मुंबई, सपनों की ऊंची उड़ान मुंबई, सपनों का शहर मुंबई, कहते हैं मुंबई शहर में व्यक्ति भूखा उठता है, लेकिन भूखा सोता नहीं है. लाखों युवकयुवतियां आंखों में सपनों के दीप जलाए मुंबई पहुंचते हैं. लेकिन कुछ युवकयुवतियों के सपने पूरे होते हैं और कुछ के सपने दम तोड़ देते हैं. कई मौत को भी गले लगा लेते हैं क्योंकि यथार्थ का धरातल बड़ा कठोर होता है. संघर्ष से घबरा जाते हैं. प्रेम, प्यार, रोमांस संघर्ष और सपनों का गवाह बनता है मुंबई का मरीन ड्राइव. प्रेमियों और संघर्षरत लोगों की मनपसंद जगह मरीन ड्राइव.
आज मरीन ड्राइव की भीड़ में शाम के समय एक युवक बैठा था. सड़क की तरफ पीठ किए समंदर की तरफ चेहरा. समंदर की लहरें किनारों से टकरा कर शोर मचाती हुई वापस समंदर में मिल जाती थीं. कुछ लहरें ज्यादा जोशीली हुईं तो युवक के पैरों को भिगो कर चली जातीं. छोटीछोटी चट्टानों के पीछे छिपे केकड़े रहरह कर ?ांक लेते थे समंदर को, फिर दुबक जाते थे बड़ेबड़े पत्थरों के पीछे.
लगभग 25 वर्ष के उस युवक का नाम कार्तिक था. चेहरे पर चिंता और सोच की परछाईं थी. हवा उस के माथे पर बिखरे बालों को थोड़ा और बिखेर देती थी. चेहरे पर हलकीहलकी
दाढ़ी थी. लंबी नाक, कमान सी खिंची आंखों में तनाव भी झलक रहा था. खिलता हुआ रंग और लंबा कद.
रोशनी से झिलमिल करती गगनचुंबी इमारतें. समंदर का पानी रोशनी में झिलमिल कर रहा था. कार्तिक शायद खयालों में इतना डूबा था कि उसे बज रहे मोबाइल की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही थी. मोबाइल की मधुर ध्वनि लगातार शोर कर रही थी. तभी फेरी वाला लड़का जो वहीं घूमघूम कर पौपकौर्न बेच रहा था, वह रुक गया. एक पल रुका फिर कार्तिक के पास जा कर बोला, ‘‘साहब, आप का मोबाइल बज रहा है उठाते क्यों नहीं? मरने के इरादे से बैठे हो क्या?’’