‘‘सौरीमैडम, उपमा मिक्स का एक ही पैकेट था, जो इन्होंने ले लिया. नया स्टौक 3-4 दिनों में आएगा,’’ सेल्समैन की आवाज सुन कर रोहित ने मुड़ कर देखा. एक गौरवर्ण की अमेरिकन नवयुवती उस की तरफ देख रही थी.
उस के देखने में कुछ ऐसी कशिश थी कि रोहित ने उपमा मिक्स का पैकेट सेल्समैन को थमाते हुए कहा, ‘‘यह पैकेट इन्हें दे दो. मैं फिर ले लूंगा.’’ उस युवती ने रोहित को आभारयुक्त नजरों से देखा और फिर डिपार्टमैंटल स्टोर से चली गई.
मैट्रो टे्रन लेट थी. ठंड बढ़ने के साथसाथ घना कुहरा भी छाया था. रोहित प्लेटफार्म पर चहलकदमी कर रहा था. तभी वह वहां एक लड़की से टकराया. दोनों की नजरें मिलीं और दोनों मुसकरा पड़े. वह वही डिपार्टमैंटल स्टोर में मिलने वाली लड़की थी.
तभी मैट्रो आ गई और दोनों एक ही डब्बे में चढ़ गए. रोहित उस के रेशम से लंबे केशों और गौरवर्ण से बहुत प्रभावित हुआ. उस का नाम जेनिथ था. उन में बातचीत शुरू हो गई. ‘‘आप कहां काम करते हैं?’’ ‘‘पार्क एवेन्यू की एक कंपनी में.’’
‘‘मैं भी वहीं काम करती हूं. आप की बिल्डिंग के साथ वाली बड़ी बिल्डिंग में मेरा दफ्तर है.’’ इस मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ी. फिर दोनों में दूरियां समाप्त हो गईं. कभी रोहित जेनिथ के यहां चला जाता तो कभी जेनिथ उस के यहां आ जाती.
विवाह किए बिना रहने वाले स्त्रीपुरुषों को अमेरिका में सामान्य रूप से ही देखा जाता था. अमेरिका और पाश्चात्य देशों में तलाक लेने पर काफी खर्चा पड़ता था, इसलिए असंख्य जोड़े विवाह किए बिना लिव इन रिलेशनशिप में रहने को प्राथमिकता देते थे.
ऐसे जोड़ों में आपस में वफा या बेवफा जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं था. लेकिन इतना जरूर सम झा जाता था कि जब तक साथ रहें तब तक साथी वफादारी निभाए. एक रोचक बात यह थी कि कुछ समय के लिए साथसाथ रहने को रजामंद हुए जोड़ों में सारी उम्र का साथ बन जाता था, जबकि कानूनी तौर से विवाह कर पतिपत्नी बने जोड़ों का विवाह टूट जाता था.
यानी पक्की डोर से बंधा बंधन टूट जाता था तो कच्ची डोर से बंधा बंधन सारी उम्र चलता था. अमेरिका में युवकयुवतियों के लिए डेटिंग को जरूरी काम सम झा जाता था. जो डेटिंग पर नहीं जाता था उसे मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजा जाता था.
कौमार्य एक बेमानी बात सम झी जाती थी. जेनिथ ने रोहित से संबंध बनाए, साथ ही उस का और अपना एचआईवी टैस्ट भी करवाया कि कहीं उन में से कोई एड्स से ग्रस्त तो नहीं. दोनों इस बात से सहमत थे कि सैक्स संबंधों के दौरान कंडोम का प्रयोग कुदरती मजे को कम करता है.
एक रात सैक्स के दौरान रोहित ने कहा, ‘‘जेनिथ, तुम न कंडोम इस्तेमाल करने देती हो न ही और कोई गर्भनिरोधक अपनाती हो. अगर प्रैगनैंट हो गईं तो? ‘‘तो क्या? तब या तो गर्भपात करा लूंगी या फिर बच्चे को जन्म दे कर मां बन जाऊंगी,’’ जेनिथ ने सहजता से कहा. ‘‘गर्भपात तो ठीक है, मगर बच्चा…’’ ‘‘क्यों क्या आप को बच्चा अच्छा नहीं लगता?’’ ‘‘यह बात नहीं है.
मगर बिना विवाह किए बच्चे को जन्म देना तो नाजायज है?’’ ‘‘यह सब पुरातनपंथी बातें हैं. आजकल के जमाने में कोई इन बातों को नहीं मानता… छोड़ो इसे. यह बताओ आप अपनी पत्नी को यहां कब बुला रहे हो?’’ जेनिथ ने बात में उपजे तनाव को देखते विषय बदलते हुए पूछा. ‘‘मेरा हाल ही में ग्रीन कार्ड बना है. अब मैं अपनी पत्नी को यहां बुला सकता हूं.
मुझे अब बारबार अपना वीजा और वर्क परमिट बढ़वाने की जरूरत नहीं है.’’ रोहित की बात सुन कर जेनिथ गंभीर हो गई. आखिर ब्याहता पत्नी का कानूनी हक अपनी जगह था. वह तो एक साथी के तौर पर लिव इन रिलेशनशिप में उस के साथ रह रही थी. आखिरकार रोहित की पत्नी सुषमा का अमेरिका आना हो ही गया. जेनिथ ने हकीकत को सम झते हुए उस के आने से पहले ही अपना सामान रोहित के फ्लैट से उठा लिया और अपने फ्लैट में चली गई. रोहित की पत्नी सुषमा भी स्नातकोत्तर तक पढ़ीलिखी थी. साथ में कंप्यूटर में डिप्लोमा होल्डर थी. जेनिथ के मुकाबले वह थोड़े छोटे कद की थी. उस का रंग भी गेहुआं था. पर भारतीय नारी के दृष्टिकोण से वह भी सुंदर थी.
थोड़े दिनों तक घूमनाफिरना होता रहा. फिर रोहित सुषमा के लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. थोड़े समय में ही उस के लिए कंप्यूटर सौफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई. सुषमा के सहयोगियों में कई देशों के युवक थे. उस के साथ की सीट पर बैठने वाला एडवर्ड नील, अमेरिकन था. वह पुरानी सोच रखने वाला रोमन कैथोलिक ईसाई था. वह हर रविवार को चर्च जाता था.
अपने मातापिता की कब्रों पर मोमबत्तियां भी जलाता था. सुषमा उस के इस स्वभाव के कारण उस की तरफ आकर्षित होने लगी. एडवर्ड नील भी सुषमा के भारतीय पहनावे साड़ी और पंजाबी सलवारकमीज को बहुत पसंद करता था. वह भी सुषमा के प्रति स्नेह रखने लगा. एडवर्ड नील को भारतीय व्यंजन बहुत पसंद थे. सुषमा उस के लिए अपने टिफिन बौक्स में खाना लाने लगी.
एडवर्ड नील खाना लेते समय संकोच से भर उठता, क्योंकि वह बदले में खाना औफर नहीं कर पाता था. एक दिन उस के मनोभावों को सम झ सुषमा हंस कर बोली, ‘‘नील, कोई बात नहीं… टेक इट ईजी.’’ तब एडवर्ड नील ने हंस कर कहा, ‘‘क्या आप मु झे भारतीय खाना बनाना सिखाएंगी?’’ ‘‘श्योर… जब आप चाहो.’’ उस दिन रविवार था.
एडवर्ड नील सुषमा के यहां आया. सुषमा ने उस का रोहित से परिचय करवाया. परिचय करते समय रोहित कुछ असहज था जबकि एडवर्ड नील सहज था. एडवर्ड नील नीली जींस और सादी कमीज पर हलकी जैकेट पहने था जबकि रोहित पिकनिक का प्रोग्राम होने के कारण सूटेडबूटेड था. ‘‘रोहित, क्या आप कहीं बाहर जा रहे हैं?’’
‘‘हां, पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम था.’’ ‘‘आप तो सूटकोट में हो. मैं तो उस के बजाय कैजुअल वियर ही पसंद करता हूं. मु झे आप का भारतीय पहनावा कुरतापाजामा बहुत पसंद है.’’ ‘‘यानी आप भारतीय बन रहे हैं और हम अमेरिकन,’’ सुषमा की इस टिप्पणी पर सभी हंस पड़े. एडवर्ड नील ने मनोयोग से सुषमा के साथ रसोईघर में काम किया.
आलू छीले, टिकियां बनाईं, खीर बनाई और कई व्यंजन बनाए. फिर सभी पिकनिक पर चले गए. कार में बैठते समय सुषमा ने एडवर्ड नील से कहा, ‘‘आप अगली सीट पर बैठ जाएं.’’ ‘‘नहीं मैडम, मैं आप का स्थान नहीं ले सकता,’’ एडवर्ड नील ने अदा के साथ सिर नवा कर कहा और पिछली सीट पर बैठ गया. उस की इस अदा पर रोहित भी मुसकरा पड़ा.
पिकनिक स्पौट समुद्री तट था. कई स्त्रीपुरुष अधोवस्त्रों में रेतीले तट पर लेटे धूप सेंक रहे थे. कई समुद्र में नहा रहे थे. एडवर्ड नील कपड़े उतार जांघिया पहने समुद्र में उतर गया. सुषमा तैरना जानती थी मगर इस तरह अधोवस्त्रों में वह समुद्र या नदी में नहीं जाती थी. पिकनिक का दिन काफी अच्छा बीता. फिर एडवर्ड नील थोड़ेथोड़े अंतराल पर सुषमा के घर आता रहा.
थोड़े समय में ही वह अनेक भारतीय व्यंजन बनाना सीख गया. फिर वह भी सुषमा और अन्य साथियों के लिए भारतीय व्यंजन लाने लगा. एडवर्ड नील और सुषमा के मेलजोल को रोहित शंकित नजरों से देखने लगा. वह स्वयं एक गोरी मेम को कई महीनों तक अपने यहां एक साथी के तौर पर रख चुका था, इसलिए शंकित था कि एडवर्ड नील भी उस की पत्नी से गलत संबंध बनाएगा.
अत: अब वह बारबार सुषमा पर तुनक पड़ता. पहले सुषमा को वीकऐंड पर बाहर घुमाने ले जाता था. मगर अब अकेला जाता था. एडवर्ड नील का अपनी पत्नी से हाल ही में तलाक हुआ था. वह आम अमेरिकन लड़कियों के समान ही उच्छृंखल विचारों की थी.
उस की नजरों में उस का पति एक मिस फिट पर्सन था. कमोबेश ऐसे ही विचार सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले अन्य सहयोगियों के थे. उन के विपरीत सुषमा एडवर्ड नील को एक फिलौस्फर और जीनियस मानती थी. दोनों में धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ने लगी. सुषमा का आकर्षण रोहित के लिए काफी कम हो गया. तब उसे जेनिथ की याद आई. 2-3 माह से उस ने उस की खबर न ली थी.
उस ने जेनिथ का फोन नंबर मिलाया. ‘‘अरे, आज आप को मेरी याद कैसे आ गई?’’ ‘‘कभी तो आनी ही थी. कैसी हो?’’ ‘‘फाइन… आप कैसे हैं? आप की पत्नी का क्या हाल है?’’ ‘‘अच्छा है, मिलने आ जाऊं?’’ ‘‘आ जाओ.’’ जेनिथ रोहित का फ्लैट छोड़ते समय प्रैगनैंट थी.
प्रैगनैंसी का पता उसे थोड़े समय बाद ही चला था. वह इस कशमकश में थी कि गर्भपात करवाए या नहीं. वह जानती थी कि बढ़ती उम्र में सहारे के लिए एक साथी के साथसाथ बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर जीवनसाथी को पाना भी आसान था तो छोड़ना भी. मगर जो भावनात्मक सुरक्षा विवाह नामक बंधन या संस्था में थी
वह लिव इन रिलेशनशिप में नहीं थी. लिव इन रिलेशनशिप के आधार पर साथसाथ रहने वाले साथियों में हर समय डर सा रहता कि कहीं उस का साथी उस से नाराज हो या अन्य बैटर साथी पा कर उसे छोड़ न जाए. जबकि विवाह की डोर से बंधे पतिपत्नी निश्चिंत रहते. उन्हें डर नहीं रहता कि साथी छोड़ कर चला जाएगा. फिर यदि तलाक भी लेगा तो नोटिस देगा और इस में समय लगेगा. रोहित जेनिथ के फ्लैट पर पहुंचा. उस को उस के प्रैगनैंट होने की खबर नहीं थी.
जेनिथ गर्भपात कराऊं या नहीं करवाऊं इसी कशमकश के कारण निर्धारित समय निकाल चुकी थी. अब गर्भपात नहीं हो सकता था. गर्भावस्था के कारण उस का शरीर फूल गया था. उस ने ढीलेढाले वस्त्र पहने हुए थे. रोहित उस के बेडौल शरीर को देख कर हैरान रह गया. बोला, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ ‘‘आप स्त्री होते तो ऐसा न कहते.’’
‘‘गर्भपात करवा लेतीं.’’ ‘‘सोचा तो था. बाद में विचार बना बड़ी उम्र में एक जीवनसाथी और बच्चे की जरूरत भी पड़ती है. आखिर सारी उम्र तो कोई जवान नहीं रहता,’’ जेनिथ के स्वर में वेदना थी. रोहित थोड़ी देर इधरउधर की बातें करता रहा. फिर उठ खड़ा हुआ, ‘‘अच्छा मैं चलता हूं,’’ और फ्लैट से बाहर निकल गया. जेनिथ को रोहित के इस व्यवहार से धक्का लगा.
अमेरिकन या अंगरेज पुरुष स्वार्थी या मतलबी होते हैं, मगर क्या एक भारतीय भी इतना निर्मोही हो सकता है? अब उसे अपने प्यार या वासना का नतीजा भुगतना था. लिव इन रिलेशनशिप की पोल खुल चुकी थी. विवाह आखिर विवाह ही होता है. फिर उस ने अपनी देखभाल के लिए एक नर्सिंगहोम से संपर्क बना लिया. सुषमा का परिचय सामने के फ्लैट में रहने वाली पड़ोसिन मार्था डोरिन से हो गया.
वह उस के साथ फुरसत में गपशप मारने लगी. एक दिन मार्था डोरिन ने उस से कहा, ‘‘आप तो बहुत मिलनसार हो. आप से पहले वाली तो बहुत रिजर्व्ड थी. आखिर वह अमेरिकन थी न.’’ सुषमा सम झ गई कि रोहित ने उस के आने से पहले किसी लड़की को लिव इन रिलेशनशिप में रखा हुआ था. आखिर वह क्या करता? 3 साल से पत्नी से दूर था.
उसे भी स्त्रीसंसर्ग की जरूरत थी. मगर अब रोहित की उच्छृंखलताएं बढ़ गई थीं. वह रोज पीए घर लौटता था. सारी तनख्वाह पबों, बारों में और लड़कियों पर उड़ाने लगा था. घर का खर्चा सुषमा ही चलाती थी. कितनी विडंबना की बात थी कि जब तक पत्नी नहीं आई थी, जेनिथ से उस का संबंध जरूर था, लेकिन उस में संयम था. मगर अब उस की कामवासना विकृत हो चुकी थी. एडवर्ड नील तनहाई भरा जीवन गुजार रहा था. एक दिन सुषमा ने उस से हमदर्दी से पूछा, ‘‘नील, क्या आप को अकेलापन महसूस नहीं होता?’’ ‘‘यह तनहाई और अकेलापन क्या होता है?’’
‘‘क्या आप नहीं सम झते?’’ ‘‘देखिए, सुषमाजी, विवाह होने या जीवनसाथी के होने का मतलब यह नहीं है कि आप अकेलेपन का शिकार नहीं हैं. अगर पतिपत्नी की भी नहीं बनती हो तो सम झो ऐसे विवाह का कोई अर्थ नहीं.’’ ‘‘आप के यहां तो लिव इन रिलेशनशिप का चलन है. आप कोई साथी क्यों नहीं ढूंढ़ते?’’ ‘‘मेरा इस सिस्टम में विश्वास नहीं है.
इस का चलन उन पुरुषों में है, जो एक से ज्यादा स्त्रियों को शादी किए बिना साथ रखना चाहते हैं. आम आदमी तो विवाह के बंधन में ही विश्वास रखता है.’’ सुषमा अपने कार्यस्थल और घर आने के लिए कभी मैट्रो तो कभी लोकल बस का उपयोग करती थी. एक दिन डबलडैकर बस की खिड़की से उस ने रोहित को एक अमेरिकन युवती के साथ बगलगीर हो जाते देखा तो उसे धक्का लगा. उस रात भी रोहित नशे में धुत्त घर आया. उस रात सुषमा ने उसे सहारा न दिया.
गिरतापड़ता रोहित बिस्तर पर जा लेटा. सुबह नींद खुलने पर उस ने सुषमा को आवाज दी. मगर सुषमा नहीं आई. रोजाना उस की आवाज पर वह उसे चाय की प्याली थमा देती थी. ‘‘आज बैड टी नहीं बनाई?’’ उस ने पूछा. ‘‘खुद बना लीजिए,’’ उस की तरफ देखे बिना सुषमा ने कहा. ‘‘क्या आज मूड खराब है?’’ कहते हुए उस ने सुषमा को बांहों में लेना चाहा.
‘‘मु झे मत छुओ. अपनी उसी के पास जाओ जिस के साथ आप सरेआम घूमते हो.’’ इस पर रोहित ने तैश में आ कर कहा, ‘‘तुम उस दाढ़ी वाले फिलौसफर नील के साथ मस्ती करती हो और इलजाम मु झ पर लगाती हो?’’ ‘‘मैं इलजाम नहीं लगा रही… कल मैं ने खुद देखा था.’’ इस पर रोहित गुस्से में आ कर बाहर चला गया. दोनों अकेले हो गए. धीरेधीरे रुखाई बढ़ती गई. ‘‘तुम भारत वापस चली जाओ,’’ एक दिन रोहित ने कहा. ‘‘क्यों चली जाऊं?’’ ‘‘मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूं.’’
‘‘वह तो आप यहां भी दे सकते हैं. भारत में एक तलाकशुदा स्त्री की क्या स्थिति होती है, क्या मु झे पता नहीं है.’’ आखिरकार सुषमा का रोहित से तलाक हो ही गया. वह अपने साथी एडवर्ड नील के साथ चली गई. रोहित अपनी नई मित्र मारिया के यहां गया मगर उस ने नया प्रेमी कर लिया था. तब वह जेनिथ के यहां गया. पर वह भी एक नए प्रेमी संग घर बसा चुकी थी. खाली हाथ मलता रोहित अपने फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा उस दोराहे को देख रहा था, जिस के एक रास्ते से उस की 7 फेरों की ब्याहता चली गई तो दूसरे से लिव इन रिलेशनशिप की साथी. उस का घर उजड़ चुका था.