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तभी दरवाजे की घंटी बजी. हैरानपरेशान और अपने हालात से चिड़ा हुआ सा सुजय दरवाजे पर था. उस ने नेहा के चेहरे की तरफ देखा. ऐसा लग रहा था मानो नेहा कई घंटों से रो रही हो. उस की आंखें भी सूजी हुई थीं.

सुजय ने नेहा के मन की थाह लेने के मकसद से पूछा, ‘‘क्या हुआ सब ठीक तो है?’’

‘‘जी बस सिर में दर्द हो रहा था,’’ कह कर वह पानी ले आई और फिर जा कर बाथरूम में अपना चेहरा धोने लगी.

सुजय को लगा जैसे नेहा सच बात बताना नहीं चाहती. वैसे भी उस ने आज तक कोई सचाई बताई कहां है, यह सोचते हुए उस ने अपने पौकेट में पड़े एक बेकार कागज को फेंकने के लिए जूते से डस्टबिन का ढक्कन खोला तो उसे ऊपर ही किसी तसवीर के टुकड़े दिखाई दिए. उस ने कुछ बड़े टुकड़ों को मिला कर देखा तो उसे सम झ आ गया कि यह तो संजय की तसवीर थी.

अचानक उस की आंखों में यह सोच कर चमक आ गई कि लगता है संजय के साथ नेहा का तगड़ा वाला ब्रेकअप हो गया है. वह खुश हो गया मगर अपनी खुशी होंठों के बीच दबाते हुआ उस ने नेहा से चाय की फरमाइश की और खुद कपड़े बदल कर अपने कमरे में घुस गया.

नेहा चाय ले आई. आज चाय रख कर वह तुरंत मोबाइल में आंखें घुसाए अपने कमरे की तरफ नहीं गई बल्कि सुजय के कमरे को व्यवस्थित करने लगी. टेबल पर रखे कागज और पत्रिकाएं करीने से लगाने के बाद उस की अलमारी के कपड़ ठीक से लगाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह सुजय को समय देना चाहती है. उस के काम कर के अपनी गिल्ट कम करने की कोशिश कर रही हो.

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