‘‘हैलो,’’ प्रियांशु ने मुसकरा कर नैनी की ओर देखा.

‘‘हैलो,’’ नैनी भी उसे देख कर मुसकराई.

‘‘तुम्हारा प्रोजैक्ट बन गया क्या?’’

‘‘नहीं, मेरा लैपटौप खराब हो गया है. ठीक होने के लिए दिया है. एक घंटे के लिए अपना लैपटौप दोगे मुझे?’’

‘‘क्यों नहीं, कब चाहिए?’’ प्रियांशु ने पूछा.

‘‘कल दोपहर में आ कर ले जाऊंगी. लंच भी तुम्हारे साथ करूंगी. संडे है न, कोई न कोई नौनवैज तो बनाओगे ही.’’

‘‘बिलकुल. क्या खाना पसंद करोगी, चिकन या मटन?

‘‘जो तुम्हें पसंद हो. वैसे, तुम्हारा प्राजैक्ट बन गया क्या?’’

‘‘हां, देखना चाहोगी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. कल आने के बाद,’’ नैनी ‘बायबाय’ कहते हुए चली गई. प्रियांशु भी अपने र्क्वाटर पर लौट आया.

प्रियांशु और नैनी एक कंपनी में साथसाथ काम करते थे. उन के क्वार्टर भी अगलबगल में थे. दोनों अभी कुंआरे थे. साथसाथ काम करने के चलते अकसर उन में बातचीत होती रहती थी. दोनों के विचार मिलते थे और दोस्ती के लिए इस से ज्यादा चाहिए भी क्या.

दूसरे दिन प्रियांशु मटन ले कर लौटा ही था कि नैनी आई.

‘‘बहुत जल्दी आ गई तुम नैनी?’’ प्रियांशु ने लान में रखी कुरसी पर बैठने का इशारा किया और खुद मटन रखने रसोईघर में चला गया.

‘‘तुम्हारा हाथ बंटाने पहले आ गई,’’ कह कर नैनी मुसकराई.

नैनी की यही अदा प्रियांशु को उस का दीवाना बनाए हुई थी.

‘‘अभी चाय ले कर आता हूं, फिर इतमीनान से खाना बनाएंगे,’’ कह कर प्रियांशु रसोईघर में चला गया.

प्रियांशु के पिताजी किसान थे. उस से बड़ी एक बहन थी जिस की शादी हो चुकी थी. उस से एक छोटा भाई महीप था जो मैडिकल इम्तिहान की तैयारी कर रहा था. पिता के ऊपर काफी कर्ज हो गया था.

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