां ने उलाहना देते हुए कहा.
‘‘मां, क्यों नाराज होती हो. अखबार पढ़ रही थी और तुम हो कि लगातार बोलबोल कर खबरों का मजा किरकिरा कर रही थीं.’’
‘‘लो जी, यह भी मेरा ही दोष? क्या मिलेगा इन खबरों से? एक तो भरी सर्दी में गरमगरम चाय बना कर दो ऊपर से इन का खबरों का मजा किरकिरा हो गया...ऐसी कौन सी खास खबर आ गई आज अखबार में कि तुम मुंह अंधेरे उठ कर सब से पहले अखबार टटोलने लगीं?’’
‘‘खबरें तो खास ही होती हैं मां. तुम मुझे बोलने का मौका दो तो मैं तुम्हें बताऊं. मुझे जल्दी से बाहर जाना है. अब तुम सुनो तो मैं आगे की कहानी कहूं?’’
‘‘हां, कहो जल्दी से.’’
‘‘मां, मेरा वह क्लासमेट है न रौकी, जो हीरो जैसा दिखता है और तुम अकसर जिस के बालों का मजाक बनाया करती हो...’’