अगले दिन चमेली जसोदा को 25 नंबर के आगे मिली. दोनों ने साथ में काम किया था.
बरामदे में शीला और सान्याल बैठी बियर पी रही थीं. चमेली दोनों के बीच होने वाली वार्त्तालाप को बड़े ध्यान से सुन रही थी.
शीला, ‘‘समाज के इस घिनौना नंगे सच को लोगों के सामने तो लाना ही होगा.’’
‘‘सो तो है. वह दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बारे में पढ़ा?’’ सान्याल बोली.
‘‘हां, मैं ने तो टीवी पर सारा डिटेल में देखा है. सरेआम लोग दरिंदगी कर रहे हैं. सरकार कोई ऐक्शन क्यों नहीं लेती?’’
‘‘बेचारी लड़कियां... थैंकगौड... मेरी बेटियां तो आउट औफ इंडिया हैं,’’ शीला ने बियर का लंबा सिप खींचा.
सान्याल ने सिर घुमा कर शीला को ऐसे देखा जैसे बाकी दुनिया की लड़कियां तो कूड़ाकरकट हैं.
‘‘यू आर राइट शीला,’’ सान्याल को लगा कि अभी यह औरत 1 ग्लास और गटक सकती है. मुंह जुठारने को पूछ ही लिया, ‘‘वन मोर?’’
‘‘नो... नो, इनफ...’’
आखिरी घूंट हलक में उडे़ला और उठ गई, ‘‘ओके सान्याल, मैं चलूं? मिलती हूं सैटरडे को. पैसों का हिसाबकिताब पार्टी के बाद कर लेंगे.’’
शीला जा चुकी थी. सान्याल ने उसे सीढि़यां उतरते देख लिया था.
‘‘स्साली, इडियट. मुफ्ती की मिल जाती है न इसीलिए चिपक जाती है. पूरी बोतल खाली कर के ही हिलती है... यहां से,’’ सान्याल खुद से बातें कर रही थी. इस बीच 2-4 मोटीमोटी अंगरेजी में गालियां और जड़ दीं शीला को.
चमेली का मन किया कह दे यहां तो सभी ऐसे हैं, मुंह पर कुछ पीछे कुछ. सोचा नहीं, कल को इन दोनों के घर में नौकरी करनी है. चुप रहना ही ठीक होगा.