औफिससे निकल कर वंदना उस शुक्रवार की शाम को करीब 6 बजे क्रेच पहुंची तो पाया कि उस का 5 वर्षीय बेटा राहुल तेज बुखार से तप रहा था.

अपने फ्लैट पर जाने के बजाय वह उसे ले कर सीधे बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर नमन के क्लीनिक पहुंची. वहां की भीड़ देख कर उस का मन खिन्न हो उठा. उसे एहसास हो गया कि

8 बजे से पहले घर नहीं पहुंच पाएगी. डाक्टरों के यहां अब फिर कोरोना के बाद भीड़ बढ़ने लगी थी.

कुछ देर बाद बेचैन राहुल उस की गोद में छाती से लग कर सो गया. एक बार को उस का दिल किया कि अपनी मां को फोन कर के बुला ले, लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाई. उन का लैक्चर सुन कर वह अपने मन की परेशानी बढ़ाने के मूड में बिलकुल नहीं थी.

वंदना की बड़ी बहन विनिता का फोन 7 बजे के करीब आया. राहुल के बीमार होने की बात सुन कर वह चिंतित हो उठी. बोली, ‘‘तुम खाने की फिक्र न करना, वंदना. मैं तुम मांबेटे का खाना ले आऊंगी.’’

विनिता की इस पेशकश को सुन वंदना ने राहत महसूस करी.

डाक्टर नमन ने राहुल को मौसमी बुखार बताया और सलाह दी, ‘‘बुखार से जल्दी छुटकारा दिलाने के लिए राहुल को पूरा आराम कराओ और हलकाफुलका खाना प्यार से खिलाती रहना. जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर लेना. और हां एहतियातन कोविड टैस्ट करा लो ताकि कोई शक न रहे.’’

कैमिस्ट के यहां से दवाइयां ले कर

फ्लैट पर पहुंचतेपहुंचते उसे

8 बज ही  गए. उस ने पहले राहुल को दवा पिलाई. फिर उसे पलंग पर आराम से लिटाने के बाद अपने लिए चाय बनाने के लिए रसोई में चली आई. अपने तेज सिरदर्द से छुटकारा पाने

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