एक दिन मैं ने छुट्टी ले ली. घर में उस की पसंद की खीर बनाई और आलू की टिकियां. ये दोनों चीजें उसे बहुत अच्छी लगती थीं. वह स्कूल से घर आई. मैं बड़े प्यार से उसे मेज के पास ले गई. उस ने मेज पर रखी चीजें एकएक कर खोलीं, फिर बंद कर दीं. मैं खुशीखुशी उस की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी. जब वह कुछ न बोली तो मैं ने ही कहा, ‘चल नीलू, आज मैं तुझे स्वयं हाथ से खिलाती हूं.’
‘क्यों? आज मुझ से इतनी हमदर्दी क्यों?’ उस के शब्द शूल की तरह मेरे हृदय को भेद गए?
‘बेटी, कैसी बात करती है. मैं ने तेरी पसंद की चीजें बनाई हैं. देख...खीर, आलू की गरमगरम टिकिया.’
‘मुझे भूख नहीं है.’
‘क्या हुआ, मुझ से नाराज है?’
‘अगर तुम मुझे हर रोज इस प्रकार खाना खिलाओगी तो मैं आज खाने को तैयार हूं.’
मैं चुप हो गई, क्या जवाब देती. आखिर उसी ने चुप्पी तोड़ी, ‘बोलो, जवाब दो. क्या हर रोज घर पर रह सकती हो?’
‘तब तो मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी. और नौकरी छोड़ दूं तो हम तुम्हें वह सुख और आराम नहीं दे पाएंगे, जो तुम्हें आज मिल रहा है. देखो, तुम्हारे पास टीवी है, एसी है, कितने खिलौने हैं, अच्छे स्कूल में पढ़ती हो, क्या ये सब तुम्हें खोना अच्छा लगेगा?’
‘लेकिन पिताजी तो कहते हैं कि तुम्हें नौकरी करने की जरूरत नहीं है.’
‘वे तो यों ही कहते हैं. तुम जब बड़ी हो जाओगी, तभी ये बातें समझ पाओगी.’
‘क्या पता. लेकिन मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता. तुम्हारा हर रोज देर से आना, फिर रात को तुम्हारा और पिताजी का झगड़ा...’ यह कहतेकहते उस की आंखों से आंसू झरने लगे.