‘‘सुबहउठते ही सब से पहले हाथों में अपने करम की लकीरों के दर्शन करने चाहिए.’’  मां की यह बात मंजूड़ी के दिमाग में ऐसी फिट बैठी हुई है कि हर सुबह नींद खुलने के साथ ही उस के दोनों हाथ मसल कर अपनेआप ही आंखों के सामने आ जाते हैं. यह अलग बात है कि मंजूड़ी को इन में आज तक किसी देव के दर्शन नहीं हुए. अपने करम की लकीरों से सदा ही शिकायत रही है उसे. और हो भी क्यों नहीं... दिन उगने के साथ ही उसे रोजमर्रा की छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी जूझना पड़ता है... समस्या एक हो तो गिनाए भी... यहां तो अंबार लगा है...

उठते ही सब से पहले समस्या आती है फारिग होने की... बस्ती की बाकी लड़कियों के साथ उसे भी किसी की पी कर खाली की गई ठंडे की बोतल ले कर मुंह अंधेरे ही निकलना पड़ता है... अगर किसी दिन जरा भी आलस कर गई तो दिन भर की छुट्टी... अंधेरा होने तक पेट दबाते ही रहो...

इस के बाद बारी आती है नहानेधोने की... तो रोज न सही लेकिन कभीकभी तो नहानाधोना भी पड़ता ही है... यूं तो सड़क के किनारे बिछी मोटी पाइपलाइन से जगहजगह रिसता पानी इस काम को आसान बना देता है. जब वह छोटी थी तो मां के कमठाणे पर जाने के बाद कितनी ही

देर तक इस पानी से खेलती रहती थी. लेकिन एक दिन... जब वह नहा रही थी तब मुकेसिया उसे घूरने लगा था... पहली बार मां ने बांह

पकड़ के उसे कहा था ‘‘ओट में नहाया कर...’’ उस दिन के बाद वह ओट  में ही नहाती है. जी हां! ओट...

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