कविता की जेठानी मीना 1 सप्ताह के लिए मायके रहने को गई तो उसे विदा करने के लिए सास कमरे से बाहर ही नहीं निकली.
‘‘मुझे तो बहुत डर लग रहा है, भाभीजी. आप का साथ और सहारा नहीं होगा, तो कैसे बचाऊंगी मैं इन से अपनी जान?’’ सिर्फ 4 महीने पहले इस घर में बहू बन कर आई कविता की आंखों में डर और चिंता के भाव साफ नजर आ रहे थे.
‘‘वे चुभने या बेइज्जत करने वाली कोई भी बात कहें, तुम उस पर ध्यान न दे कर चुप ही रहना, कविता, झगड़ा कर के तुम उन से कभी जीत नहीं सकोगी,’’ मीना ने उसे प्यार से समझया.
‘‘भाभी, अगर सामने वाला तुम्हारी बेइज्जती करता ही चला जाए, तो कोई कब तक चुप रहेगा?’’
‘‘उस स्थिति में तुम वह करना जो मैं करती हूं. जब तंग आ कर तुम जवाब देने को मजबूर हो जाओ, तो गुस्से से पागल हो इतनी जोर से चिल्लाने का अभिनय करना की सासूजी की सिट्टीपिट्टी गुम हो जाए. उन्हें चुप करने का यही तरीका है कि उन से ज्यादा जोर से गुर्राओ. अगर उन के सामने रोनेधोने की गलती करोगी तो वे तुम पर पूरी तरह हावी हो जाएंगी, कविता,’’ अपनी देवरानी को ऐसी कई सलाहें दे कर मीना अपने बेटे के साथ स्कूटर में बैठ कर बसअड्डा चली गई.
कविता अंदर आ कर दोपहर के भोजन की तैयारी करने रसोई में घुसी ही थी कि उस की सास आरती वहीं पहुंच गईं.
‘‘उफ, इस मीना जैसी बददिमाग और लड़ाकी बहू किसी दुश्मन को भी न मिले. अब सप्ताह भर तो चैन से कटेगा,’’ कह आरती ने अपनी छोटी बहू से बातें करनी शुरू कर दीं.