हफ्ता निकल गया. डर थोड़ा कम तो हुआ पर गया नहीं. झुग्गी के ठीक सामने खूब घना जामुन का पेड़ है. गरमियों के मौसम में कई बस्ती वाले रात को इसी पेड़ के नीचे सोते हैं और सर्दियों में सभी बुजुर्ग यहां धूप सेंकते हैं. कुछ बच्चे कंच्चे और क्रिकेट भी खेलते हैं.
अकसर मीना दरवाजे पर खड़ी हो कर बच्चों के खेल का आनंद लेती है. 2 दिन से 18-19 साल के एक लड़के को पेड़ के नीचे डेरा डाले देख रही है. मैलेकुचैले कपड़ों में यह लड़का चुपचाप झुग्गी को ताकता रहता है. शुरू में मीना को अजीब सा लगा. फिर जल्द ही सम झ आ गया, मुसीबत का मारा है बेचारा. भोले से चेहरे वाले इस लड़के के करीब बैठने का जी करता.
आजकल दोनों बहनों के बीच वार्त्ता का विषय, मुच्छड़ नहीं पेड़ के नीचे बैठा वह लड़का है.
मीना को बड़ा तरस आता है इस बेचारे पर. जी करता है पूछे कि वह ऐसा क्यों है?
नहीं, दोनों बहनें अपनी परिधि से घिरी हैं. किसी ने उन्हें लड़के से बात करते देख लिया तो बात उछालने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा. पूरी बस्ती है ही ऐसी. इस से अच्छा है इसे इसी के हाल पर छोड़ देते हैं. पर बच्चे अकसर पागल कह कर जब पत्थर मारते तो बहनों का जी तड़प जाता. संवेदना तो बस्ती वालों की पहले ही मर चुकी है. किसी के दुख को ये क्या सम झेंगे?
एक रोज मीना मौका देख लड़के के पास जा पहुंची. बोली, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’
‘‘कमल,’’ लड़के ने झिझकते हुए बताया.